23 मई 2018

सम्बन्ध और सम्मान दे गया ओरछा फिल्म समारोह

वीर बाँकुरों के बुन्देलखण्ड की पावन धरा ओरछा में पाँच दिवसीय भारतीय फिल्म समारोह 2018 ने सभी को अपनी-अपनी तरह से सम्मोहित किया है. पाँच दिनों के इस सांस्कृतिक समागम में कला थी, कलाकार थे, निर्देशन था, निर्देशक थे, रंगमंच था, फीचर फ़िल्में थीं, डाक्यूमेंट्री थी, शॉर्ट फ़िल्में थीं, तकनीक थी, संस्कृति थी, प्राचीनता थी, नवीनता थी, परम्पराएँ थीं, आधुनिकता थी. कुल मिलाकर कहा जाये कि सभी के लिए कुछ न कुछ था. फिल्म समारोह में आये कलाकरों ने अपनी-अपनी क्षमताओं, प्रतिभाओं के अनुसार प्रदर्शन किया और वहाँ उपस्थित रहे सभी लोगों ने अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उसका लाभ उठाया. मुंबई फिल्म जगत के नामचीन कलाकारों ने आकर बुन्देलखण्ड के कलाकारों की कला को तराशने का कार्य किया. हमारा व्यक्तिगत रूप से कभी रंगमंच से, नाटकों से, निर्देशन से सम्बन्ध रहा था मगर कतिपय कारणों से अब दर्शक की भूमिका के साथ-साथ फोटोग्राफर की और आलोचक की भूमिका का निर्वहन करते हैं. इन भूमिकाओं के बीच खुद को संबंधों के विस्तार के लिए भी सक्रिय रखते हैं. ऐसे कलात्मक आयोजनों में जहाँ एक तरफ कलाकारों से मुलाकात होती है, उनकी कला से परिचय मिलता है वहीं उन कलाकारों में छिपे इन्सान से भी परिचय हो जाता है.


भारतीय फिल्म समारोह ओरछा 2018 का आरम्भ पूर्ण सांस्कृतिकता के साथ हुआ. उसके बाद समारोह रोहिणी हट्टंगड़ी, रजत कपूर, केतन आनंद, नफ़ीसा अली, यशपाल शर्मा जैसी फ़िल्मी हस्तियों के आगमन से गुलज़ार हुआ. निर्देशक केतन आनंद जी से मुलाकात अचानक ही हुई जबकि मंचस्थ सुष्मिता मुखर्जी जी से मिलने हम और अनुज पहुँचे. उन्हीं के साथ खड़े केतन आनंद से बुन्देलखण्ड में हो रहे इस आयोजन के बारे में पूछ बैठे. उन्होंने अत्यंत सहज रूप में कई बातों का जिक्र किया. ख़ुशी जताई उन्होंने राजा बुन्देला जी के इस प्रयास पर. ये भी कहा कि यहाँ के कलाकारों में बहुत संभावनाएं हैं, ऐसे समारोह उनको तराशने, मंच देने का काम करेंगे.  

केतन आनंद 

इसके अलावा रमीज पठान जी से मिलना ख़ुशी का अवसर लेकर आया. कार्यक्रम की व्यस्तताओं के चलते समारोह स्थल पर उनसे मिलना ना हो सका था. कार्यक्रम के चौथे दिन की समाप्ति से कुछ पहले हमारा और अनुज (सपरिवार) का वहां से निकलना हुआ. रमीज जी हमारे साथ-साथ वहाँ से निकले निकले. इससे पहले श्रेया (अनुज की बेटी) द्वारा उनसे मुलाकात करके उनका ऑटोग्राफ लेने के साथ-साथ उनके साथ फोटो खिंचवाना भी हो चुका था. इस प्रक्रिया में कैमरे के कारण एक क्षणिक चेहरे वाली मुलाकात उनसे हो ही चुकी थी. रुद्राणी कलाग्राम से निकलने के बाद इत्तिफ़ाक़ रहा कि उनके होटल के ठीक पहले जहाँ हम लोग भोजन के लिए रुके वहां वे भी अपने साथियों सहित मिल गए. देखते ही अभिवादन हुआ और उन्होंने आगे बढ़कर अपने गले लगा लिया. लगभग एक घंटे तक उनके साथ अनौपचारिक बातचीत होती रही. अपनी लाइफ़ के बहुत से अनुभव शेयर किए. कुछ विशुद्ध गोपनीय बातें भी शेयर की. जिस गर्मजोशी और ज़िंदादिली से वे मिले उससे लगा नहीं कि वे सत्तर से अधिक बसंत देख चुके हैं. अनुज के गीत सुनने का उन्होंने वादा किया और सम्पर्क-सूत्र के आदान-प्रदान सहित मुंबई आने का न्यौता भी.

रमीज पठान 

रमीज़ जी से संभवतः इस कारण भी दिल के तार मिले होंगे क्योंकि उनकी तरह इधर भी लेखन का शौक पर्याप्त है. उनके अलावा बाकी कलाकारों से मिलना ही हुआ. एक बात विशेष है स्वभाव में कि कभी भी इक्का-दुक्का कलाकारों को छोड़कर कभी भी फ़िल्मी कलाकारों के प्रति पागलपन जैसा आकर्षण नहीं हुआ. न इस उम्र में न ही कॉलेज वाली अवस्था में. इस कारण भी उनके ऑटोग्राफ लेने, उनके साथ फोटो खिंचवाने की इच्छा भी वहां नहीं हुई. हाँ, एक नफीसा अली जी से मिलने की इच्छा थी, वो वहाँ पूरी हुई. उनसे मिलने का मन भी उनके अदाकारा होने के कारण नहीं वरन उनके सामाजिक कार्यों से जुड़े रहने के कारण हुआ था. इस मिलने-मिलाने के क्रम में भविष्य के कलाकारों से भी मिलना हुआ. कई परिचित लोगों से, कई मित्रों से मिलना हुआ. मिलने-जुलने के क्रम में सर्वाधिक ख़ुशी मिली कुछ उत्साही, युवा कलाकार साथियों से मिलकर.

मधुर 

मधुर, जो बाँसुरी बजाने में जितने योग्य हैं, उतने ही पेंटिंग बनाने में. ओरछा में मिलने से पहले उनसे कोई परिचय नहीं था, कभी मुलाकात भी नहीं थी. यहीं उनसे पहली बार मिलना हुआ. रुद्राणी कलाग्राम में टहलते हुए वो सामने से आता दिखा. मिलते ही उसने नमस्कार किया और पैर छू लिए. ऐसी स्थिति से हम अकबका से जाते हैं. लगता है कि सामने वाला हमें पहचान रहा है मगर हम ही पहचान नहीं पा रहे. यह स्थिति शर्म पैदा करती है. बिना शब्दों के सिर्फ आँखों के सहारे उसके हालचाल जानने चाहे तो उसने बताया कि नाटक 'तीसरा कम्बल' में वह बाँसुरी बजाने के साथ-साथ संगीत संयोजन कर रहा है. कुछ देर बाद टहलते हुए ही उससे फिर मुलाकात हुई तो वह बहुत ही भावुक था. अपनी कई पेंटिंग दिखाई मोबाइल पर और फिर हमारे साथ फोटो खिंचवाने के निवेदन के साथ बोला सर, हमारे सिर पर आप हाथ रख दीजिये. आपका आशीर्वाद मुझे बहुत सफलता देगा. कुछ ऐसी ही स्थिति बनी नाटक देखते समय. हमारे एक छात्र अनूप सेंगर ने जालौन के युवा कलाकारों से परिचय करवाया. उनकी फिल्म वहाँ दिखाई गई थी. मिलने के क्रम में उन युवा साथियों ने भी वही शब्द बोले- सर, आप हमारे सर पर हाथ रखकर मार्गदर्शन कीजिये हम लोगों का. जालौन टीम के दो सदस्य हमारे साथ उरई तक आये, बस उनके साथ फोटो नहीं हो सकी. पर अपने आपमें ऐसा महसूस हुआ जैसे हम भी कोई बहुत बड़े कलाकार हैं.


सम्बन्ध बनते रहे चलने-चलने तक. राजा बुन्देला, महेन्द्र भीष्म, नईम, गीतिका, संजय तिवारी, आरिफ, राघवेन्द्र चिंगारी, धर्मेन्द्र, अमजद आदि सहित कई कलाकार तो पहले से परिचित थे ही, कुछ नए सम्बन्ध भी बन गए. जालौन की टीम, वहीं के मुस्तकीम और रोहित, विवेक, रवीन्द्र, उमाशंकर, हरपाल, सरिता आदि से मुलाकात सार्थक रही. फिल्म समारोह 2018 के समापन दिवस पर इन संबंधों के साथ-साथ सम्मान भी मिला. नईम, जो हमारा छोटे भाई जैसा ही है, उसके बार-बार जोर देने के बाद भी अपनी तमाम शूट की गई क्लिप्स में से किसी की भी एडिटिंग करके समारोह में नहीं भेज सके. अंत-अंत तक हमने प्रयास किया और नईम ने बराबर जिद सी की मगर कोई फिल्म धरातल पर न उतर सकी. ओरछा के भारतीय फिल्म समारोह 2018 को हमारे लिए यादगार बनना ही था सो पुराने निर्देशन कार्यों को याद करते हुए अन्य भावी, वर्तमान कलाकारों के साथ हमारा भी सम्मान किया गया. सुखद अनुभूति के बीच प्रसिद्द अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी जी के हाथों सम्मान-पत्र प्राप्त हुआ. इसके लिए उनको और समूची आयोजक टीम का आभार.

सम्मान ग्रहण करते हुए 

भारतीय फिल्म समारोह ओरछा 2018 बुन्देलखण्ड के कलाकारों की आँखों में नए सपने भर गया है. तभी समापन समारोह अवसर पर एक नवयुवक ने राजा बुन्देला से राय प्रवीण पर फीचर फिल्म बनाये जाने का अनुरोध किया. ऐसे न जाने कितने स्वप्न यहाँ के कलाकारों, निर्देशकों, कहानीकारों, गीतकारों की आँखों में पलने लगे होंगे. सभी के सपने सच हों, ऐसी कामना ही की जा सकती है और अपेक्षा की जा सकती है कि वर्ष 2018 में ओरछा में आरम्भ यह प्रयास निरन्तर ऊँचाइयाँ पाता रहेगा, नई-नई प्रतिभाओं को तराशता रहेगा.

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