04 मार्च 2019

धुँए और रफ़्तार में सिमटती ज़िन्दगी


हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाता चला गया, एक गीत की ये पंक्ति आज के किशोरों को बड़ा उत्साहित करती है. इस एक पंक्ति के उत्साह में वे जगह-जगह, कहीं छिपे भाव में, कहीं खुलेआम उन्मुत रूप में सिगरेट फूँकते दिख जाते हैं. शहर की एक सड़क के किनारे खुले तमाम सारे कोचिंग सेंटर्स के आसपास झुण्ड के झुण्ड में दिखते किशोर और उन झुंडों पर तैरते धुंए के बादल. ये किसी एक शहर का दृश्य नहीं होता आजकल, लगभग सभी शहरों में ऐसी स्थिति दिख रही है. सिगरेट का धुआँ उड़ाते इन किशोरों को उस गीत की धुआँ उड़ाती पंक्ति तो उत्साहित कर जाती है मगर उसके ठीक पहले का हिस्सा याद नहीं रहता. वह हिस्सा जो साफ़-साफ़ कहता है कि मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया. इस हिस्से को ये युवा, किशोर कई तरीके से भुलाने का काम कर रहे हैं. बिना फ़िक्र के फ़िक्र को उड़ाने की कोशिश और उसी कोशिश में तेज रफ़्तार बाइक के द्वारा ज़िन्दगी को भी उड़ाते जा रहे हैं.


आपको आश्चर्य लगे मगर सच यही है. रुके हैं तो धुंए में खोए हैं और चल रहे है तो हवा से बातें कर रहे हैं. ये एक तरह की जीवन-शैली बनती जा रही है आज के बहुसंख्यक युवाओं की, किशोरों की. ज़िन्दगी को जीने की कोशिश में ज़िन्दगी से ही खिलवाड़ करते हुए इन बच्चों को आभास नहीं है कि वे क्या करने की कोशिश में अपने घर से बाहर निकलते हैं और क्या करने लग जाते हैं. भौतिकतावादी दौड़ में ऐसे बच्चों के माता-पिता भी शामिल दिखाई देते हैं. लाड़-प्यार के चलते बच्चों के लिए सभी अत्याधुनिक संसाधन सहज मुहैया करवा दिए जाते हैं. ऐसे में बच्चों को न तो धन की महत्ता समझ आती है, न समय की, न कैरियर की और न ही अपनी ज़िन्दगी की. माता-पिता के प्यार को, उनके द्वारा मेहनत से जुटाई जाने वाली सुविधाओं को, उनके द्वारा एक आवाज़ पर उपलब्ध करवाए जाने वाले संसाधनों को ये बच्चे अपना अधिकार सा समझते हैं. उनकी आवश्यकताओं की सहज पूर्ति हो जाने के कारण वे इसकी महत्ता तो समझते ही नहीं हैं, दूसरों को भी तिरस्कृत समझते हैं. 

अक्सर ऐसे बहुत सारे बच्चों को कॉलेज आते-जाते समय, शाम को नियमित घूमने की अपनी आदत के समय देखते हैं. कई बार मौका ऐसा आता है कि कोई न कोई आकर टकरा जाता है. कोई हमसे टकराता है, कोई कभी डिवाइडर से टकराता है, कभी किसी दूसरे वाहन से टकराता है. समझाने की स्थिति में उनके द्वारा ऐसा व्यवहार देखने को मिलता है जैसे लगता है कि बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो. उनके हाव-भाव ऐसे लगते हैं जैसे कई सारी जिंदगियां उनके माता-पिता ने पैसे के बल पर खरीद कर अपनी अलमारी में सुरक्षित कर रखी हैं. एक ये चली जाएगी तो दूसरी वाली से काम चला लेंगे. बहरहाल, ये बच्चे दूसरे के समझाने से क्या ही समझेंगे, जब कि वे अपने ही माता-पिता की बात नहीं समझ रहे हैं. कहना न होगा कि धुँए और रफ़्तार के सहारे ये युवा, किशोर ज़िन्दगी की खतरनाक यात्रा ही कर रहे हैं. इससे वे अभी भले ज़िन्दगी का साथ निभा पायें मगर भविष्य में ज़िन्दगी अवश्य ही उनका साथ देने में आनाकानी करने लगेगी.

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