18 मार्च 2018

आजकल हम मौत को 'एन्जॉय' करने लगे हैं


आप में से बहुतों को शीर्षक पढ़कर आश्चर्य हुआ होगा. यदि ये कहें कि आश्चर्य से ज्यादा कुछ अजीब सी अनुभूति आई होगी, हमारे प्रति एक अलग तरह की ही सोच बनी होगी तो इसमें आश्चर्य न होगा. ऐसा सच है क्योंकि हमें खुद इस पोस्ट का ये शीर्षक लिखने में बहुत सोचना पड़ा मगर सच यही है कि हमने अब मौत को ‘एन्जॉय’ करना शुरू कर दिया है. अब किसी की मौत हमें परेशान नहीं करती. किसी की मौत हमें संवेदित नहीं करती. किसी की मृत्यु हमें विचलित नहीं करती. हाँ, ऐसा तब गलत हो जाता है जबकि ऐसा किसी हमारे अपने के साथ हुआ हो. किसी अपने की मृत्यु पर हम विचलित भी होते हैं, संवेदित भी होते हैं, भावनाओं में भी बहते हैं. अपने परिजनों से इतर, अपने ख़ास लोगों से अलग किसी भी मृत्यु को हम सभी आजकल एन्जॉय करने लगे हैं. न हो तो अभी हाल में हुई श्रीदेवी की मृत्यु को देख सकते हैं. देश से बाहर उनकी मृत्यु कतिपय संदिग्ध स्थिति में हुई. उसके बारे में अलग-अलग तरीके से राय व्यक्त की गई. अलग-अलग तरीके से जाँच को दर्शाया गया. मीडिया ने भी अपनी तरह से उस मौत का चर्चा किया. इन सबसे इतर यदि देखें तो जैसे ही ये खबर प्रसारित हुई कि श्रीदेवी की मृत्यु बाथटब में डूबने से हुई है वैसे ही सोशल मीडिया पर बाथरूम से, बाथटब से, पत्नियों से, पतियों से, प्रेमिकाओं से, विदेश यात्रा से सम्बंधित न जाने कितने चुटकुले, न जाने कितने कार्टून अपनी हलचल दिखाने लगे. इसे क्या कहा जायेगा? क्या ये किसी कि मौत को एन्जॉय करना नहीं?


इधर श्रीदेवी जैसी अभिनेत्री की मौत का मसला था जो मीडिया के कारण लगातार चर्चा में रहा. उसके बाद उन पर बने चुटकुलों और कार्टूनों ने और भी मसाला समाज को दे दिया. इसके अलावा आजकल सोशल मीडिया की जन-जन तक पहुँच ने भी संवेदनशीलता को समाप्त किया है. हर हाथ में मोबाइल और हर हाथ में इंटरनेट ने सभी को पत्रकार बना दिया है. एक ऐसा पत्रकार जो संवेदनहीन है, समाज की वास्तविकता से परे है. उसे पता नहीं है कि उसके द्वारा प्रसारित करने वाली किस खबर से समाज पर, समाज के व्यक्तियों पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है. उसे इसका भी भान नहीं है कि उसके द्वारा जाने-अनजाने में प्रसारित की जाने वाली खबरों से, प्रसारित किये जाने वाले चित्रों से लोगों के मन-मष्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ रहा है. सबसे पहले हम की अनावश्यक कोशिश के चलते बहुधा दुर्घटनाओं की फोटो लोगों के मोबाइल पर सहज पहुँच में हैं. ऐसी फोटो देखने के बाद जहाँ एक तरफ संवेदना उपजनी चाहिए मगर ऐसा होता नहीं है. ऐसी दुर्घटनाओं के चित्र देखकर भी लोगों में उनके प्रति घृणा का, व्यंग्य का भाव उत्पन्न होने लगता है. मरने वाले के कपड़ों, उसकी देहयष्टि, उसकी मांसलता, उसके जेवरात आदि पर चर्चाएँ होने लगती हैं. इसी तरह रेप अथवा किसी अन्य महिला सम्बंधित खबरों पर सम्बंधित महिला के कपड़ों, उसके रहन-सहन आदि पर चर्चा की जाने लगती है. इस तरह की चर्चाओं में पुरुष, स्त्री बराबर से शामिल रहते हैं.


दरअसल हम सभी की संवेदनाएं मर चुकी हैं. रोज हम हत्या, बलात्कार, दुर्घटना, मृत्यु की सजीव फोटो देखते रहते हैं. दो-चार दिन की संवेदना के बाद हम सभी वही चिर-परिचित पाषाण ह्रदय बन जाते हैं. उसके बाद सामने वाला हमारे लिए महज एक देह बन जाता है. देखने वाला उसे अपनी आँखों से देखता है. कोई उस मृत देह की मांसलता देखता है, कोई उस मृत देह में जेवरात खोजता है, कोई उसके परिधान देखता है. किसी के लिए भी वह संवेदनशीलता का मसला नहीं होता है. एक पल में सम्बंधित चित्र को देखने के बाद, सम्बंधित खबर को पढ़ने के बाद उससे सम्बंधित कार्टून, चुटकुले दिमाग में उभरने लगते हैं. इसके बाद वही होता है जो आजकल हम सभी करने में लगे हैं. एक चित्र और उसके साथ कई-कई चुटकुले, कार्टूनों का प्रसारण, शेयर कई-कई लोगों तक होने लगता है. आखिर हम सबको उस मौत पर एन्जॉय तो करना ही है क्योंकि वो मरने वाला हमारा अपना नहीं. अब वो मरने वाला कोई नामचीन है या फिर सामान्य व्यक्ति, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. हमें तो बस इससे मतलब है कि उसमें ऐसा क्या है जो उसकी मौत भी हमारा एन्जॉय कर सके.



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