19 मई 2018

दुर्घटनाओं से नहीं सीखेंगे

बनारस में निर्माणाधीन फ्लाईओवर की बीम गिरने से हुए हादसे को महज इसलिए संवेदनशील नहीं माना जा सकता कि वह देश के प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र का हादसा है. इस हादसे को इसलिए भी संवेदनशील माना जाना चाहिए क्योंकि इस हादसे का शिकार लोग वे मासूम नागरिक हैं जिनका कोई दोष नहीं. वे सभी के सभी सेतु निगम के अधिकारियों सहित समस्त कार्यशील लोगों की लापरवाही का शिकार हो गए. बीम के रखे जाने के समय अथवा उसके बाद सम्बंधित क्षेत्र में यातायात को न रोकने, उसका डायवर्जन न करने को हादसे का जिम्मेवार बता रहे हैं वे कहीं न कहीं हादसे की गंभीरता को कम कर रहे हैं. ये समझने वाली बात होती है कि जब इस तरह के बड़े निर्माण हो रहे होते हैं और उसे सार्वजनिक क्षेत्र की कोई बड़ी संस्था के द्वारा संपन्न किया जा रहा होता है तो आम नागरिकों का एक विश्वास बना होता है. तमाम तरह की विसंगतियों के बाद जैसे आम नागरिक लोकतंत्र पर भरोसा करता है, अपने-अपने प्रदेश, देश की सरकार पर विश्वास करता है, उसके कदमों-नीतियों की आलोचना करने के बाद भी उनके प्रति विश्वास व्यक्त करता है ठीक उसी तरह की स्थिति यहाँ बनी होती है. फ्लाईओवर जैसे निर्माण आनन-फानन में नहीं किये जाते. ऐसे विस्तारपूर्ण निर्माण के लिए सम्पूर्ण मशीनरी एकजुटता से कार्य करती है. इसके बाद भी यदि किसी तरह की चूक होती है तो माना जा सकता है कि सम्बंधित तंत्र अपनी जिम्मेवारी को समझ नहीं रहा था.


अब जबकि सेतु निगम के वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है. उनसे और बाकी सम्बंधित पक्षों से पूछताछ की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इस तरह की कार्यवाही से आगे के लिए कोई सबक मिलेगा, ऐसा लगता नहीं है. निगम के कुछ उच्चधिकारियों पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करा दिया गया है, इससे होगा क्या? अदालती प्रक्रिया में तारीखों पर तारीखें पड़ती रहेंगी. हादसे का शिकार परिवार मुआवजे के कुछ लाख रुपये लेकर अपने आँसुओं को रो-रोकर सुखा लेंगे. कई-कई साल बाद संभव है कि कुछ अधिकारियों को सजा, जुरमाना जैसा कुछ हो जाये, ये भी संभव है कि वे छूट भी जाएँ. छूटने की सम्भावना इसलिए भी प्रबल दिखाई दे रही है क्योंकि पूछताछ के दौरान एक तथ्य यह भी निकल कर आया कि बीम रखने सहित अन्य निर्माण सम्बन्धी कार्यों के लिए यातायात रोकने पर निगम के कर्मियों पर प्रशासन द्वारा प्राथमिकी दर्ज करवा दी गई थी. इससे भी साफ़ है कि देश के प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में सार्वजनिक संस्थाओं के बीच आपस में ही समन्वय नहीं है.

यदि प्राथमिकी दर्ज करवाए जाने की बात सत्य है तो यह भविष्य के लिए भी बुरा संकेत है. देश लगातार विकास की प्रक्रिया से गुजरता रहता है. इस चरण में बड़े-बड़े निर्माण समाज में आम नागरिकों के बीच ही संपन्न होते हैं. दैनिक जीवन-चर्या के बीच ऐसे निर्माणों में जोखिम भी बहुत ज्यादा रहते हैं. इन जोखिमों का शिकार कई बार कर्मचारी भी होते हैं और कई बार नागरिक भी इसका शिकार हो जाते हैं. ऐसे किसी भी मामले में सम्बंधित तंत्र को चाहिए कि उससे जुड़े जितने भी विभाग हैं, संस्थाएं हैं सभी में आपस में समन्वय स्थापित कर लिया जाये. इससे भविष्य में भले ही दुर्घटनाओं को, जोखिमों को रोका न जा सके किन्तु कम तो किया ही जा सकता है. इस दुर्घटना से संस्थाएं, शासन, प्रशासन, नागरिक क्या सबक लेंगे कहा नहीं जा सकता है क्योंकि ये कोई पहली या आखिरी दुर्घटना नहीं है. आये दिन मानव-रहित रेलवे क्रासिंग की दुर्घटनाओं को हम देखते-पढ़ते हैं. आये दिन निर्माणाधीन इमारतों का गिरना सुनाई देता है, अक्सर किसी न किसी सार्वजनिक, निजी संपत्ति के कारण दुर्घटनाएं होती रहती हैं. देखने में आया है कि इन दुर्घटनाओं से कोई सीखने को तत्पर नहीं दिखता है. दुर्घटनाओं के होने के बाद भी न केवल मानव-रहित रेलवे क्रासिंग नागरिकों द्वारा पार की जाती है वरन जहाँ क्रासिंग है वहां भी दो-पहिया वाहनों वाले, पैदान नागरिक उसे पार करते देखे जाते हैं. सेल्फी मोड के चलते भी नौजवान अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं.

ये सवाल सबसे अहम है कि हम कब सीखेंगे? क्या हम हादसों को देख-सुनकर उन्हें विस्मृत करने का काम ही करते रहेंगे? दुर्घटनाओं के बाद सरकार, शासन, प्रशासन को कोसने का काम करते रहेंगे? मुआवजे के चंद रुपये किसी व्यक्ति की भरपाई नहीं कर सकते. ये बात सरकार को, हम नागरिकों को समझनी ही होगी. न केवल समझना होगा बल्कि प्रण करना होगा कि अब ऐसी लापरवाहियाँ और नहीं, वे चाहें सम्बंधित तंत्र की तरफ से हों या फिर नागरिकों की तरफ से. आखिर एक-एक जान की कीमत उसके परिवार को, देश को चुकानी होती है.

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