27 फ़रवरी 2020

हिंसात्मक चिंगारी भड़कने का डर हमेशा रहेगा

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के भारत आगमन के समय ही दिल्ली में हिंसात्मक गतिविधियों का होना एक तरह का षड्यंत्र समझ आया मगर इसके पीछे खतरनाक कदम, मंसूबे छिपे होंगे ये अंदाज शायद किसी को नहीं रहा होगा. जबरदस्त उत्पात के बाद, खुलेआम कत्लेआम जैसी स्थिति बनाये रखने के बाद जब दिल्ली में दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए, तब हालात नियंत्रण में आते दिखे. इस नियंत्रित स्थिति के बाद स्थिति की भयावहता सामने आने लगी है. पुलिस के एक हेड कांस्टेबल की मृत्यु इसी हिंसात्मक गतिविधि में हुई. उसके साथ ही एक आईबी अधिकारी की हत्या किये जाने और उनकी लाश को नाले में फेंक दिए जाने की खबर सामने आई. डॉक्टर्स के द्वारा पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट के अनुसार उस अधिकारी के लगभग हर अंग में चाकुओं से वार किया गया है. आंतें निकाल ली गईं हैं. पूरे शरीर में अनगिनत घाव हैं. इस तरह की जघन्य हत्या आखिर किसलिए? इस हत्या के पीछे आम आदमी पार्टी के एक मुस्लिम पार्षद को आरोपी माना जा रहा है. मीडिया द्वारा, सोशल मीडिया पर अपलोड विभिन्न वीडियो द्वारा जानकारी मिली कि इस हत्या तथा उत्पात के पीछे यही मुस्लिम पार्षद का हाथ है. उसकी छत से पेट्रोल बम फेंकने, पत्थर फेंकने के कई वीडियो सामने आये. इसी के साथ-साथ जब मीडिया द्वारा सम्बंधित जगह का मुआयना किया गया तो छत पर पेट्रोल, तेजाब, पत्थर का व्यापक जखीरा पकड़ में आया.


सोचने वाली बात है कि ये हिंसा महज CAA का विरोध है? क्या CAA में ऐसे प्रावधान हैं जिनके चलते देश के या कहें कि दिल्ली के मुसलमान इस कदर हिंसा पर उतारू हो गए. पिछले दो महीने से अधिक समय से शाहीन बाग़ में दिया जा रहा धरना, सड़क का अवरोध शायद इनके लिए पर्याप्त नहीं था. न्यायालय द्वारा, केन्द्र सरकार द्वारा, दिल्ली सरकार द्वारा पूरे मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया. दो महीने से अधिक समय तक किसी सड़क को रोके रखना, इस्लाम समुदाय के प्रमुखों द्वारा लगातार उत्तेजक भाषण देना आदि इनको नहीं दिखाई दिया. दिन-प्रतिदिन मामला अन्दर ही अन्दर सुलग तो रहा ही था साथ ही किसी बड़े हमले की, हिंसात्मक गतिविधि की योजना भी बनाई जा रही थी. यही कारण है कि इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के देश में रहने का समय चुना गया. सोचा गया होगा कि इस बहाने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी ये बात फ़ैल जाएगी कि केन्द्र सरकार किसी राष्ट्राध्यक्ष के समय अपने देश की स्थिति को नियंत्रित नहीं रख सकी. इसके साथ-साथ CAA के प्रति भी एक तरह की नकारात्मकता वैश्विक स्तर पर फ़ैल जाएगी. इसी मंसूबे के चलते हिंसा का आरम्भ हुआ.

इस हिंसा ने लाखों-करोड़ों रुपये का नुकसान तो किया ही साथ ही दो दर्जन से अधिक इंसानों को भी अपनी चपेट में निगल लिया. इससे अधिक नुकसान एकबार फिर उस विश्वास का हुआ जो विगत कई वर्षों से सभी के द्वारा समय-समय पर बनाया जाता रहता है. एक बार फिर आपसी सद्भाव, समन्वय की उस स्थिति की हत्या हुई है जिसे अभी हाल में बड़ी मुश्किल के साथ बनते, स्थापित होते महसूस किया जा रहा था. दिल्ली के दिलवाले मतदाताओं को बुद्धिजीवी बताया जा रहा था और जिस पार्टी को व्यवस्था परिवर्तन करने के लिए आया हुआ बताया जा रहा था, उसके सदस्यों द्वारा इस तरह के जघन्य कृत्य में शामिल होने ने भरोसे का ही खून किया है. जो लोग यह कहते नहीं थकते हैं कि किसी के बाप का नहीं है हिन्दुस्तान, वे भी इस हिन्दुस्तान को खून से लाल करने चल दिए.



अभी तक ऐसा लग रहा था कि ये लोग सिर्फ सीएए के विरोध करने में लगे हैं. काल्पनिक एनआरसी का विरोध करने में लगे हैं मगर जिस तरह के चित्र सामने आ रहे हैं, जिस तरह के वीडियो सामने आये हैं, जैसी खबरें मीडिया के द्वारा दिखाई जा रही हैं उनको देखकर लगता है कि इनका असल मंसूबा दिल्ली को भयानक दंगाक्षेत्र में बदल देना था. इना उद्देश्य समाज में बुरी तरह से कत्लेआम करना था. इनका मकसद गैर-मुस्लिमों के मन में भय पैदा करना था. देखा जाये तो ये कहीं न कहीं इसमें सफल भी हुए हैं. हाल-फिलहाल तो स्थिति नियंत्रित लग रही है मगर कितने समय तक ये स्थिति बनी रहेगी कहा नहीं जा सकता. शाहीन बाग़ का अनशन अभी भी चल रहा है. अदालत ने अगले माह तक के लिए तारीख देकर एक तरह से उनके प्रति ही समर्थन दर्शाया है. ऐसे में यदि इस विभेदकारी आग को, हिंसात्मक वृत्ति को पूरी तरह से समाप्त न किया गया तो दिल्ली में सुलगी हिंसात्मक चिंगारी भड़कने का डर हमेशा लगा रहेगा. 
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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