14 अगस्त 2018

एक जंग ज़िन्दगी की अनिश्चितता से


ज़िन्दगी अनिश्चय से भरी होती है, ये बहुत पहले से सुनते आये हैं. कब किसके साथ क्या गुजरे कहा नहीं जा सकता है, ये भी सत्य है. आने वाले कल का कोई भरोसा नहीं रहता है यह भी अपने आपमें सत्य है. ऐसे में क्या किया जाये, क्या ज़िन्दगी को बिना किसी परवाह के खुला छोड़ दिया जाये? क्या आने वाले कल की अनिश्चितता देखकर भविष्य के लिए किसी तरह की योजना न बनाई जाये? किसके साथ कब क्या हादसा, बुरा हो जाये इससे बचने के लिए क्या सदैव डरे-सहमे से बना रहा जाये? जो-जो लोग ज़िन्दगी को अनिश्चित मानते-बताते हैं वे भी इन सभी बातों को नकार देंगे. ज़िन्दगी को अनिश्चय के बाद भी निरुद्देश्य, निष्प्रयोज्य, निरंकुश तरीके से नहीं जी जा सकती है. इसी कारण व्यक्ति ज़िन्दगी की अनिश्चितता को निश्चिंतता में बदलने के लिए हमेशा किसी न किसी जद्दोजहद में लगा रहता है. भविष्य के लिए योजनायें बनाता रहता है. अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सुनहरे सपने देखता रहता है. हर व्यक्ति जानता है कि अनिश्चय भरी ज़िन्दगी कब उसको अन्दर तक हिलाकर रख देती है, कहा नहीं जा सकता. ज़िन्दगी की इस अनिश्चितता से जब कोई अपना गुजरता है तो ज़िन्दगी की इस भयावहता के बारे में सोचकर कंपकंपी छूट जाती है. अंधियारे से दिखते भविष्य के बारे में सोचकर ही सबकुछ हाथ से ऐसे फिसलता दिखता है जैसे रेत. लाख सुन्दर और मोहक होने के बाद भी ज़िन्दगी की ये भयावह सच्चाई डराती है. इससे लड़ने के लिए, आगे बढ़ने के लिए, ज़िन्दगी की जंग जीतने के लिए व्यक्ति का आत्मविश्वास, उसका स्वाभिमान, उसकी जिजीविषा सहयोगी भूमिका निभाते हैं.


इसी तरह की जंग से लड़ते, ज़िन्दगी की भयावह सच्चाई से सामना करते, लगातार झटकों के बाद भी अपने विश्वास को, अपनी जिजीविषा को जीवित बनाये रखने का ज़ज्बा विगत काफी समय से बहुत नजदीक से देखा है. बार-बार लड़खड़ाने के बाद भी खुद को खड़ा करने की अदम्य इच्छाशक्ति के चलते ऐसा लगता है कि इस बार ये जंग अंतिम जंग होनी चाहिए और ज़िन्दगी की भयावहता हारकर उसकी ज़िन्दगी को फिर गुलज़ार करेगी किन्तु ऐसा बस सपना सा प्रतीत होता है. ज़िन्दगी की भयावहता हरबार उसे हराने के लिए उठ खड़ी होती है. हर बार ज़िन्दगी और मौत की जंग में वह ज़िन्दगी को अपने साथ खींच लाता है. हर बार उसमें जोश, हिम्मत, हौसला हम सब देखते हैं. इसके बाद भी अबकी मिलने पर हमारे बीच शब्दों का गुम हो जाना समझ न आया. हाथों में हाथों के द्वारा जैसे हम एक-दूसरे को दिलासा देते समझ आये. अपने-अपने होंठों की मुस्कान के पीछे जैसे आँसुओं को छिपाने की कोशिश की जा रही हो. सामने बैठे होने के बाद भी पीठ फेरना जैसे परिस्थितियों को हराने का प्रयास किया जाना रहा हो. परिस्थितियाँ क्या बनेगी, कौन जीतेगा, आत्मविश्वास कब तक बना रहेगा, जिजीविषा कितना साथ देगी कहा नहीं जा सकता. इसके बाद भी कामना है कि ज़िन्दगी की अनिश्चितता की तरह यह भी अनिश्चित हो जाये और सबकुछ वैसा ही हो जाये जैसा कभी छोड़ा था, देखा था.  

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