कुछ
बातें जिनका उत्तर नहीं मिलता वे ये जानते हुए भी कि उनका सटीक उत्तर नहीं मिलना
है, लगातार परेशान करती रहती हैं. ऐसा हमारे साथ पिछले लम्बे समय से हो रहा है. इन
बातों में मुख्यतया जो बातें हैं वे ईश्वरीय शक्ति, ईश्वरीय सत्ता से सम्बंधित
हैं. मन में लगातार ऐसे सवाल उमड़ते हैं कि क्या वाकई ईश्वर जैसी कोई चीज होती है? क्या
जिस जगह को सिद्ध स्थान मानकर लोगों द्वारा पूजा जाता है वहाँ वाकई कोई सिद्धि होती
है? क्या वाकई अपनी कामना ईश्वर के सामने रखने से वह पूरी होती है? क्या धार्मिक
कृत्य करने से भगवान के प्रसन्न होने वाली बात सत्य है? ऐसे सवाल एक हिन्दू धर्म
से सम्बंधित ही नहीं उभरते बल्कि सम्पूर्ण विश्व में जितने तरह के धर्म हैं,
धार्मिक क्रियाकलाप हैं, धार्मिक स्थल हैं उन सभी को लेकर ऐसे विचार उमड़ते रहते
हैं. सनातन धर्म से सम्बंधित होने का कारण स्पष्ट है कि सनातनी धार्मिक क्रियाकलापों
से ही परिचय होता रहा है, अतः सवाल भी उसी से सम्बंधित सामने आना स्वाभाविक है.
यहाँ
अपनी बात आगे कहने से पहले एक तथ्य स्पष्ट कर देना उचित रहेगा, क्योंकि देश में
धर्म के नाम पर जिस तरह से कुतर्क दिए जाते हैं वे सही बातों को, तथ्यों को भी
हाशिये पर खड़ा करवा देते हैं. यहाँ स्पष्ट कर दें कि इस लेख का तात्पर्य किसी भी
रूप में किसी तरह से ईश्वरीय शक्ति का विश्लेषण करना नहीं है. किसी भी तरह से किसी
की धार्मिक मान्यताओं पर चोट करना नहीं है. किसी की ईश्वरीय आस्था पर प्रश्नचिन्ह
लगाना नहीं है. किसी भी व्यक्ति के लिए ईश्वर का मानना या न मानना उसका अपना
व्यक्तिगत विचार है. हाँ, यदि किसी पर इस तरह के विचारों को यदि थोपा जाता है तो
वह नितांत गलत है. यहाँ हमारा विचार महज इतना है कि जिस तरह से समाज में धार्मिक
लामबंदी करते हुए लोगों के विचारों से, लोगों की मनोभावनाओं से, लोगों की आस्था से
खिलवाड़ किया जाता है वह किसी भी रूप में धर्म नहीं है और न ही ईश्वरीय इच्छा है. हम
सभी आये दिन अपने आसपास किसी न किसी रूप में ईश्वरीय शक्ति से सम्बंधित होने वाली
कोई न कोई घटना अवश्य देखते होंगे. धार्मिक कृत्यों का होना तो ठीक है कि वह
सम्बंधित व्यक्ति के मन को संतुष्टि दे रहा है. कोई व्यक्ति अपनी परेशानियों का
समाधान ऐसे कृत्य में खोजता है तो बुरा कहाँ है. इसमें बुराई तब शामिल हो जाती है
जबकि ऐसे किसी कृत्य के लिए असामाजिक कृत्य करने शुरू कर दिए जाएँ. किसी भी
धार्मिक कृत्य में बुराई तब है जबकि वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ धोखाधड़ी करने
लगे. और यदि पूर्वाग्रह से मुक्त होकर देखा जाये तो आज यही हो रहा है. धर्म के नाम
पर ठगी का धंधा तेजी से फ़ैल रहा है. गली-गली छोटे-बड़े धार्मिक केन्द्रों का खुलना
इसी का द्योतक है कि आम नागरिक अपनी धार्मिक आस्था को किसी दूसरे के हाथ का खिलौना
बनाये है.
मनोकामनाओं
का पूरा होना, किसी विशेष धार्मिक व्यक्तित्व का महिमामंडन, किसी ईश्वर विशेष के
नाम से स्थानों का पूज्य हो जाना आदि ऐसी स्थितियाँ हैं जिन पर किसी भी व्यक्ति को
गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. यहाँ विचारणीय बिंदु यह है कि क्या वाकई
ईश्वर से कुछ माँगने से वह प्राप्त होता है? क्या ईश्वरीय सत्ता इंसानों के सारे
कार्यों को पूरा करने का माध्यम है? कभी कोई व्यक्ति ईश्वरीय शक्ति से माँगे कि उसके
चार हाथ हो जाएँ,
तो क्या ऐसा हो जायेगा? क्या किसी इन्सान के ईश्वर
से यह मनोकामना करने कि उसकी चार आँखें हो जाएँ, पूरी हो जाएगी?
कोई वाहन-विहीन व्यक्ति ईश्वर से कामना करे कि उसके घर की कोई वस्तु
कार में बदल जाए, तो क्या ऐसा संभव है? प्राकृतिक रूप से स्त्री-पुरुष के संसर्ग के, नौ महीने
गर्भधारण के बजाय इन्सान के पसंद की कोई वस्तु उसकी संतान के रूप में बदल जाए,
क्या ईश्वर उस व्यक्ति की ऐसी मनोकामना पूरी कर देगा? इसी तरह क्या किसी व्यक्ति ने अपने घर में लगे पौधों में सारे मौसमी फलों के
निकल आने की कामना कभी की है? विचार करिए कि असल में एक व्यक्ति
भगवानरुपी शक्ति से क्या माँगता है? नौकरी, परीक्षा में पास होना, विवाह, संतान,
तरक्की, स्वास्थ्य, रोजगार आदि. देखा जाये तो ये सारे काम कहीं न कहीं, किसी न
किसी रूप में इंसानों के हाथ में ही हैं. बस उपयुक्त प्रयासों और उपयुक्त समय में
ये काम संपन्न होते हैं.
ऐसे में
आँख बंद करके कहीं भी, किसी को भी, किसी भी स्थान को ईश्वरीय शक्ति से संपन्न मान
लेना, उसी को ईश्वर मान लेना सिवाय अन्धविश्वास के कुछ नहीं. ऐसे अंधविश्वासों ने
ही प्रकृति के प्रति भी उपेक्षा का भाव पैदा कर रखा है. यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अपनाते हुए विचार किया जाये तो प्रकृति को ही ईश्वरीय शक्ति से संपन्न माना जा
सकता है. उसी के द्वारा संचालित क्रियाएँ ही ईश्वर का आभास देती हैं. उसका विनाश
करते हुए अन्य किसी भी रूप में ईश्वर की भक्ति करना सिवाय मूर्खता के कुछ नहीं.
अपने-अपने विचार, अपनी-अपनी श्रद्धा-आस्था-भक्ति के अनुसार सभी को अपना ईश्वर
मानने, बनाने का अधिकार है सो वह भले ही ऐसा करता रहे मगर असल सत्य यही है कि
ईश्वर इन्सान द्वारा निर्मित कृति है और वही इन्सान उसी कृति के हाथों की कठपुतली
बना हुआ है. बाकी तो समझने की आवश्यकता है, जो किसी के द्वारा हो नहीं रहा है. आज
के दौर में जबकि चारों तरफ परेशानियों का बोलबाला है, अपराध है, कैरियर की चिंता
है तब अपने प्रयासों पर भक्ति का मुलम्मा चढ़ा लेना सबको सहज लगता है. शायद यही
कारण है कि आज युवा वर्ग बहुत तेजी से धर्म की तरफ मुड़ रहा है, नित्य ही नए-नए
ईश्वर का निर्माण कर रहा है. देखिये आसपास, कहीं कोई नया ईश्वर किसी नए नाम के
साथ, नए रूप के साथ किसी को ठग तो नहीं रहा.
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