28 नवंबर 2018

मनुष्य को आदतों का गुलाम नहीं बल्कि उनका स्वामी होना चाहिए


आदत किसी व्यक्ति के उस व्यवहार को कहते हैं जिसे वह बार-बार दोहराता है. ऐसा करने के पीछे उसकी विशेष मंशा या सोच काम नहीं करती है, बस उसका अंतर्मन सम्बंधित कार्य के लिए उसे एक तरह से उकसाता है. मनुष्य की आदत उसके द्वारा अर्जित की गई प्रवृत्ति होती है. यह किसी भी तरह से उसको जन्मजात नहीं मिली होती है. उम्र, समय, परिस्थिति के अनुसार मनुष्य की आदतें बदलती रहती हैं. कई बार देखने में आया है कि कोई एक आदत अथवा कई आदतें मुनष्य के मानसिक संस्कार का रूप ले लेती है. ऐसा होना उस व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है. यदि व्यक्ति की मानसिकता अथवा स्वभाव अच्छी बातों के लिए, अच्छे कार्यों के लिए प्रेरणा प्राप्त करता है तो वह अच्छी आदतों को अपनाता है अन्यथा इसके उलट भी हो जाता है. बहुधा देखने में आया है कि लोगों में अच्छी आदतों के बजाय बुरी आदतों को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है. इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि बुरी आदतें सहजता से किसी व्यक्ति द्वारा अपना ली जाती हैं जबकि अच्छी आदतें ग्रहण करने में उसे दिक्कत होती है. ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि बुरी आदतों को अपनाने में, डालने में किसी तरह का अनुशासन नहीं चाहिए, किसी तरह की प्रतिबद्धता नहीं चाहिए, किसी तरह का नियम नहीं चाहिए. इसके उलट किसी भी अच्छी आदत को अपनाने के लिए उसके प्रति एक तरह का अनुशासन चाहिए होता है.


ऐसा करना अथवा होना व्यक्ति की आतुरता पर निर्भर करता है. किसी भी आदत को बार-बार दोहराने के लिए व्यक्ति का उतावला होना दिखाई देता है. और यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है तो सम्बंधित व्यक्ति में अपनी आदत को लेकर एक तरह का अनमनापन रहता है. जैसे किसी व्यक्ति को सुबह-सुबह टहलने की, पार्क आदि जाने की आदत है और यदि किसी कारण से ऐसा नहीं हो पाता है तो उसे अपने आसपास कुछ खालीपन सा लगता है. इसी तरह किसी न किसी शौक को एक समयबद्ध तरीके से पूरा करने वाले को भी यदि उस नियत समय में वो कार्य करने को न मिले तो उसे भी कुछ अधूरा सा महसूस होने लगता है. निश्चित समय पर सम्बंधित कार्य को करने के लिए वह उतावला होने लगता है. यह स्थिति अच्छी और बुरी दोनों आदतों के लिए होती है. यहाँ व्यक्ति को निर्धारित करना पड़ता है कि वह किस तरह की आदत को अपनाये.

आदतें व्यक्ति के विकास और चारित्रिक उन्नयन में विशेष प्रभाव डालती हैं. सामाजिक विज्ञान में मनुष्य को आदतों का पुँज कहा भी गया है. यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने इस पुंज में से कौन सी आदत को अपनाता है. यह कहना गलत होगा कि किसी भी व्यक्ति के पास कोई आदत नहीं है. सामान्य रूप में सभी प्राणी चाहे वह मनुष्य हो या जानवर किसी न किसी आदत से संपन्न होता है. मनुष्य में आदतों के स्वरूप के द्वारा उसका आकलन श्रेष्ठ या दुश्चरित्र के रूप में किया जाने लगता है. किसी भी व्यक्ति के बहुत सारे कामों का आकलन उसकी आदतों के आधार पर, उनके अनुसार किया जाने लगता है. आदत के द्वारा वह अपने बहुत से कार्यों का सञ्चालन करता है. जैसा कि पूर्व में कहा कि अच्छी आदतों को अपने भीतर समाहित करने के लिए गंभीरता, अनुशासन चाहिए होता है. यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि वह आदतों के अच्छे स्वरूप को अपना नहीं पा रहा है तो उसे अपने संकल्प तथा अभ्यास से इसकी आदत डालनी चाहिए.

वर्तमान परिदृश्य में बहुत सारी आदतों पर सोशल मीडिया में सक्रिय रहने की, इंटरनेट पर उपस्थिति दिखाने की, स्मार्ट फोन पर उंगलियाँ नचाने की, हर छोटी-बड़ी स्थिति में सेल्फी लेने की आदत बहुतायत में देखने को मिल रही है. मनोवैज्ञानिक इसे एक तरह की बीमारी मान रहे हैं. सामाजिक विज्ञान की दृष्टि से इसे बुरी आदत में शुमार माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई व्यक्ति अपनी इसी एक आदत के चलते भीड़ में भी खुद को अकेला समझने लगता है. कई लोगों के साथ बैठकर भी वह सामंजस्य नहीं बना पा रहा है. सबके साथ होकर भी वह बजाय उनके साथ घुलने-मिलने के अपने मोबाइल, सोशल मीडिया कि आभासी दुनिया में व्यस्त बना रहता है. पल-पल मोबाइल को देखना, जरा-जरा से काम के लिए इंटरनेट पर निर्भरता एक तरफ से व्यक्तियों को मानसिक पंगु बनाती जा रही है. इससे बचने के लिए किसी और को नहीं वरन स्वयं मनुष्य को ही प्रयास करने होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि मनुष्य को आदतों का गुलाम नहीं बल्कि उनका स्वामी होना चाहिए जिससे आदतें अपने अनुसार मनुष्य का नहीं बल्कि मनुष्य अपने अनुसार अपनी आदतों का आनंद उठाये. 


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