18 जनवरी 2020

दोस्ती का नशा पुरानी शराब जैसा


आज अचानक ही कुछ बीती बातें पलट रहे थे तो तमाम बातें आँखों के सामने से गुजर गईं. पिछले चार दशकों से अधिक की जीवन-यात्रा जैसे एक पल में गुजर गई. इसे दिमाग की संरचना ही कहेंगे कि एक-एक छोटी घटना, एक-एक पल ऐसे याद रहता है जैसे अभी-अभी गुजरा हो. अपनी इस आदत के चलते समस्या भी बहुत होती है. बहुत सी ऐसी बातें जिनको भूलना चाहते हैं वे अपनी इसी आदत के कारण भुला नहीं पाते हैं. बहुत सी घटनाएँ दिल-दिमाग को खुश करती हैं मगर बहुत सी ऐसी हैं जो सिर्फ रुलाने का काम करती हैं. बहरहाल, बीते दिनों की जीवन-यात्रा को देखते हैं तो बहुत से पलों का साथ रहना दिखता है, बहुत से अवसरों का पीछे छूट जाना दिखाई देता है. अनेकानेक जाने-अनजाने लोगों से मिलना-बिछड़ना इस यात्रा में बना रहा. हँसना-मुस्कुराना, लड़ना-झगड़ना, तर्क-वितर्क के न जाने कितने पड़ावों के बीच लोगों का साथ मिलता रहा, बहुतों का साथ छूटता रहा. 


इस यात्रा में अच्छे-बुरे, कड़वे-मीठे अनुभवों का स्वाद चखने को मिला. सपनों का बनना-बिगड़ना बना रहा, वास्तविकता और कल्पना की सत्यता का आभास होता रहा. कई बार जीवन एकदम सरल, जाना-पहचाना लगता तो कई बार अबूझ पहेली की तरह अनजाने रूप में सामने खड़ा हो जाता. अपनी होकर भी बहुत बार यह जीवन-यात्रा अपनी सी नहीं लगती. ऐसा लगता कि चमकती धूप में भी स्याह अँधेरा चारों तरफ हो. चाँदनी बिखरी है मगर उसमें भी तपन महसूस होती. सर्वत्र ख़ुशी के झरने झर रहे हैं पर हम उसमें भीग नहीं पा रहे हैं. सुखों की चादर फैली हुई है पर उसके साये में खुद को खड़ा नहीं कर पा रहे हैं. यही इस जीवन-यात्रा की अनिश्चितता थी कि जो पल अभी-अभी नकारात्मक सन्देश लेकर आया था, वह अपने साथ सकारात्मकता की चिट्ठी लेकर भी आया था. खाली हाथ होते हुए भी समूची दुनिया मुट्ठी में होने का एहसास खुद को सर्वोच्च पायदान पर ले जाता. तन्हाई के बीच अपना कद ही अनेकानेक व्यक्तित्वों का निर्माण कर मधुर कलरव बिखेरने लगता. अंधेरों के सामने दिखने पर उसको अपने भीतर समेट सबकुछ रौशनी में बदल देने की शक्ति भी प्रस्फुटित होने लगती.

ऐसा क्यों होता है? कब होता है? किस कारण होता है? न जाने कितने सवालों के दोराहों, तिराहों, चौराहों से गुजरते हुए भी यदि कोई जीवन-शक्ति सदा साथ रही तो वह थी हमारे दोस्तों की शक्ति. किसी मोड़ पर अकेलेपन का एहसास यदि किसी ने न होने दिया तो वो था हमारे दोस्तों का साथ. अनेक असफलताओं का सफलता में बदलने का ज़ज्बा विकसित करने वाला कोई था तो वो था दोस्तों का साहचर्य. दोस्तों का मिलना हर स्थिति में हुआ. हर परिस्थिति में हुआ. कोई बचपन में स्कूल से मित्र बना तो कोई कॉलेज की शिक्षा के दौरान संपर्क में आया. किसी से उच्च शिक्षा के दौरान बनी मित्रता अभी तक चल रही है तो किसी से सामाजिक कार्यों के दौरान हुआ संपर्क आज तक गहरी दोस्ती के रूप में विद्यमान है. हॉस्टल जीवन में बहुत से मित्रों का आना हमारे जीवन में हुआ. इसमें बहुत से बड़े भाई की तरह अपना आशीर्वाद, स्नेह हम पर लुटाते हैं तो कुछ छोटे भाई की तरह हमें सम्मान देते हैं और कुछ मित्र तो आज भी उसी तरह की बदतमीजियों के साथ हमारे दिल-दिमाग में बसे हैं, जिन बदतमीजियों के साथ हॉस्टल के समय में घुस गए थे. स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल में साथ पढ़ने-रहने के कारण गहरी मित्रता होना स्वाभाविक सी बात है मगर किसी ऐसे मंच के माध्यम से, जहाँ एक-दो दिन मिलने के बाद महीनों न मिलना होता हो मित्रता को गहराई देना आश्चर्य का विषय हो सकता है. पुराने दोस्तों की दोस्ती हमेशा पुरानी शराब सा मजा देती रही. नए-नए मित्र अपने नए-नए रंग के साथ इसमें शामिल होकर दोस्ती के नशे को और नशीला बनाते रहे.

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