अक्सर
किसी न किसी बड़े-बुजुर्ग के द्वारा समझाने की नीयत से ऐसा कहा जाता है कि सपने बड़े
देखने चाहिए, महत्त्वाकांक्षा बड़ी होनी चाहिए. यदि सपने बड़े होंगे,
महत्त्वाकांक्षा बड़ी होगी तो उसके लिए प्रयास करने के दौरान अन्य सपने या
महत्त्वाकांक्षा पूरी हो सकती है. संभव है कि ऐसा सच हो कि बड़े सपने के लिए प्रयास
होने से उसके सापेक्ष कोई न कोई छोटी अपेक्षा पूरी हो जाये. ऐसा उनके अनुभवों के
आधार पर कहा जा सकता है किन्तु यदि सामाजिक अनुभवों की बात करें, व्यक्तिगत अनुभव
की बात करें तो ऐसा हमेशा सच नहीं होता है. अक्सर ऐसी स्थिति में यदि बड़े सपने
पूरे न हो पा रहे हैं या फिर कोई बड़ा लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पा रहा है तो प्रयास
करने वाले व्यक्ति को निराशा उत्पन्न होने लगती है. कई बार उस व्यक्ति को बड़े
प्रयासों, लक्ष्यों के सापेक्ष किसी न किसी छोटी स्थिति से समझौता सा करना पड़ता
है. यह स्थिति हर उस व्यक्ति के लिए कष्टकारी होती है जो किसी बड़े लक्ष्य के लिए
कृत-संकल्पित था. ये कहना कि सफलता न मिलने का अर्थ यह है कि सफलता का प्रयास पूरे
मन से नहीं किया गया, सभी सन्दर्भों में उचित नहीं. आज के प्रतियोगी दौर में कई
बार बहुत छोटे-छोटे अंतर से सफलता-असफलता देखने को मिलती है. ऐसे में ईमानदार प्रयास
करने वाले की नीयत पर संशय करना उसकी ईमानदारी पर सवाल खड़े करना होता है.
बड़े
लक्ष्य तय करने चाहिए, बड़े सपने देखने चाहिए मगर उनके साथ-साथ व्यक्ति को अपनी
क्षमता, अपने कौशल, अपने व्यक्तित्व का भी आकलन कर लेना चाहिए. कई बार व्यक्ति
अपनी क्षमताओं का आकलन किये बिना ही बड़े-बड़े लक्ष्य तय कर लेता है. ऐसे में असफलता
मिलने पर वह निराशा के गर्त में चला जाता है. इसके अलावा कई बार व्यक्ति अपने आकलन
करने में खुद को सक्षम पाता है, किसी भी बड़े लक्ष्य के प्रति खुद को समर्पित मानता
है, अपनी क्षमताओं को यथोचित पाता है, इसके बाद भी अपने लक्ष्य के प्रति असफल रहता
है. ऐसे में भी वह निराश हो उठता है. यदि ऐसे अवसरों किसी भी व्यक्ति को निर्धारित
लक्ष्य से कम पर, अपने देखे या तय किये गए सपने से कम पर रुकने को कहा जाये तो वह
स्थिति भी उसे सहज नहीं होती है. ऐसे हालातों में भी समस्या उत्पन्न होना
स्वाभाविक है.
ऐसी
स्थिति में किसी भी व्यक्ति को जो बड़े-बड़े लक्ष्य निर्धारित करना चाहता है वह बजाय
एक बड़ा लक्ष्य बनाने के उसकी राह में आने वाले छोटे-छोटे पड़ावों को अपना लक्ष्य
बनाते हुए उन पर सफलता प्राप्त करे. अपने
किसी बड़े सपने के बजाय उसके छोटे-छोटे सपने देखते हुए उन्हें पूरा करते हुए उसी सफलता
को बड़ा बनाने के लिए प्रयास करे. इससे एक तो ये होगा कि उस व्यक्ति के द्वारा तय
किये गए छोटे-छोटे लक्ष्यों का पूरा होना ही उसमें विश्वास बढ़ाएगा. उसके बढ़े हुए आत्मविश्वास
में वह लगातार सफलता प्राप्त करता रह सकता है. छोटे-छोटे लक्ष्यों की पूर्ति से
किसी भी व्यक्ति को अपने बड़े लक्ष्य पर पहुँचने का मार्ग सहज और सरल समझ आएगा. ऐसा
होने से उसके प्रयासों में जबरन किसी तरह का बोझ पड़ता नहीं दिखाई देगा. इसके
साथ-साथ वह बिना किसी तरह की निराशा ओढ़े सतत आगे बढ़ता जायेगा. यही छोटी-छोटी महत्त्वाकांक्षाएं
पूरी होते-होते बड़ा रूप धारण कर लेंगी.
प्रत्येक
व्यक्ति को, भले ही उसमें कौशल हो, भले ही उसके काबिलियत हो, भले ही उसमें क्षमता
हो यह ध्यान रखना चाहिए कि जरूरी नहीं कि सोचा हुआ हर सपना, हर महत्त्वाकांक्षा
पूरी ही हो. ऐसे में अधूरे ख्वाब, अपूर्ण महत्त्वाकांक्षा असफलता का एहसास कराती है.
असफल होने का यही एहसास व्यक्ति को अवसाद की स्थिति में ले जाता है, निराशा के आगोश
में ले जाता है. इससे बचने के लिए बेहतर है कि छोटे-छोटे रास्तों से, छोटी-छोटी
सफलताओं को साथ लेकर एक बड़ी सफलता बनाई जाये. एक बड़ा सपना सच किया जाये.
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