18 दिसंबर 2018

बहुत कुछ अधूरा है अभी, बहुत कुछ सीखना है अभी

अपने इस ब्लॉग पर चौदह सौ पोस्ट लिखने के बाद भी लगता है जैसे लिखना अभी भी सीख नहीं पाए. अनेकानेक विषयों पर कलम चलाने के बाद भी इसका एहसास गहराई तक है कि किसी सार्थक विषय पर अभी लिखना बाकी है. लिखने के लिए भले ही लगातार लिखना होता आ रहा है; साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन के साथ-साथ समाज के अन्य बिन्दुओं, विषयों पर भी पर्याप्त लिखा गया; अध्यापन क्षेत्र से जुड़े होने के कारण शोध-पत्रों का भी लेखन किया गया; मीडिया से जुड़ाव के चलते अनेक सामाजिक-राजनैतिक विषयों को छुआ गया इसके बाद भी बहुत अधूरा सा महसूस होता है. लेखन का शौक बचपन से था. नौ-दस वर्ष की उम्र में पहली बार मन में उभरे भावों को कलमबद्ध किया और उसे कागज पर कविता के रूप में पाया. यह पारिवारिक सहयोग ही था जिसके चलते वह कविता उसी समय दो-दो समाचार-पत्रों में प्रकाशित भी हुई थी.

बचपन का वह क्षणिक प्रस्फुटन उम्र के साथ विस्तार पाता गया. इधर तकनीक के दौर में जब इंटरनेट से, ब्लॉग से, वेबसाइट से परिचय हुआ तब लगा कि लेखन को व्यापक आकाश मिल गया है. जहाँ तक मर्जी हो उड़ा जा सकता है, जितनी इच्छा हो वहां तक जाया जा सकता है. लेखन को वाकई विस्तार मिला, पहचान मिली, हमें भी पहचान मिली, ब्लॉग को सराहना मिली, सबका सहयोग-आशीर्वाद-स्नेह भी मिला. इस अमूल्य निधि के बाद भी हाथ आज भी खाली-खाली महसूस होते हैं. चौदह सौ की संख्या कम नहीं होती है. इतनी पोस्ट सिर्फ इसी ब्लॉग की है, इसके अलावा अन्य ब्लॉग पर भी कलम चल रही है, सम्बंधित विषयों पर विचार, रचनाएँ सामने आ रही हैं. ऐसे में यदि कुछ कमी सी समझ आये तो लगता है कि अभी लेखन को सार्थकता नहीं मिली है या कहें कि अपने लेखन के द्वारा हम सार्थकता को जन्म नहीं दे पाए. मन में लगातार उथल-पुथल मची हुई है और ऐसा आज ही नहीं पिछले काफी समय से ऐसा हो रहा है. मन-मष्तिष्क कुछ अलग सा लिखने को प्रेरित करते हैं मगर वही मन-मष्तिष्क समझ नहीं पा रहा है और न ही समझा पा रहा है कि अलग सा क्या लिखा जाये?

अपने आसपास अनेक लेखकों को, रचनाकारों को अलग-अलग, वैविध्य विषयों पर कलम चलाते हुए देखते हैं तो सुखद अनुभूति होती है. अनेक लोगों को अपनी तरह के किसी अलग से, विशेष विषय पर लिखते देखते हैं, उनको पढ़ते हैं तो सुखद अनुभूति के साथ-साथ अपनी इस कमी का गहराई से एहसास होता है. अनेकानेक विषय ऐसे हैं जिन पर लिखा जा सकता है किन्तु उनको अभी समझने की आवश्यकता है. साहित्य, कला, संस्कृति, धर्म, इतिहास, समाज, राजनीति, अर्थनीति सहित अनेकानेक विषय ऐसे हैं जिन पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, अलग तरह से लिखा जा सकता है. ऐसे बहुत से अनछुए विषय, बिंदु अपनी तरफ आकर्षित भी करते हैं मगर पता नहीं कौन सा अनदेखा सा अवरोध कलम को रोक देता है. तब ऐसे मोड़ पर आकर लगता है कि अभी लिखने से ज्यादा पढ़ने की आवश्यकता है. जिन-जिन विषयों पर लेखन की चाह है उनको गंभीरता से पढ़ने की, उनका अध्ययन करने की आवश्यकता है. किसी भी विषय के सतही ज्ञान के द्वारा सतही लेखन किया जा सकता है, उसमें गंभीरता का समावेश नहीं किया जा सकता है. सतही, सामान्य को गंभीर, सार्थक बनाने के लिए हमें अभी और मेहनत की आवश्यकता है, अभी और अध्ययन की आवश्यकता है. शायद आने वाला समय इसमें हमारी मदद करेगा.

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