आत्मकथा कुछ सच्ची कुछ झूठी पूर्ण होकर प्रकाशनाधीन है. इसके बाद प्रेम कहानियों पर आधारित पुस्तक 'हर पल जीवन, हर पल प्रेम' का लेखन आरम्भ कर दिया गया है. इसी कड़ी में एक कहानी निम्नवत है..... ये कहानियाँ हमारी होकर भी हमारी नहीं. आप सबकी न होकर भी आप सबकी हैं. बस इनका एहसास किया जाना आवश्यक है. तो करिए इनका एहसास और एक बार फिर जीवंत करिए उसी प्रेम भरे पल को.
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एक छोटे से शहर में कई वर्षों से रहने, जानने के बाद आज पहली
बार लड़की उस लड़के के साथ अकेले यात्रा कर रही थी. उस छोटे से शहर में जहाँ कम
आबादी के चलते लोग क्या कहेंगे का संकोच होने के कारण वह लड़की कभी भी लड़के के साथ
न पैदल घूमने निकली न कभी उसकी बाइक पर.
ट्रेन अपनी स्पीड से दौड़ी जा रही थी. दोनों का दिल भी उसी तेजी
से धड़क रहा था. दोनों के बीच खूब सारी बातें हुईं. खूब हँसी-मजाक भी हुआ. लड़के का
दिल कर रहा था कि ये सफ़र कभी ख़तम न हो, बस ऐसे ही चलता रहे क्योंकि उसे पता था कि
ये साथ बस इतना ही है. लेकिन ट्रेन को एक जगह से चलकर अपने गंतव्य पर पहुँचना ही
था. उन दोनों के पास उतना ही समय था, जिसे वे अकेले में पूरी आज़ादी से बिताना चाह
रहे थे. बिता भी रहे थे.
लड़का बहुत कुछ कहना चाहता था मगर समय ने कभी इसकी इजाजत नहीं
दी. अब तो समय ने उसके पैरों में बंधन बाँध दिए थे. उसके साथ यात्रा कर रही, हँसती
वह लड़की उसके साथ होकर भी उसकी न थी. उसके पास होकर भी उससे बहुत दूर थी. अपनी सीट
के सामने बैठी एक महिला को उन्होंने अपनी तरफ ताकते देखा तो लड़के ने शरारत से लड़की
को छेड़ा. “वो महिला सोच रही होगी कि ये कैसी लड़की इसके साथ बैठी है. जरा भी मैच
नहीं कर रही.”
लड़की ने भी कोहनी मारते हुए बनावटी गुस्सा दिखाया, “तो उसी के
बगल में बैठ जाओ. खुद को बहुत स्मार्ट न समझो.”
बात-बात पर इस तरह परेशान करना, चिढ़ाना लड़के को शुरू से ही
अच्छा लगता था. लड़की का गुस्सा हो जाना, नाराज होकर कुछ देर न बोलना या फिर कुछ
उल्टा-सीधा बोल देना दिल ही दिल में उसके प्रति और आकर्षण पैदा कर जाता.
एकसाथ कोल्ड ड्रिंक पीते, एकसाथ एक टिफिन में खाना खाते, एक
दूसरे को छेड़ते कब वे अपने शहर के प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े थे, उन्हें पता ही न चला. शाम
गहराकर रात में बदलने वाली थी. सडकों को अँधेरे ने घेरना शुरू कर दिया था. लड़के ने
लड़की से कहा “हमारे साथ चलो रिक्शे से. पहले तुमको घर छोड़ देते हैं.”
लड़की ने फिर संकोच से कहा “न, न, मैं चली जाऊँगी. लोग देखेंगे
एकसाथ तो न जाने क्या कहें. अब तो और कहेंगे.”
लड़के का रिक्शा कुछ दूरी बनाकर लड़की के रिक्शे के पीछे तब तक
चलता रहा जब तक कि वह सुरक्षित अपने घर न उतर गई. छोटे से शहर के बड़े से अनजाने भय
में दो दिल बस अलग-अलग चलते रहे.
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