पिछले कुछ दिनों से
लगातार ऐसे समाचार पढ़ने को मिल रहे हैं जिससे समाज में संवेदनशीलता के स्तर का
आभास होता है. तकनीकी, शैक्षिक, वैज्ञानिक, व्यापारिक, वैदेशिक विकास करने के बाद
भी समाज में अभी संवेदनशील विकास अपेक्षित है. इन्सान ने चाहे सभी क्षेत्रों में
भले ही विकास कर लिया हो, अपने झंडे गाड़ लिए हों मगर मानवीयता के स्तर पर वह अभी
बहुत पीछे है. ऐसा नहीं है कि समाज से, इन्सान से मानवीयता का, संवेदनशीलता का
पूरी तरह ह्रास हो गया हो किन्तु इसके सापेक्ष जिस तरह से असंवेदनशीलता, अमानवीयता
बढ़ी है वह चिंतनीय है. भूख से तीन-तीन बेटियों की मृत्यु हो जाना, संरक्षण गृहों
की बच्चियों के साथ यौन अपराध करना, आपसी रंजिश में महिला को जला देना, किसी साजिश
की शंका में किसी महिला को सरेबाजार निर्वस्त्र कर देना आदि ऐसी घटनाएँ हैं जो
समाज की असंवेदनशीलता को प्रकट करती हैं.
सोचने वाली बात है
कि आखिर एक मोहल्ले में जहाँ दो-चार-दस परिवार आसपास रहते हों, क्या वहां एक
परिवार ऐसा नहीं रहा जो एक समय तीन बच्चियों के लिए भोजन की व्यवस्था कर देता? क्या
उन तीन बेटियों का पिता वाकई इतना मजबूर या बुरा व्यक्ति था कि उसे कहीं से भी एक
समय का भोजन उपलब्ध नहीं हो सका? क्या आपस में एकसाथ रह रहे परिजन, मोहल्ले के
परिवार आपस में इस कदर एक-दूसरे के कटे हुए थे कि वे भूख से तड़पती बच्चियों को
देखते रहने के बाद भी संवेदित न हुए? ये इन्सान के नैतिक पतन की कहानी है. इसी तरह
दो प्रदेशों के दो बालिका संरक्षण गृहों से जिस तरह की खबरें आईं हैं वे निंदनीय
ही नहीं शर्मनाक हैं. ऐसे संरक्षण गृहों में वे बालिकाएं ही भेजी जाती हैं, रह रही
होती हैं जो समाज में प्रताड़ित हैं. जिनके साथ परिवार नाम की संस्था पहले से ही
नहीं है. जो लड़कियाँ किसी न किसी रूप में समाज के शोषण का शिकार हैं. ऐसी बच्चियों
को यौन शोषण के लिए प्रताड़ित करना यही दर्शाता है कि समाज में कोई महिला आज भी
सेक्स की, उपभोग की वस्तु समझी जा रही है. इसके पीछे के क्या कारण हैं, क्या
सन्दर्भ हैं ये अलग विषय है किन्तु जिस तरह से छोटी-छोटी उम्र की बच्चियों के साथ
यौन सम्बन्ध बनाना, उनको नशे के इंजेक्शन देकर बेहोशी में उनके साथ शारीरिक
सम्बन्ध बनाना, ऐसा न करने पर उनके साथ शारीरिक-मानसिक अत्याचार करना, उन बच्चियों
को समाज के कथित ठेकेदारों के पास भेजना आदि मानवीयता का पतन ही है. कैसे कोई व्यक्ति,
चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, किसी मासूम बच्ची का, समाज से प्रताड़ित बच्चियों का
किस मानसिकता में शोषण करने को तैयार हो जाता है?
समाज में ऐसी एक-दो
नहीं अनेकानेक घटनाएँ हैं जहाँ संवेदनशीलता लगातार कम होते दिख रही है. सैकड़ों
घटनाओं के बीच एक-दो घटनाएँ सुखद एहसास कराती नजर आती हैं मगर उनकी चर्चा न के
बराबर होती है. आपसी बातचीत में अच्छे कामों की, अच्छे व्यक्तियों की चर्चा उस
स्तर या व्यापकता से नहीं होती जैसी चर्चा बुरे कामों की, बुरे व्यक्तियों की होती
है. धीरे-धीरे यही चर्चा, यही स्तर विस्तार पाकर इंसानियत पर हावी हो जाता है. समाज
में उन सभी लोगों को जो इस तरह की अमानवीयता, असंवेदित घटनाओं को लेकर लगातार
चिंतित रहते हैं, चिंतन-मनन करते हैं, उन्हें सक्रियता से इसके लिए कार्य करना
होगा. समाज में लगातार अच्छे कामों का, अच्छे लोगों का प्रसार-प्रचार करते हुए
उन्हें बुराई पर प्रतिष्ठित करना होगा.
मर चुकी संवेदनाओं के बीच
हम क्या ज़िंदा रखना चाहते हैं.
खो चुके हैं ख़ुद को फिर भी
ख़ुद को पाना चाहते हैं.
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