साथ ले ले मुझे या खुद से जुदा तू कर दे।
ज़िन्दगी तेरी है तेरी ही रहे तेरी कसम।
मुझको बस इसमें थोड़ी सी जगह तू दे दे।
वादा करते हो और भूल भी जाते हो सनम।
कोई एक वादा तू अपना तो पूरा कर ले।
रंग बिखरे हैं कई रंग के इस गुलशन में।
अपने दामन को तू इनसे सतरंगी कर ले।
रात काली है, गुमसुम हैं सितारे,
चंदा।
भर दो पूनम की छटा इनमें चाँदनी बनके।
शबनमी कलियों को जो एक नजर ही देखा।
कत्ल करने को कई भँवरे ले खंजर निकले।
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कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
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बुन्देलखण्ड के प्रसिद्द गायक मिर्ज़ा साबिर बेग, जिन्हें लोग मुहम्मद रफ़ी के नाम से पुकारते हैं, जल्द ही उनके संगीत और स्वर में उक्त ग़ज़ल आपके सामने आएगी. वे इसकी धुन तैयार करने में लगे हैं. बहुत जल्द ही ये ग़ज़ल उनके स्वर-सुर-संगीत में आपको सुनाई देगी. तब तक आप इसे पढ़कर आनंद ले सकते हैं.
ये हमारे लिए सम्मान की बात है कि उनका कहना है कि ये ग़ज़ल पूरी तरह बहर में हैं. उन्हें इसकी धुन तैयार करने में कोई समस्या नहीं हुई. ये भी संयोग है कि जिस तरह की लय हमने इस ग़ज़ल की बनाई थी, लगभग वैसी ही लय-धुन साबिर भाई ने तैयार की.
उनकी व्यस्तता के बीच समय निकाल कर एक एल्बम भी निकाला जायेगा. हाल-फ़िलहाल आप इसका आनंद पढ़कर ही उठायें.
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