15 मई 2020

संस्कार की पाठशाला होता है परिवार

एक वो समय था जब हम सभी लोग एकसाथ बैठकर भोजन किया करते थे. हम सबके पास अपने-अपने काम हुआ करते थे मगर दोपहर में भोजन के समय कैसे भी करके सभी लोग एकसाथ जुड़ ही जाते थे. रात को भी यही क्रम अनिवार्य रूप से होता था. दिन के भोजन के समय और रात के भोजन के समय में एकजुटता में बस इतना अंतर हो जाता कि रात को हम तीनों भाई रसोई में ही भोजन करते. अम्मा गरम-गरम रोटियाँ सेंकतीं और हम तीनों भाई उनको घेर कर बैठते.


एकसाथ भोजन करने के ये संस्कार बचपन से ही मिले हुए थे. बचपन से देखते आ रहे कि होली, दीपावली पर सभी चाचा सपरिवार उरई इकट्ठे हुआ करते थे.  उस समय हम सब मिलकर भी एकसाथ भोजन किया करते थे. बस यहाँ इतना अंतर हो जाता कि हम सभी भाई बहिन एकसाथ, पिताजी-चाचा लोग एकसाथ और अम्मा-चाची लोग एकसाथ भोजन किया करते थे. समय के साथ सभी लोग अपनी-अपनी जगह कार्य हेतु निकल गए. समय बदलता रहा. सभी के परिवार बढ़ते रहे. धीरे-धीरे पर्वों-त्योहारों पर चाचा लोगों का आना कम होता रहा परन्तु हम सबका मिलना बंद न हुआ. जब भी सभी लोगों का मिलना होता तो भोजन एकसाथ ही होता है.


बहुत से परिवार आज भी ऐसे हैं जो एकसाथ रह रहे हैं, एकसाथ भोजन करते हैं. आज के दौर में परिवार का साथ रहना ही महत्त्वपूर्ण है मगर उससे भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है एकसाथ मिलकर भोजन करना. यह स्थिति आपसी समन्वय, सामंजस्य की भावना को जन्म देती है. कई बार सीमित खाद्य-सामग्री के साथ सभी के द्वारा उसका स्वाद लेने का अपना ही आनंद है. यह भावना एक-दूसरे के प्रति समर्पण, सम्मान, रिश्तों की गरिमा को भी पुष्ट करती है.


अपने रक्त-सम्बन्धी परिजनों के साथ बने एक परिवार के साथ-साथ हमें अपने हॉस्टल परिवार के साथ भी ऐसा आनंद लेने का अवसर मिला है, आज भी मिल रहा है. आज भी बहुत अच्छे से याद है कि हॉस्टल में हम कई लोग दूध लिया करते थे. जाड़े के दिनों में विशेष रूप से सभी लोग अपना दूध एक बड़े से भगौने में इकठ्ठा कर लेते थे और उसमें रोटी मिला दी जाती थी. उस समय कितने-कितने हाथ एकसाथ उस दूध-रोटी का आनंद लेते, कोई खबर नहीं. न किसी का धर्म पूछा जाता, न किसी की जाति से कोई लेना-देना होता. इस दूध-रोटी के स्वाद में इसका अंत सबसे ज्यादा मस्ती भरा हुआ करता था. अंतिम दौर में दूध-रोटी का रबड़ी जैसा बन जाना सबको लालच देता था. उसके लिए जिस तरह की छीना-झपटी होती वह उस समय भी हास्य का माहौल बनाती थी, आज भी चेहरे पर मुस्कान ला देती है.


आज, विश्व परिवार दिवस पर कामना यही कि सभी परिवार सुख से रहें. इस लॉकडाउन में सबको सद्बुद्धि मिले और भविष्य में सभी परिवार आपसी मतभेद भूलते हुए एकसाथ रहें.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

9 टिप्‍पणियां:

  1. और संयुक्त परिवार तो विशेष कर इतना कुछ सिखा जाता है बच्चों और ख़ुद हमें भी ...

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  2. परिवार दिवस पर बढ़िया पोस्ट। परिवार बहुत कुछ सिखाता है।

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  3. बहुत से परिवार आज भी ऐसे हैं जो एकसाथ रह रहे हैं, एकसाथ भोजन करते हैं. आज के दौर में परिवार का साथ रहना ही महत्त्वपूर्ण है मगर उससे भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है एकसाथ मिलकर भोजन करना. यह स्थिति आपसी समन्वय, सामंजस्य की भावना को जन्म देती है. कई बार सीमित खाद्य-सामग्री के साथ सभी के द्वारा उसका स्वाद लेने का अपना ही आनंद है. यह भावना एक-दूसरे के प्रति समर्पण, सम्मान, रिश्तों की गरिमा को भी पुष्ट करती है.
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट ,परिवार की महत्ता को दर्शाती हुई,

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  4. हमने भी जिया है ये जीवन त्यौहारों में, गर्मियों की छुट्टी में दोनों चाचा चाची और हम 13 भाई बहन एक साथ रहते थे।

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  5. परिवार अनमोल होता है

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  6. लॉकडाउन के बहाने ही सही पूरे विश्व को परिवार का महत्व समझ आ रहा है
    बभिब

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  7. असली विकास तो संयुक्त परिवार में होता है, व्यक्तिगत परिवार में जीवन यापन करने वाले कई वंचित होते हैं !

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