आजकल मोबाइल का इस्तेमाल आवश्यकता से अधिक
अनिवार्यता जैसा लगने लगा है. प्रत्येक व्यक्ति एक-एक मोबाइल से ज्यादा मोबाइल एकसाथ
उपयोग में लाते दिखाई दे रहा है. स्थिति ये आ गई है कि लोगों से घिरे होने के बाद भी
व्यक्ति मोबाइल में व्यस्त रहता है. सुबह उठने के बाद सबसे पहला काम अपना मोबाइल देखना
होता है. नित्यप्रति के कितने भी छोटे-बड़े काम भुला दिए जाएँ किन्तु समय-समय पर नियमित
रूप से मोबाइल की बैटरी को चार्ज करना कोई नहीं भूल रहा है. मोबाइल के प्रति आवश्यकता
से ज्यादा अनिवार्यता जैसी स्थिति उसके प्रति लोगों की दीवानगी दर्शाती है. अब यह दीवानगी
बड़ों में ही नहीं वरन बच्चों में भी देखने को मिल रही है. वर्तमान हालातों को देखते
हुए बहुसंख्यक अभिभावक ही अपने बच्चों को मोबाइल दिलवा रहे हैं. ऐसा करने के पीछे उनकी
मानसिकता बच्चों से संपर्क में रहना है. बच्चों का किसी तरह की समस्या में आ जाने पर
अपने परिचितों से संपर्क बनाये रखना इसका उद्देश्य है. इस दृष्टि से इसमें कोई बुराई
नहीं दिखती है. बुराई इस दृष्टि में दिखाई देती है कि बहुतेरे बच्चे साधारण मोबाइल
के बजाय स्मार्ट मोबाइल लिए दिखाई देते हैं. कई अभिभावक स्वयं ही अपने बच्चों को मंहगे
और स्मार्ट मोबाइल दिलवा देते हैं और कुछ बच्चे जिद करके अपने लिए ऐसे मोबाइल खरीदवा
लेते हैं.
मोबाइल का स्मार्ट होना अथवा साधारण होना
चिंता का विषय नहीं वरन उसके द्वारा बच्चों का सोशल मीडिया से लगातार जुड़े रहना, उसमें सक्रियता से सहभागिता
करना चिंता का विषय है. देखा जाये तो मोबाइल आज के बच्चों के लिए बुरा नहीं है. उसके
द्वारा बच्चों को अपने आसपास के परिवेश से, शैक्षिक जगत से,
जानकारियों से सामंजस्य बनाने में बहुत मदद मिली है. बच्चों के लिए मोबाइल
एक तरफ सकारात्मक भूमिका में है तो दूसरी तरफ उसके द्वारा नकारात्मकता भी देखने को
मिल रही है. मोबाइल का उपयोग बच्चों द्वारा अपने ज्ञान के लिए, अपनी जानकारियों के लिए, शैक्षिक उन्नयन के लिए,
आपसी संपर्क के लिए किया जाना तो उचित है किन्तु अब वे उससे भी एक कदम
आगे जाकर सोशल मीडिया में खुद को खपाए जा रहे हैं. ऐसा देखने में आया है कि सोशल मीडिया
से बच्चों को सकारात्मकता कम मिल रही है बल्कि वे इसका दुरुपयोग कर गलत रास्ते को अपनाने
में लग गए हैं. अक्सर वे सोशल मीडिया पर खुद के प्रचार करने जैसी भूमिका में उतर आते
हैं. इसका दुष्परिणाम ये होता है कि वे तमाम तरह से अपनी और दूसरों की फोटो सोशल साइट्स
पर लगाते रहते हैं. कभी-कभी इस तरह का कार्य आपत्तिजनक तो होता ही है साथ में खुद के
लिए जानलेवा भी बन जाता है. किशोरावस्था में अपनी शक्ति, ऊर्जा
को वे गलत तरीके से इस्तेमाल करते हुए जीवन को रोमांचक बनाने में लग जाते हैं. इसके
चलते वे कई बार सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान तक गँवा देते हैं.
सोशल मीडिया के अलावा अनेक तरह की साइट्स
अब बच्चों के हाथ में हैं. वे न केवल किताबी ज्ञान के लिए इन साइट्स पर जा रहे हैं
बल्कि समय से पहले शारीरिक ज्ञान पाने के लिए भी इनका उपयोग करने में लगे हैं. इससे
जहाँ उनके कोमल मन पर गलत असर पड़ रहा है वहीं वे अपने शरीर से, अपनी सेहत से भी खिलवाड़ कर
रहे हैं. देह के गोपन का, शरीर के रहस्यों का, यौन-संबंधों का सुख भोगने के चक्कर में वे कई बार गलत हाथों में खेल जाते हैं.
यह न केवल उनका शारीरिक शोषण करवाता है बल्कि मानसिक और आर्थिक शोषण भी करवाता है.
इसके साथ-साथ वे अपने भविष्य से, अपने कैरियर से भी खिलवाड़ कर
रहे होते हैं. इसके साथ-साथ बालमन पर एक तरह का अनावश्यक दबाव बना ही रहता है. घंटों
ऑनलाइन रहने, दोस्तों से अनावश्यक चैट करने, गैर-जरूरी गेम में लगे रहने के कारण उनकी आँखों पर नकारात्मक असर पड़ता है.
मोबाइल में व्यस्त रहने से पहले बच्चों का पूरा ध्यान खेलने-कूदने में लगा होता था.
वे आपस में लड़-झगड़ कर, मैदान में खेल-कूद कर अपनी शारीरिक ऊर्जा
का सही इस्तेमाल कर लिया करते थे. इससे उनकी नकारात्मकता भी निकल जाया करती थी. अब
ऐसा नहीं हो पा रहा है. एक तरफ बच्चे मैदानों में खेलने तो जा ही नहीं पा रहे तो उससे
भी उनमें आलस्य का विस्तार हो रहा है, मोटापे का प्रभाव बढ़ रहा
है उसके ऊपर से मोबाइल ने उन्हें एक जगह बिठाकर रख दिया है. इससे भी वे आलस्य और मोटापे
का शिकार और तेजी से होने लगे हैं.
स्कूल के बाद, होमवर्क के बाद वे घर के
कमरों तक ही सीमित रह गए हैं. इससे वे परिवार और समाज से दूरी महसूस करने लगे हैं.
इससे परिवार का आपसी सामंजस्य भी बिगड़ रहा है. ये अलग बात है कि मोबाइल ने संचार क्षेत्र
में एक क्रांति की है. इससे बच्चों और बड़ों को संपर्क बनाने में, अपना ज्ञान बढ़ाने में, जानकारी प्राप्त करने में,
रचनात्मकता का उपयोग करने में सहायता मिली है लेकिन इसका बहुत अधिक प्रयोग बच्चों और बड़ों, दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है. यह समझने वाली बात है कि मोबाइल और
सोशल मीडिया के अपने सकारात्मक नकारात्मक पहलू हैं. यह हमें विचार करना होगा कि हमारे
लिए और हमारे बच्चों के लिए क्या लाभदायक है?
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