आज शायद ही कोई ऐसा
व्यक्ति हो जो श्रीराम शर्मा आचार्य नाम से अपरिचित हो. उन्हें देश के युगदृष्टा
मनीषी के रूप में स्वीकार किया जाता है. उन्होने आधुनिक एवं प्राचीन विज्ञान तथा धर्म
को समन्वित करके उसके द्वारा आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया. इसी
उद्देश्य के लिए उनके द्वारा अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की गई. उनका
सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी,
योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक,
लेखक, सुधारक का समन्वित रूप कहा जा सकता है.
आज इसी विभूति का जन्मदिन है. उनका जन्म 20 सितम्बर 1911 को उत्तर प्रदेश के आगरा के आँवलखेड़ा ग्राम में हुआ था. साधना के प्रति उनका
झुकाव बचपन से ही दिखने लगा था. वे अपने सहपाठियों, छोटे बच्चों को सुसंस्कारिता अपनाने
वाली विद्या का ज्ञान देने लगे थे. किशोरावस्था में ही समाज सुधार की रचनात्मक प्रवृत्तियाँ
उनमें विकसित हो चुकी थीं. वे चाहते थे कि लोग स्वावलम्बी बनें, राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान उसका जागे.
सन् 1926 में महामना मदनमोहन मालवीय
जी से काशी में गायत्री मंत्र की दीक्षा लेने के बाद आराधना उनके जीवन का अंग बन
गई. आध्यात्मिक रुचि होने के साथ-साथ उनमें राष्ट्रवाद की भावना भी चरम पर थी. सन 1927
से 1933 तक वे एक स्वयंसेवक, स्वतंत्रता सेनानी
के रूप में सक्रिय रहे. अनेकानेक मित्रों के साथ भूमिगत हो कार्य करते रहे तथा समय
आने पर जेल भी गये. वे जेल में भी निरक्षर साथियों को शिक्षण देकर व स्वयं अंग्रेजी
सीखकर लौटै. उन्होंने मालवीय जी से एक मूलमंत्र सीखा कि जन-जन की साझेदारी बढ़ाने के
लिए हर व्यक्ति के अंशदान से, मुट्ठी भर फण्ड से रचनात्मक प्रवृत्तियाँ
संचालित की जा सकती हैं. इसी मन्त्र के सहारे उन्होंने गायत्री परिवार का आधार
निर्मित किया. सन 1935 के बाद उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र
में प्रवेश किया. आगरा में सैनिक समाचार पत्र के कार्यवाहक
संपादक के रूप में कार्य किया. बाद में सन 1938 की बसंत
पंचमी को अखण्ड ज्योति पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया. इसके बाद पुनः सारी
तैयारी के साथ विधिवत सन 1940 की जनवरी से अखण्ड ज्योति
पत्रिका का शुभारंभ किया गया. यह पत्रिका आज दस लाख से भी अधिक संख्या में विभिन्न
भाषाओं में प्रकाशित होती है तथा करोड़ों व्यक्तियों द्वारा पढ़ी जाती है. आचार्य
जी द्वारा अनेक पुस्तकें लिखी गईं जो आध्यात्म, परिवार, धर्म, वेद, स्वास्थ्य आदि विषय
पर ज्ञान देती हैं.
श्रीराम मत्त, गुरुदेव, वेदमूर्ति, युग ॠषि, गुरुजी
आदि अन्य नामों से प्रसिद्ध आचार्य जी का देहांत 02 जून 1990
को हरिद्वार में हुआ. आज उनके जन्मदिन पर उनको सादर नमन.
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