तकनीकी रूप से कई बार आभास होता है कि हम बहुतों से बहुत पीछे
हैं, बहुत पिछड़े हैं. हमारे साथ के ही बहुत से लोग हमसे कई सालों पहले से कंप्यूटर
का उपयोग करने लगे थे. हमने पहली बार कंप्यूटर का आंशिक उपयोग शायद 1999 में करना शुरू किया था. हालाँकि देखने और छूने को तो सन 1992 में ही मिल गया था. इसके बाद पूरी तरह से उपयोग करना सन 2006-07 में करना शुरू किया था, जबकि एक सेकेण्डहैण्ड कंप्यूटर किसी काम के लिए
हमने लिया था. उसके बाद लगातार सीखते रहे, काम करते रहे. इसी सबमें इंटरनेट से, ब्लॉग
से, सोशल मीडिया से जुड़ना हुआ. इन सबमें आने के बाद भी एक तरह से अशिक्षित रहे,
अनाड़ी ही रहे. जैसे-जैसे लोगों से मिलना-जुलना होता रहा, विचारों का आदान-प्रदान
होता रहा तो मालूम पड़ता रहा कि लोग इस क्षेत्र में भी हमसे कई-कई साल पहले आ चुके
हैं. अपनी आदत के अनुसार संबंधों का विस्तार करते रहे. संबंधों का बनना लगातार होता
रहा. नए-नए लोगों से मिलना होता रहा. ब्लॉग की दुनिया के साथ-साथ सोशल मीडिया की
दुनिया में लोगों से मेलजोल बनता रहा. इन सबके बीच लगातार यह आभास बना रहा, एहसास
होता रहा कि सोशल मीडिया की दुनिया पूरी तरह से आभासी ही है. लोग माने या न माने
मगर ऐसा उन सभी के व्यवहार से भी लगता रहा कि सोशल मीडिया की दुनिया आभासी दुनिया
है.
ऐसा इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया में या कहें कि इस आभासी
दुनिया में सम्बन्ध दो तरह के लोगों से बनते समझ आये. एक तो वे लोग थे जिनसे
विशुद्ध सोशल मीडिया के चलते ही सम्बन्ध बने. ऐसे लोगों से पहले किसी भी तरह से
कहीं भी मिलना नहीं हुआ था. दूसरे वे लोग आभासी दुनिया में जुड़े जो उससे कहीं पहले
से हमारे संपर्क में थे, हमसे जिनके सम्बन्ध थे. ऐसे लोग इन्हीं संबंधों को ए
धरातल पर एक नया स्वरूप देने के लिए आभासी दुनिया में एक-दूसरे से जुड़े, सोशल
मीडिया पर एक-दूसरे के साथ मित्र रूप में जुड़े. ये सम्बन्ध आभासी दुनिया के
मुकाबले जमीनी सम्बन्ध कहे जा सकते हैं, जो बहुत पहले से एक-दूसरे पर विश्वास
करके, स्नेह करके ही बने हुए थे. ये ज़मीनी सम्बंध जब आभासी दुनिया में मिले तो उनमें
तमाम विरोधों के बाद भी खटास नहीं आई. उनको आभासी दुनिया के पहले से सम्बन्धों का लिहाज़
था, आत्मीयता का एहसास था. ऐसे सम्बन्धों ने किसी कारण से आभासी
दुनिया के सम्बन्धों को बंद किया तो भी वास्तविक दुनिया के अपने सम्बन्धों में वही
परिपक्वता बनाए रखी, जो कभी थी.
इसके उलट आभासी दुनिया के सम्बन्धों ने जब वास्तविक दुनिया में
आकार लेना चाहा तो उनमें तब तक ही आत्मीयता दिखाई दी, जब तक वैचारिक
रूप से दोनों तरफ़ से एक जैसी समान बातें होती रहीं. दोनों तरफ़ से एक-दूसरे की तारीफ़
के क़सीदे काढ़े जाते रहे. इससे ज़रा सा भटकते ही रिश्ते ख़त्म. आभासी दुनिए के ऐसे
सम्बन्धों में वे तमाम लोग शामिल रहे जिन्होंने अपने को बिलकुल पारिवारिक स्तर पर
हमसे जोड़ कर प्रस्तुत किया. ऐसे लोग भी सामने आये जिन्होंने अपनी परेशानियों को
आत्मीय रूप में हमसे शेयर किया, उनका समाधान पाया. बहुत से ऐसे लोग सोशल मीडिया के
द्वारा हमसे जुड़े जिन्होंने हमसे बहुत कुछ सीखने का दावा किया. जिन्होंने लेखन
में, फोटोग्राफी में, व्यवहार निर्वहन में, भाषण देने की कला में हमसे बहुत कुछ
सीखने की बात स्वीकारी, मित्र के साथ-साथ हमें अपने गुरुरूप में स्वीकारने का भाव
प्रकट किया. इन संबंधों में वैचारिकी महज यहीं तक सीमित नहीं रही. संबंधों का
एहसास महज यहीं तक नहीं रहा. आभासी दुनिया के संबंधों को, सोशल मीडिया के आभासीपन
को झुठलाने की कोशिश में ऐसे संबंधों का विस्तार इस आभासी दुनिया से बाहर आकर
जमीनी रूप में अपना स्वरूप विकसित करने लगा.
बहुत से लोगों का घर आना भी हुआ. रुकना, रहना हुआ, साथ घूमना-फिरना हुआ. हमारा भी बहुत से
लोगों के घर जाना हुआ. यदि किसी कारणवश एक-दूसरे के घर आना-जाना नहीं हो सका तो
कहीं न कहीं, किसी न किसी कार्यक्रम में मुलाकातों के द्वारा आभासी संबंधों को
वास्तविकता का जामा पहनाने की कोशिश की गई. ऐसे प्रयासों के बाद भी, लगातार
मिलने-जुलने, बातचीत के बाद भी ये सम्बन्ध तनिक सी वैचारिकी मेल न खाते ही समाप्त
हो गए. जमीनी संबंधों के मुकाबले बहुत ही कमजोर आधारभूमि पर बने इन संबंधों ने एक झटके
में न केवल अपनी फ़्रेंड लिस्ट से बाहर किया बल्कि कई बार ब्लॉक भी किया. महज इतने
से अभी संबंधों का समापन होना शायद आभासी दुनिया को मंजूर नहीं था सो उनको
वास्तविकता का जो आँचल ओढ़ाया गया था, उसे भी समाप्त किया गया. न सिर्फ़ ख़त्म बल्कि
ऐसे समाप्त किया जैसे कभी मिले नहीं, कभी जाना ही नहीं. आख़िर
आभासी से वास्तविकता में जाना और उसे बनाए रखना अत्यंत कठिन होता है.
ऐसी स्थिति कष्टकारी होती है, खासतौर से उस स्थिति में जबकि संबंधों
का निर्वहन दिल से करने की बात कही जा रही हो. पिछली कई बार की तरह पुनः निवेदन कि
हम भी साधारण से इंसान हैं. हमारे लेखन, किसी कार्य से हमारे
प्रति कोई विशेष धारणा न बनाएँ. किसी तरह का आदर्श, मानक हममें
न तलाशें. एक पल में हमें आदरणीय बना-बताकर, सम्मानजनक दर्जा
देने के बाद अगले ही पल धरती पर पटक देते हैं. कृपया सम्बन्धों को उसी स्थिति तक बनाए
रखें, जितने आप हमसे निभा सकें. आभासी दुनिया के बहुत से
पुरोधाओं के अतीत को देखते हुए लगता है कि बहुतों से तकनीकी रूप से तो पिछड़े हैं
ही, अब कई बार लगता है कि सोशल मीडिया के या फिर आभासी दुनिया के संबंधों का
निर्वहन करने में भी हम पिछड़े ही हैं. पता नहीं कब ऐसे संबंधों का निर्वहन करने की
योग्यता हममें विकसित हो पायेगी, हो भी पायेगी या नहीं?
आखिर मिल ही गया आपका ये संतुलित चिंतन से भरा लेख। एकदम सच्चाई के करीब है सादर नमन और आभार 🙏🙏
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