18 जून 2019

महान वीरांगना रानी झाँसी को सादर नमन


आज, 18 जून को रानी लक्ष्मी बाई की पुण्यतिथि है. उनका जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था. उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु पुकारा जाता था. झाँसी के राजा गंगाधर राव से उनका विवाह हुआ. सन 1851 में उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन चार माह पश्चात उसका निधन हो गया. राजा गंगाधर राव को इस घटना से गहरा धक्का पहुंचा. वे लगातार अस्वस्थ रहने लगे और 21 नवंबर 1853 को उनका स्वर्गवास हो गया. इससे पहले उन्होंने अपने चचेरे भाई के पुत्र को गोद लेने सम्बन्धी प्रस्ताव अंग्रेजों के पास भेजा, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था. 


राजा के निधन पश्चात् 27 फरवरी 1854 को लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तक पुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत करके झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी. एक वार्ता के क्रम में रानी के घोष मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी के साथ ही विद्रोह का बिगुल बज उठा. अंग्रेजों की राज्य लिप्सा की नीति से उत्तरी भारत के नवाब और राजे-महाराजे असंतुष्ट हो गए और सभी में विद्रोह की आग भभक उठी. नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल, अंतिम मुगल सम्राट की बेगम जीनत महल, स्वयं मुगल सम्राट बहादुर शाह, नाना साहब के वकील अजीमुल्ला शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह और तांत्या तोपे आदि रानी के इस कार्य में सहयोग देने आगे आये. 

23 मार्च 1858 को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ. रानी ने सात दिन तक वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और अपनी छोटी-सी सशस्त्र सेना से अंग्रेजों का बहादुरी से मुकाबला किया. वे अपनी पीठ पर दामोदर राव को बाँध घोड़े पर सवार हो अंग्रेजों से युद्ध करती रहीं. युद्ध के दौरान रानी लक्ष्मी बाई झाँसी से कालपी होते हुए ग्वालियर जा पहुँचीं. ग्वालियर पर आक्रमण कर वहां के किले पर अधिकार कर लिया गया. अंग्रेज सेनापति ह्यूरोज अपनी सेना के साथ संपूर्ण शक्ति से रानी का पीछा करता हुआ ग्वालियर पहुँच गया. यहाँ हुए युद्ध में रानी अपनी कुशलता का परिचय देती रहीं. 18 जून 1858 को ग्वालियर का युद्ध उनके लिए अंतिम अंतिम युद्ध सिद्ध हुआ. वे घायल हो गईं और अंततः वीरगति प्राप्त की.

रानी लक्ष्मी बाई के जीवन से दो बातें सीखने योग्य हैं. एक तो उन्होंने उस कालखंड में जबकि पर्दा-प्रथा प्रभावी था किन्तु स्त्री-शिक्षा प्रभावी रूप में नहीं थी, रानी ने महिलाओं की सेना बनाई, उनको प्रशिक्षित किया. दूसरे, बिना किसी स्त्री-विमर्श, नारी-सशक्तिकरण सम्बन्धी आन्दोलनों के उन्होंने बुन्देलखण्ड और आसपास के अनेक पुरुष राजाओं को अपने झंडे तले लाकर स्त्री-शक्ति का परिचय दिया था.
महान वीरांगना को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन. 

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