इतनी रात को मेरे आँसुओं का सबब,
कौन समझेगा देर रात में उठ-उठकर.
उसे भरेगा कौन, किस तरह ये बता दो,
जो जगह चले गए हो खाली छोड़ कर.
हम हैं नादान, मासूम पता है तुम्हें तो,
कैसे संभालें ये जिम्मेवारी इस कदर.
तुम कहीं भी रहो साथ रहना पड़ेगा,
चल रहे हैं तुम्हारी ही दिखाई डगर.
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सादर नमन....
2005-2019
16 मार्च
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