संघर्षों से लड़कर आगे बढ़ने वाले ही विजयी होते हैं. उनको पता होता है कि कैसे किस तरह से परिस्थितियों से लड़ा जाए. ये बात हम सभी जानते-समझते हैं कि परिस्थितियों का निर्माण स्वतः भी होता है और मनुष्य भी करता है. ऐसे में जबकि कोई भी स्थिति, परिस्थिति जो मानव-जनित हो उसका समाधान, उससे लड़ने का तरीक़ा मानव के पास निकल ही आता है या कहें कि वो ऐसा करने में सक्षम होता है पर ऐसा प्रकृति-जन्य परिस्थितियों में नहीं कहा जा सकता. प्राकृतिक परिस्थितियाँ कब, किस तरह के रूप में सामने आएँ कहा नहीं जा सकता है. ऐसी अकस्मात् उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए कोई भी व्यक्ति ख़ुद को तैयार तो रखता है पर बिना यह विचार किए कि ऐसी स्थिति से लड़ने के लिए ख़ुद में कितना सामर्थ्य, कितना विश्वास, कितनी शक्ति जुटाने की आवश्यकता है.
किसी भी स्थिति से लड़ने, उससे जीतने के लिए व्यक्ति का विश्वास, उसकी जिजीविषा, उसका आत्मबल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. समाज का कोई भी क्षेत्र हो सभी में प्रत्येक कालखंड में समस्याएँ रहीं हैं, मुश्किलें आईं हैं किंतु उनसे पार वही लोग पा सके हैं जिन्होंने अपने विश्वास, आत्मबल को बनाए रखा. ऐसा करना महज़ जीतने के लिए नहीं बल्कि अपने साथ के लोगों संग, अपने परिचितों के संग, समाज के अन्य लोगों संग विश्वास में वृद्धि के लिए भी अपेक्षित होता है. परिस्थितियों से, विषम स्थितियों से लड़ना, उन पर विजय पाना सम्बंधित व्यक्ति के विश्वास, उसके व्यक्तित्व को भी निखारने का काम करता है. इतिहास साक्षी है कि समाज में जो लोग भी दैदीप्यमान हैं वे संघर्षों से लड़कर ही आगे आए हैं. आज प्रत्येक क्षेत्र में चुनौतियाँ हैं, हर जगह किसी न किसी रूप में इम्तिहान हैं ऐसे में व्यक्ति को ख़ुद को निखारने की प्रक्रिया भी इनसे लड़ना है. ऐसे में बजाय घबराने के यह समझने की ज़रूरत है कि यदि ख़ुद को सक्षम बनाना है, अपने व्यक्तित्व को निखारना है, विजयी बनना है तो किसी भी समस्या से घबराना नहीं है, किसी भी परिस्थिति से हार नहीं माननी है. ध्यान रखना होगा कि संघर्ष करने वाला ही विजयी होता है.
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