देश के इतिहास में नेताजी
सुभाष चन्द्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपने जीवन
में इतिहास रचा किन्तु उनकी मृत्यु को लेकर आज तक संदेह बना हुआ है. रहस्यमय ढंग
से इन दोनों के अंतिम समय की वास्तविकता को छिपाया गया है. गुदड़ी के लाल कहे जाने
वाले शास्त्री जी की ताशकंद में मौत ऐसा ही एक रहस्य है जो आज भी रहस्य ही है. भारत
सरकार गोपनीयता एवं विदेशी संबंधों का हवाला देकर इससे सम्बंधित दस्तावेज़ उजागर करने
से इंकार कर रही है जबकि शास्त्री जी के परिवार के सदस्य इस रहस्य पर से पर्दा उठाने
की मांग कर रहे हैं. उनके परिजनों द्वारा बराबर संदेह जताया जाता रहा है कि उस समय
शास्त्रीजी की देखरेख में लापरवाही बरती गई. वे सवाल उठाते हैं कि यह कैसे संभव है
कि प्रधानमंत्री के कमरे में टेलीफोन और चिकित्सा सुविधा न हो.
एक आरटीआई के द्वारा जब
शास्त्री जी की मृत्यु से सम्बंधित दस्तावेज़ सार्वजनिक करने की माँग की गई तो
प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से कहा गया कि मृत्यु के दस्तावेज़ सार्वजनिक करने से
हमारे देश के अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध ख़राब हो सकते हैं तथा इस रहस्य से पर्दा उठते
ही देश में उथल-पुथल मचने के अलावा संसदीय विशेषाधिकार को ठेस भी पहुँच सकती है.
एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा
लगाई गई आरटीआई के जवाब में शास्त्री जी की मेडिकल रिपोर्ट से कई बातें सामने आई हैं.
जवाब में बताया गया कि शास्त्री जी अपने निधन से 30 मिनट पहले तक बिलकुल ठीक थे.
15 से 20 मिनट में तबियत खराब हुई और उनकी मौत हो गई. आरटीआई से मिले जवाब के अनुसार
10 जनवरी 1966 की रात 12.30 बजे तक वे बिलकुल ठीक थे. इसके बाद अचानक उनकी तबियत खराब
हुई, जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने डॉक्टर को बुलाया. डॉ० आर०एन० चुग ने पाया कि
शास्त्री की सांसें तेज चल रही थीं और वो अपने बेड पर छाती को पकड़कर बैठे थे. इसके
बाद डॉक्टर ने इंट्रा मस्क्युलर इंजेक्शन दिया. इंजेक्शन देने के तीन मिनट के बाद शास्त्री
का शरीर शांत होने लगा. सांस की रफ्तार धीमी पड़ गई. इसके बाद सोवियत डॉक्टर को बुलाया
गया. इससे पहले कि सोवियत डॉक्टर इलाज शुरू करते रात 1.32 बजे शास्त्री की मौत हो गई.
आश्चर्य की बात है कि न सोवियत
संघ में न भारत में शास्त्री जी की मौत के बाद उनका पोस्टमार्टम भी नहीं करवाया गया
था. शास्त्री जी के परिजन लगातार इस बात को उठाते रहे हैं कि उनकी पार्थिव देह के भारत
आने पर वह सामान्य मृत्यु समझ नहीं आ रही थी. उनके पुत्र अनिल शास्त्री के अनुसार उनका
चेहरा नीला पड़ा हुआ था. आधिकारिक तौर पर यही कहा जाता रहा है कि उनकी मौत दिल का दौरा
पड़ने से हुई. इस मामले में वहां उनकी सेवा में लगाए गए एक बावर्ची को हिरासत में लिया
गया था, लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया गया.
यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य
यह है कि 11 जनवरी 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री
की सोवियत संघ के ताशकंद में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी. ताशकंद में
वे पाकिस्तान के साथ संधि करने गए थे. देश और शास्त्री जी का परिवार आज भी उनकी
मृत्यु का रहस्य सुलझने के इंतजार में है.
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