रोज-रोज
वही लॉकडाउन, वही कोरोना, वही मजदूर, वही सरकार, वही संक्रमण, वही संख्या, वही
दुकानदार, वही पैकेज की बात कहाँ तक की जाये? दिमाग पंचर कर डाला कुछ लोगों ने.
सुबह से शाम तक बस एक ही रोना. जागने से लेकर सोने तक बस एक ही काम कोरोना-कोरोना.
ऐसा लग रहा है कि जैसे कोरोना जाप करके ये लोग उसे आमंत्रित कर रहे हैं. व्यवस्था,
सुविधा, राशन, भोजन, कैम्प, क्वारंटाइन, आइसोलेशन, आँकड़े आदि के कारण ऐसा लगने लगा
जैसे हम लॉकडाउन में घर में नहीं बल्कि किसी ऐसे सर्वर की चपेट में आ गए हैं, जहाँ
बस इन्हीं सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा रहा है.
दिमाग
का दही कर देने वाले ऐसे लोगों को पिछले दो-तीन दिन से एक विषय मजदूरों का मिल
गया. कोई पैदल आ रहा कोई हजारों रुपये देकर. सरकार ट्रेन चलवा रही तो आफत, न चलवाए
तो आफत और उस आफत का शिकार हम. दिन में किसी भी समय सोशल मीडिया के दर्शन करने जाओ
ऐसा लगता है जैसे एकमात्र हम ही बेवक़ूफ़ हैं, एकमात्र हम ही सूचना-विहीन हैं. दे
दनादन हजारों मैसेज एक बार में मोबाइल के बहाने हमारे सिर पर पटक दिए जाते हैं.
इन्हीं में से कुछ तो ऐसे होते हैं जो हमें सरकार समझते हैं या फिर सरकार का ऐसा एजेंट,
जिसके इशारे पर सरकारें निर्णय लेती हैं. सरकार ने क्या गलत किया, उसे कैसा करना
चाहिए था, उसे क्या नहीं करना चाहिए था ये सब हमें बताया-सुनाया जाता है.
अरे,
हम तो कहते हैं कि ये महामारी है, आपदा है जिसे किसी ने भी पहली बार देखा है. ऐसी
स्थिति में सरकार निर्णयों के बाद का परिणाम सोच भी नहीं पा रही, आकलन भी नहीं कर
पा रही. निर्णय लेने के बाद जो होता है, उसी आधार पर आगे की रणनीति बनाई जाती है.
एक पल को यहाँ रुक कर यही धुरंधर, जो सरकार को सुझाव दे रहे हैं, अपने घर की किसी
ख़ुशी वाली स्थिति पर ही निगाह डाल लें. लड़की-लड़के की शादी की बात ही ले लें. यदि
ऐसा कोई कार्यक्रम पहली बार हो रहा होता है तो घर में होने वाले कार्यक्रमों में,
विवाह घर में, वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान तक अनेक अवसर ऐसे आते हैं जबकि चूक समझ
आती है. कई बार सामान की कमी दिखाई देती है, कभी सामान का भूल जाना याद आता है,
कभी किसी निर्णय के दुष्फल सामने आते हैं तो ऐसे में आप क्या करते हैं? मीडिया को
बुलाकर चिल्ला-चिल्लाकर उस सम्बंधित व्यक्ति की बुराई करना शुरू कर देते हैं? क्या
उस कमी की चर्चा तुरंत सोशल मीडिया पर डालकर सम्बंधित व्यक्ति को दोष देने लगते
हैं? ऐसा कुछ नहीं करते आप क्योंकि वो आपके घर का कार्यक्रम होता है.
असल
में आप देश को, सरकार को अपना मानते ही नहीं हैं. यही कारण है कि सुबह से लेकर रात
तक सिवाय बकवास करने के आप कुछ नहीं करते हैं. देखा जाये तो आप सिर्फ बकवास ही
नहीं करते बल्कि लोगों में डर भरते हैं, लोगों में हताशा पैदा करते हैं. सत्य यही
है कि आप ऐसे लोगों की मजबूरी का तमाशा बनाते हैं, ऐसे लोगों की मजबूरी का तमाशा
बेचते हैं. बेचिए आप इनकी मजबूरी, इनका तमाशा पर हम जैसे लोगों को क्षमा करिए. आप
अपना ज्ञान अपने तक रखिए. अपनी जानकारी से खुद को समृद्ध करिए अथवा उसे मोहरा
बनाइये जो आपकी तरह नौटंकी करता हुआ दिमाग से पैदल हो चुका है.
आप
जैसे लोगों के लिए ही कहा है हमने....
दर्द
उनका देख हम भी रोते हैं,
लगा
कर दो पैग चैन से सोते हैं.
+
नौटंकी
संवेदनात्मक #दुनाली
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
उपयोगी आलेख
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