01 अप्रैल 2020

लॉकडाउन और परिवार के साथ अनुभव

कलम किस तरह परिस्थितियों के अधीन हो जाती है, इसका उदाहरण वर्तमान परिदृश्य में सहजता से मिलता है. इस समय वैश्विक रूप से चीनी वायरस कोरोना का कहर देखने को मिल रहा है. हर तरफ सभी के विचारों में बस एक यही बिंदु दिखाई दे रहा है. दूसरे की क्या कहें, हम खुद इससे बंधे से हैं. दिन भर के खाली समय में इधर-उधर के काम निपटाने के बाद शाम को जब पोस्ट लिखने का विचार मन में आता है तो बस यही चीनी वायरस कौंध जाता है. इस वायरस से निपटने का तरीके, इससे होने वाले नुकसान, होने वाली मौतों, इसके कारण तमाम लोगों का सहायता के लिए उतर आना दिखाई देने लगता है. ऐसा लग रहा है जैसे और सारे बिंदु, सभी समस्याएँ समाप्त हो गईं हैं. मीडिया हो या सोशल मीडिया, सभी जगह एक इसी चीनी वायरस के चर्चे हैं.


वैसे देखा जाये तो दूसरी चर्चा के लिए लोगों के पास कोई मुद्दा ही नहीं है, कोई विषय ही नहीं है. लॉकडाउन के कारण सभी कुछ बंदी की स्थिति में है. न बाजार खुले हैं न कार्यालय. न मॉल खुले हैं और न ही सिनेमाघर. न आर्थिक जगत खुला हुआ है और न ही खेल जगत. ऐसे में लोगों की चर्चाओं के सारे रास्ते जैसे ठप्प हैं. ऐसे समय में लोगों को कम से कम अपने अनुभवों की चर्चा करनी चाहिए थी. ऐसे समय में कम से कम लोगों को लॉकडाउन के समय में घर पर उपजे अनुभवों को, संस्मरणों को सबके बीच बाँटना चाहिए था. लॉकडाउन में उन्होंने क्या किया? उनके घर के शेष सदस्यों ने क्या किया? उनके मित्रों ने क्या किया?

फिलहाल, आज की पोस्ट इतनी ही. कल से हम अवश्य ही अपनी पोस्ट में चर्चा करेंगे कि हमने इस लॉकडाउन में क्या किया. हमारे परिवार ने क्या किया. तब तक के लिए नमस्कार. इसे अप्रैल फूल वाली बात न मानियेगा.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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