इंसानी
दिमाग में कहीं गहरे बैठी पशुता, क्रूरता कब, किस रूप में सामने आये कहा नहीं जा
सकता. उसकी मानसिक क्रूरता का ही दुष्परिणाम है कि समाज में रोज ही किसी न किसी
तरह की आपराधिक घटनाएँ सुनाई देती हैं. इन्हीं आपराधिक घटनाओं में विगत कुछ वर्षों
से एसिड अटैक (तेजाबी हमले) की घटनाओं में वृद्धि हुई है. तेजाबी हमले का शिकार
सिर्फ और सिर्फ बेटियाँ हो रही हैं. किसी मनचले के एकतरफा प्रेम का इंकार और
तेजाबी हमला, किसी अन्य इंकार के सुनाई देने पर महिला के चहरे पर एसिड अटैक कर
देना. एक पल को सिर्फ विचार करने पर ही पूरा दिमाग झनझना जाता है कि कैसे कॉलेज
में प्रैक्टिकल के दौरान दो-चार बूँद एसिड उँगलियों पर गिर जाने भर से घंटों जलन
मचती रहती थी. किस तरह घर में, किसी व्यवसाय के दौरान एसिड से कार्य करने के दौरान
असावधानीवश शरीर पर छिटक कर गिरा तेजाब कभी-कभी शरीर के उस हिस्से में खाल का,
मांस को जला दिया करता है. घंटों, दिनों के हिसाब से न केवल जलन बल्कि अप्रत्याशित
दर्द बना रहता है. जब दो-चार बूंदे पूरे दिल-दिमाग को हिलाकर रख देती हैं तो
सोचिये क्या स्थिति होती होगी जबकि कोई दिमागी क्रूर इन्सान किसी के पूरे चेहरे पर
तेजाब फेंक देता है.
ये
हमारे समाज की विद्रूपता है कि इस तरह की कई-कई घटनाओं को देखने-सुनने के बाद भी जनसामान्य
इस बारे में जागरूक या सचेत नहीं है. सन 2016 में मुम्बई के प्रीति
राठी तेजाब कांड में अदालत ने मामले को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट मानते हुए आरोपी को फांसी
की सजा सुनाई थी. यह अपने आपमें पहला मामला था जबकि एसिड अटैक मामले में किसी
आरोपी को फाँसी की सजा सुनाई गई हो. देखा जाये तो महज सजा ही एकमात्र समाधान नहीं
है. इससे बेहतर समाज को जागरूक होने की जरूरत है. उच्चतम न्यायालय ने सन 2013 में एसिड
अटैक को गंभीर अपराध मानते हुए सरकार, एसिड बेचनवाले दुकानदारों
और एसिड अटैक पीड़ितों के लिए दिशा-निर्देश दिए थे. अदालत के अनुसार तेजाब केवल उन्हीं
दुकानों पर बिक सकता है जिनको इसके लिए पंजीकृत किया गया हो. एसिड 18 वर्ष से कम उम्र
के लोगों द्वारा नहीं बेचा जाएगा और जो भी इसे खरीदने आएगा दुकानदार द्वारा उसके घर
का पता, टेलीफोन नंबर तथा एसिड खरीदने का उद्देश्य सहित अन्य
जानकारी लेनी होगी और इसका पूरा लेखा-जोखा लिखित में अपने पास रखना होगा. जो
दुकानदार एसिड बेच रहे हैं उनके पास इसका कितना स्टॉक है इसकी जानकारी जिला प्रशासन
को देनी होगी. अदालत ने यह भी प्रावधान किया है कि यदि किसी दुकानदार द्वारा इन नियमों
की अनदेखी की जाती है तो पकड़ने जाने पर उस
पर पचास हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा. ऐसी स्थिति के बाद भी तेजाब की बिक्री
खुलेआम हो रही है.
वर्ष
2005 में महज पंद्रह वर्ष की आयु में लक्ष्मी अग्रवाल एसिड
अटैक का शिकार हुई. लम्बे और दर्दनाक समय में इलाज के बाद अपने आपको कमजोर न पड़ने
देने वाली लक्ष्मी ने देश भर में एसिड अटैक के विरुद्ध आवाज़ उठानी शुरू की.
वर्तमान में उनके द्वारा #stopsaleacid अभियान चलाया जा रहा
है, जिसका मूल उद्देश्य खुलेआम एसिड की बिक्री को रुकवाना है. यह सही है कि आज
बहुतेरे काम ऐसे हैं जिसके लिए तेजाब की आवश्यकता होती है. ऐसे में तेजाब को
हमेशा-हमेशा के लिए बिक्री से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है मगर इसके साथ एक
पहलू ये भी है कि यह अत्यंत घातक पदार्थ है. जब उच्चतम न्यायालय द्वारा इसकी
बिक्री के लिए नियम बना दिए गए हैं तो प्रशासन द्वारा उन्हें सख्ती से लागू करने
के कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे हैं? उपयोगी कार्यों के अलावा तमाम सिरफिरे हैं जो
तेजाब का दुरुपयोग करते हुए हमारी-आपकी बेटियों के भविष्य से, उनकी जान से खिलवाड़
करते हैं. न केवल प्रशासन को बल्कि नागरिकों को भी इसके लिए जागरूक होने की
आवश्यकता है. हम लोग सजग हों और बिना ये सोचे कि इससे हमारा व्यक्तिगत क्या
लेना-देना है हर उस व्यक्ति की, हर उस दुकानदार की शिकायत प्रशासन से करनी चाहिए
जो खुलेआम तेजाब बेचने में लगा है. उन दुकानों को भी चिन्हित करने की आवश्यकता है
जो गैर-पंजीकरण के तेजाब बेचने का काम कर रहे हैं.
हम
सभी को आज ही सख्त कदम उठाने की जरूरत है. यह समय की माँग भी है और हमारी बेटियों
के लिए सुरक्षात्मक भी है. आइये, हम सब एकजुट होकर तेजाब रुपी खतरनाक पदार्थ की
खुलेआम बिक्री के खिलाफ खड़े हों. इसके साथ ही उस मानसिकता के खिलाफ भी खड़े हों जो
महज अपनी पसंदगी के नकारने पर एसिड अटैक जैसे खतरनाक कदम उठाकर हमारी बेटियों की जान
से, भविष्य से खेल रही है. आखिर किसी एक व्यक्ति की दिमागी क्रूरता का शिकार हम
अपनी बच्चियों को कब तक होने देंगे? आज नहीं तो कल हमें जागना ही होगा, एकजुट होना
ही होगा. और जब ऐसा करना ही है तो फिर कल का इंतजार क्यों?
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