29 जनवरी 2020

शहीदों का सम्मान बचाये रहना भी है श्रद्धांजलि


गणतंत्र दिवस हो या फिर स्वतंत्रता दिवस, इन राष्ट्रीय पर्वों पर दिल-दिमाग पर एक अजब तरह की खुमारी चढ़ी रहती है. ऐसे माहौल में, जबकि देह का रोम-रोम देशभक्ति के एहसास में डूबा रहता है किसी भी देशभक्त के प्रति अनादर जैसी स्थिति देख मन विचलित हो जाता है. कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी उस समय हुआ जबकि अपनी नियमित संध्या घुमक्कड़ी में बाजार में टहलना हो रहा था. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शहर को तिरंगे से सजाया जा रहा था. कहीं कपड़ों के द्वारा सजावट हो रही थी तो कहीं गुब्बारों के द्वारा तो कहीं बिजली की झालरें तीन रंग बिखेरने में लगी थीं. आज़ादी के मतवालों को याद करते हुए, मन ही मन में देशभक्ति के तराने गुनगुनाते हुए जैसे ही रानी लक्ष्मीबाई चौराहे के नजदीक पहुँचना हुआ तो दिमाग एकदम से झनझना उठा.


रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति जी घेरे के भीतर लगी हुई थी, उसे तिरंगे कपड़ों से सजाया गया था. चारों तरफ से झालरनुमा सजावट करने के प्रयास में तिरंगे कपड़ों को रानी लक्ष्मीबाई के बांये हाथ पर आकर तमाम कपड़े बाँध दिए गए थे. अपनी कतिपय शारीरिक दिक्कतों के चलते वहाँ तक पहुँच कर उन गाँठों को खोल पाना हमारे लिए संभव नहीं हो पा रहा था. उरई नगर पालिका परिषद् की ओर से ये सजावट करवाई जा रही थी. रात के लगभग नौ बजने को आये थे. कुछ जिम्मेवार लोगों को फोन करके उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए कहा कि आवश्यक नहीं कि इन क्रांतिकारियों की तरह कोई क्रांति ही करो मगर कम से कम इनका सम्मान तो करते रहो. गुस्सा इसलिए भी था क्योंकि कुछ दिनों पहले ऐसे ही एक सजावट के क्रम में रानी झाँसी के घोड़े की पूँछ को किसी खूंटे की तरह इस्तेमाल कर लिया गया था, अबकी ऐसा बर्ताव रानी झाँसी के हाथ के साथ किया गया.


फिलहाल, कुछ फोन, सोशल मीडिया पर फोटो के लगाने और थोड़ी सी भागदौड़ के बाद उस विचित्र सी स्थिति को सुधार दिया गया. आज़ादी के लिए अपनी जान की परवाह न करने वाले इन शहीदों का सम्मान बचा रहे,यही इनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.



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