संभव है कि हमारे मीडिया के कई साथी इस पोस्ट पर
नाराजगी जताएँ. हमारे कई दोस्त, उम्र में हमसे बड़े-छोटे लोग,
हमारे कई विद्यार्थी मीडिया से जुड़े हुए हैं. उनकी नाराजगी की चिंता
से अधिक आवश्यक हमें उनकी चिंता करना लगा. वे सभी लोग कुछ बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार
करते हुए अपने कदम बढ़ाएंगे, ऐसी अपेक्षा ही कर सकते हैं.
पहली बात, आप ऐसी कौन
सी जानकारी सरकार तक, प्रशासन तक पहुँचाना चाहते हैं,
जो उनके पास अपने स्त्रोतों से उनको उपलब्ध नहीं हो सकती?
दूसरी बात, आपके द्वारा
कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या, इससे होने वाली मौतों की संख्या
आदि का आम नागरिकों के लिए क्या लाभ है?
तीसरी बात, विचार करिए
कि लॉकडाउन के कारण उत्पन्न अनेक तरह की समस्याओं का उल्लेख करके आप जनता को सुकून
दिलवा रहे हैं अथवा परेशान कर रहे हैं?
चौथी बात, इस समय किसी
शहर में किसी भी तरह की राजनैतिक, सांस्कृतिक, खेलकूद आदि से सम्बंधित कार्यक्रम संचालित नहीं हो रहे हैं, जिनका प्रकाशन/प्रसारण आपके लिए आवश्यक है.
पाँचवीं बात, सामान्य
दिनों में भी बहुत सी खबरों का कवरेज आपके द्वारा ही नहीं किया जाता था बल्कि सूत्रों
के द्वारा आपको उनकी प्राप्ति होती थी.
छठवीं बात, प्रत्येक
जिले में सूचना कार्यालय होता है, उसका काम सूचनाएँ उपलब्ध करवाना
ही होता है.
चलिए मान लेते हैं कि आपका ही कवरेज करना अत्यंत
आवश्यक है तो लॉकडाउन के दौरान खुद के द्वारा प्रकाशित/प्रसारित की गई खबरों पर ही
निगाह डाल लीजिये. उनमें से कितनी ऐसी हैं जो अत्यावश्यक अथवा अनिवार्य हैं?
एक बात स्वीकारिये कि कोरोना से सम्बंधित किसी भी
खबर का प्रसारण सरकारी गाइडलाइन के आधार पर ही हो रहा है. आप लोगों द्वारा भी प्रशासन
द्वारा दी गई जानकारी ही प्रकाशित/प्रसारित की जा रही है.
प्रशासन द्वारा जगह-जगह लॉकडाउन के पालन की स्थिति
का अवलोकन, नगरीय सीमाओं पर आने वालों की भीड़, पुलिस की मुस्तैदी-जांच आदि की खबरों के लिए क्या सम्बंधित स्थान पर आपका ही
रहना आवश्यक है?
अपने-अपने क्षेत्र में अपना whatsapp नंबर सबके बीच सार्वजनिक कीजिये. प्रशासन से अथवा अन्य लोगों से उसी पर खबरें,
फोटो, वीडियो प्राप्त करिए.
एक विशेष बात, विगत कुछ दिनों
से पत्रकारों के लिए मुआवजे की बात की जा रही है. इसका अर्थ यह निकला कि आप भी
आशंकित हैं. ऐसे में एक बार अपने परिजनों से उनकी मंशा जान लीजिये कि वे आपके
स्थान पर सरकारी मुआवजा स्वीकारने को तैयार हैं?
इसके अलावा एकबारगी मुआवजे की बात को सरकार मान
भी ले तो क्या आप मीडिया से जुड़े होने के बाद भी मीडिया की अंदरूनी वास्तविकता से
परिचित नहीं? किसी संस्थान द्वारा एक जिले में कितने लोग वास्तविक रूप में उसके कर्मियों
के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, ये आपको भी ज्ञात होगा. ऐसे में मुआवजे की स्थिति
में सरकारी नीति में कितने लोग आयेंगे, ये भी आपको पता होगा.
इन सब बातों से बड़ी बात, मीडिया के लोग खुद को
कोरोना योद्धा, चौथा खम्बा आदि की काल्पनिकता से भी बाहर निकलने का प्रयास करें.
संवैधानिक रूप से तीन ही खम्बे हैं. कोरोना योद्धा के रूप में वे लोग ही तत्पर हैं
जो सरकारी दायित्वों से बंधे हैं, अन्यथा की स्थिति में बहुतायत निजी चिकित्सक घर
में ही रह रहे हैं.
एक बात पूरी तरह से दिमाग से निकाल दीजिए कि आप
लोग खबरें नहीं देंगें तो लोगों को खबर न होगी. वर्षों पहले गिने-चुने समाचार-पत्र
होते थे, एक ही चैनल हुआ करता था तब भी खबरें लोगों तक पहुँचती हैं. आज तो हर
व्यक्ति समाचार-पत्र है, हर व्यक्ति चैनल है. आप अपने शहर की बात कर रहे,
व्यक्तियों के पास अन्तरिक्ष की खबरें तक हैं.
अच्छी बात है, आप सभी बधाई के पात्र हैं कि रोज
की खबरें जनता तक पहुँचाना आप अपना दायित्व समझते हैं मगर विचार करिए कि इस कोरोना
के दौर में, लॉकडाउन में कितने लोग समाचारों के लिए अखबारों और न्यूज़ चैनल्स का
सहारा ले रहे हैं?
खबरों के प्रसारण के लिए सरकारी तंत्र पर्याप्त
सक्रिय है. कुछ महीनों के लिए खोजी पत्रकारिता टाइप कदम रुके रहेंगे तो कोई प्रलय
नहीं आ रही मगर आप लोगों को कुछ होता है तो आपके घर अवश्य प्रलय आ जाएगी. यहाँ फिर
वही बात कि इस लॉकडाउन में किस तरह की खोजी खबर, गुप्त जानकरी आप लाना चाहते जो
नागरिकों के लिए लाभकारी होगी, ये बताएं और बन जाएँ कोरोना योद्धा.
कहना हमारा फ़र्ज़ था क्योंकि आप हमारे हैं. अब
मानना या न मानना आपके ऊपर क्योंकि ये तय आपको करना है कि आपके परिजन आपके हैं या
नहीं? ध्यान रखियेगा, कोरोना का संक्रमण पद, प्रतिष्ठा, प्रस्थिति, कार्य, वर्ग,
धर्म, जाति, क्षेत्र आदि देखकर नहीं हो रहा.
घर में रहिये, स्वस्थ रहिये, सुरक्षित
रहिये.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
समय की मांग भी यही है तथा जरूरत भी ,इन नियमों को अपनाकर ही स्वस्थ रहा जा सकता है ,धन्यवाद ,बहुत ही फायदेमंद जानकारिया है ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका.
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने ... आज ठीक जानकारी का उपलब्बध होना अपने आप में एक चेलेंज बनता जा रहा है ...
जवाब देंहटाएंजी, और आज के पत्रकार संक्रमितों की, मौतों की संख्या बताने को पत्रकारिता समझ रहे
जवाब देंहटाएंबहुत सही।
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविचारणीय मुद्दा।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन।