02 फ़रवरी 2019

लोक कल्याणकारी बजट


चुनावी वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अंतरिम बजट के द्वारा एक तरफ जनमानस को खुश करने का काम किया है वहीं विपक्षियों को साफतौर पर चेताया सा है कि अभी उनके तरकश में तीर बकाया हैं. इस बजट में करदाताओं का, वेतनभोगियों का, किसानों का ध्यान तो रखा ही गया है विशेष बात यह रही कि श्रमिक वर्ग का भी ख्याल रखा गया है. अभी तक के बजट में संभवतः ऐसा कम ही देखने को मिला है कि असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए किसी तरह की योजना का प्रावधान किया गया हो. इस बार साठ वर्ष से अधिक आयु के असंगठित कामगारों को पेंशन सुविधा का आरम्भ किया गया है. इस बजट में इनके अलावा और भी ऐसे प्रावधान किये गए हैं जिनको देखते हुए इसे लोककल्याणकारी बजट कहा जा सकता है. आमजनमानस के हितों के साथ-साथ देश की आर्थिक, सामरिक स्थिति के सम्बन्ध में भू पुख्ता कदम उठाये जाने से स्पष्ट होता है कि सरकार ने किसी एक पक्ष की तरफ ही अपना ध्यान नहीं लगाया है.


लोककल्याण की भावना निहित होने के चलते ही अभी तक विपक्षियों द्वारा, विशेषज्ञों द्वारा बजट की उन स्वरों में आलोचना नहीं की जा सकी है, जैसी कि विगत वर्षों में होती रही है. केंद्र में किसी भी सरकार द्वारा बजट का प्रस्तुत करना रहा हो मगर उसके प्रावधानों पर तत्कालीन विपक्ष सदैव हमलावर बना रहता था. संभवतः इस बार ऐसा देखने को मिला है जबकि बजट के द्वारा विपक्षियों को आलोचना करने का, सरकार पर वार करने का अवसर नहीं मिल पाया है. यह इस बजट की विशेषता है कि इसके द्वारा देश के लगभग अस्सी प्रतिशत नागरिकों तक को लाभान्वित करने का प्रयास किया गया है. मझोले-छोटे किसानों, असंगठित मजदूरों, कामगारों आदि के साथ-साथ मध्यमवर्गीय वेतनभोगियों को आयकर छूट सीमा बढ़ाकर लाभ के दायरे में शामिल किया है.  

देश में उदारीकरण का दौर आने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से सरकारों ने लोककल्याणकारी कदम उठाये जाने की तुलना में व्यापारिक कदम उठाने को ज्यादा महत्त्व दिया था. आयकर छूट सीमा में वृद्धि किये जाने की आशा कई वर्षों से वेतनभोगी व्यक्ति लगाये हुए था मगर ऐसा अबकी बजट में हो सका है. इसके अलावा पीएफ खाताधारकों को दुर्घटना बीमा, बैंक खातों में ब्याज पर टैक्स की सीमा में वृद्धि, ग्रेच्युटी में बढ़ोत्तरी आदि ने मध्यमवर्ग को संतुष्ट किया है. इस बजट को देखकर इसे बड़े उद्योगपतियों का बजट नहीं कहा जा सकता है. जैसा कि पिछले बजट के दौरान विपक्षियों द्वारा कहा जाता था. वर्तमान केंद्र सरकार ने इस बजट के द्वारा बड़े-बड़े उद्योगों के बजाय छोटे-छोटे वर्ग तक पहुँच बनाने की कोशिश की है. इसे भले ही चुनावी दाँव कहा जाये मगर इसके द्वारा मध्यमवर्ग को राहत मिली है. आयकरदाताओं के बीच संतुष्टि का भाव जन्मा है. 

पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार ने जिस तरह से सख्ती के साथ कदम उठाते हुए नोटबंदी और जीएसटी को लागू किया, उससे यह तो स्पष्ट हुआ था कि सरकार आने वाले समय में मध्यमवर्ग को लाभान्वित करते हुए राहत देगी. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को कर के दायरे में शामिल करते हुए भी मध्यमवर्ग को कर से राहत प्रदान करवाना है. सरकार समझती है कि जीएसटी के द्वारा कारोबारी अपने ऊपर आने वाला कर जनता के ऊपर स्थानांतरित कर देंगे. इसके चलते वह जनता पर, आमजनमानस पर दोहरा भार डालने के मूड में नहीं दिख रही थी. यही कारण है कि आयकर छूट सीमा को बढ़ाया गया है. विरोध के नाम पर विरोध तो ऐसे भी दिखाई देने लगा है कि छोटे किसानों को दिए जाने वाले वार्षिक 6000 रुपये को भी प्रतिदिन के हिसाब से आकलन करके इसे नाकाफी बताया जाने लगा है. जबकि बजट में स्पष्ट कहा गया है कि यह राशि दो-दो हजार रुपये की तीन किश्तों में दी जाएगी. इसके अलावा वर्तमान बजट को राजकोषीय घाटा बढ़ाने वाला बताया जाने लगा है. यदि विगत वर्षों के राजकोषीय घाटे पर निगाह डालें तो स्पष्ट रूप से समझ आएगा कि वर्ष 2011-12 के बाद से राजकोषीय घाटा लगातार कम ही हुआ है. ऐसे में सरकार खुद अपने स्तर से प्रयास करेगी कि राजकोषीय घाटा वर्ष 2017-18 के 3.5 से बहुत ज्यादा न बढ़े.


फ़िलहाल, विपक्षियों के पास इस बजट की बुराई करने के, आलोचना करने के बिंदु नहीं हैं. किसी भी दृष्टि से इस बजट को बड़े कारोबारियों से प्रभावित बजट नहीं कहा जा सकता है. किसी भी रूप में ऐसी कोई योजना नहीं बनाई गई है जो सिर्फ पूंजीपतियों की सहायता कर रही हो. निसंदेह पहली बार देश के उस छोटे से तबके का ध्यान रखा गया है जो संगठित नहीं है, जिसके पास कोई भविष्यगत संसाधन नहीं हैं, वृद्धावस्था में अपने जीवन सञ्चालन हेतु कोई आर्थिक मदद नहीं है. ऐसे में कोई कुछ भी कहे मगर वर्तमान बजट लोक कल्याणकारी बजट है.

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