मन के भ्रम बहुत परेशान करते हैं. कई बार मन में कुछ और
होता है और हो कुछ और जाता है. कई बार ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सोचने और करने के
बीच में तारतम्य नहीं बन पाता है. आज
के दौर में जबकि सभी इन्सान किसी न किसी अभीष्ट की चाह में भटक रहे हैं, तब उनके
लक्ष्य में किसी भी तरह की कमी इंसानों को लक्ष्य से न केवल भटकाती है वरन इन्सान
को भ्रमित भी करती है. इसके लिए सबसे पहले किसी भी व्यक्ति को अपने आपको नियंत्रित
रखना आना चाहिए. असल में होता यह है कि मन पर नियंत्रण बनाये रखना किसी भी व्यक्ति
के लिए बहुत कठिन होता है. मन का आवेग बहुत होता है, एक पल में वह अच्छे की कामना
करता है ठीक उसी पल में वह बुरे की भी आशंका से सिहर जाता है. एक पल में वह खुद
उसी व्यक्ति के साथ होता है ठीक उसी पल वह उसी व्यक्ति से कोसों दूर पहुँच जाता
है. इस तरह की प्रवृत्ति वाले मन का नियंत्रण करना किसी भी उस व्यक्ति के लिए
अत्यंत दुष्कर हो जाता है जो भावनात्मक रूप से समाज से जुड़ा होता है.
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