भारतीय सेना हमेशा अपने जांबाजों से सुशोभित रही है. ऐसे ही
एक जांबाज मेजर मनोज तलवार की आज, 13 जून को पुण्यतिथि
है. उनका जन्म 29 अगस्त 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर
में हुआ था. मूल रूप से पंजाब के निवासी कैप्टन पी०एल० तलवार उनके पिता हैं. कानपुर
में अपने पिता की नियुक्ति के समय उनकी उम्र महज दस साल थी. उस समय वे पिता की वर्दी
पहनकर जवानों की तरह जंग करने के सीन बनाते थे. वे जवानों को देखकर कहते भी थे कि मैं
बड़ा होकर सेना में जाऊंगा.
मनोज तलवार एनडीए में चयन पश्चात् वर्ष 1992 में कमीशन प्राप्त कर महार रेजीमेंट में लेफ्टीनेंट पद पर नियुक्त हुए. उनकी
पहली तैनाती जम्मू-कश्मीर में हुई. बचपन से ही वीरतापूर्ण स्वभाव के चलते वे कुछ
अलग करना चाहते थे. इसी कारण वे कमांडो की विशेष ट्रेनिंग लेकर असम में उल्फा उग्रवादियों
का सफाया करने के लिए निकल गए. वर्ष 1999 में उन्होंने
सियाचिन में नियुक्ति की मांग की. सियाचिन जाने से पहले वे
घर आए जहाँ उन्होंने अपने विवाह सम्बन्धी प्रस्ताव को यह कहकर नकार दिया कि मेरा
समर्पण तो देश के साथ जुड़ चुका है. अभी तो उसकी हिफाजत के लिए वचनबद्ध हूँ. पता नहीं
क्या हो, मैं किसी लड़की का जीवन बर्बाद नहीं करूंगा. इसके बाद वे कारगिल चले गए.
कारगिल में घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए मेजर मनोज तलवार कारगिल
के टुरटक सेंटर की शून्य से 60 डिग्री नीचे तापमान की 19
हजार फीट ऊंची खड़ी चोटी पर अपनी टुकड़ी लेकर बढ़ चले. 13 जून 1999 की शाम उन्होंने ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा
दिया. लेकिन तभी दुश्मनों की तोप के गोले का शिकार होकर वे शहीद हो गए. मेजर मनोज तलवार
को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया. देश के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग
करने वाले 9 महार के शहीद मेजर मनोज तलवार के नाम पर सियाचिन
में ग्लेशियर नंबर-3 पर सैन्य पोस्ट का नाम रखा गया है जो कि
महार की वीरता का प्रतीक है.
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