ज़िन्दगी
जितनी प्यारी होती है और मौत उतनी ही डरावनी. सच है न? आखिर हम सब मौत से इतना
डरते क्यों हैं? किसके लिए डरते हैं? जिस दिन हम जन्म लेते हैं उसी दिन हमसे बड़े
लोगों को, हमसे पहले जन्मे लोगों को (इसमें वे लोग जो बौद्धिक रूप से समृद्ध हैं)
जानकारी होती है कि हमें एक न एक दिन मरना है. जीवन चाहे कितना भी अनिश्चित हो मगर
मृत्यु निश्चित है. इसे आना ही आना है. पूरे जीवन में आपने क्या पाया, क्या खोया
यह आपके हाथ में नहीं, आपके द्वारा क्या तय होगा क्या नहीं, यह भी आपके हाथ नहीं.
इसे कोई इन्सान माने या नहीं मगर किसी को कुछ
जानकारी नहीं.
इसे
किसी दार्शनिक रूप में नहीं वरन विशुद्ध सामाजिक रूप में स्वीकार करना चाहिए कि
हममें से किसी को मालूम नहीं कि किस दिन हमारी अंतिम साँस हमारे पास आये. हमें आज
ही अपने भविष्य के लिए सजग रहना चाहिए. ये हमारा झूठा अहंकार होता है कि हमें कुछ
नहीं होगा मगर ऐसा सच नहीं होता है. हमें अपने ही आने वाले कल के बारे में कोई
जानकारी नहीं होती है. ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम अपने ऊपर आश्रित लोगों को
इसके बारे में सचेत करते चलें, जागरूक करते चलें. असल में हम लोगों ने आज भी मौत
को बहुत भयावह बना रखा है. देखा जाये तो मौत भयावह नहीं है बल्कि ज़िन्दगी भयावह
है. खुद से सोचने की बात है कि आखिर आप किसलिए जिंदा रहना चाहते हैं? आखिर आप
किसके लिए जिंदा रहना चाहते हैं? यदि यह दुनिया किसी दूसरे के इशारे पर चल रही है,
जिसके इशारे पर आप भी चल रहे हैं तो फिर उसी पर सबइ छोड़ दीजिए. आपकी आने वाली पीढ़ी
के लिए इसी समय से जूझना लिखा होगा तो वही होगा, यदि आराम से ज़िन्दगी बसर करना
लिखा है तो वही होगा. इसके बाद भी याद रखिये, होगा वही जो उसने लिख रखा है, सोच
रखा है. आपके सोचने-विचारने से, लिखने से कुछ न होगा.
इसलिए
सभी पढ़ने वालों से आग्रह है कि खुद को मस्त रखते हुए, अपने आपको ऊपर वाले के हाथों
में छोड़कर सबकुछ भुला दीजिए. ज़िन्दगी के जितने दिन मिले हैं, उनका आनंद उठा
लीजिये. आखिर कल किसने देखा है?
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सही कहा💐
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख।
जवाब देंहटाएंअच्छे सुझाव है।