20 मई 2017

अफवाह के चंगुल से बचें

किसी समय अंग्रेजों ने हमारे देश को मदारी, जमूरों का देश कहा था. सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश को पूरी तरह से लूटने के बाद गरीब बना दिए गए देशवासियों को अंग्रेज शासक कुछ भी समझने को आज़ाद थे. देश गुलाम था, देशवासी गुलाम थे ऐसे में वे यहाँ के नागरिकों को, देश को कुछ भी कह सकते थे. लम्बे संघर्ष के बाद, हजारों जाने-अनजाने वीर-वीरांगनाओं की शहादत रंग लाई और देश आज़ाद हुआ. अंग्रेज शासक चले गए किन्तु जाते-जाते वे अपनी मानसिकता का गहरा बीजारोपण यहाँ कर गए. जिसका दुष्परिणाम ये हुआ कि आज़ादी के बाद भी देश को जमूरा, मदारियों, नौटंकीबाजों का देश समझने वालों की कमी नहीं रही. गुलाम देश के अंग्रेजी शासकों की तर्ज़ पर आज़ाद देश के स्थानीय अंग्रेजों ने भी समय-समय पर देशवासियों के लिए अपनी-अपनी परिभाषायें निर्मित की. किसी ने बेवक़ूफ़ कहा, किसी ने कैटल क्लास बताया, किसी ने कुछ, किसी ने कुछ. इन परिभाषाओं को पुष्ट करने का काम समय-समय पर समाज में फैलती तमाम बातों ने भी किया है. इसमें भी सदैव से पढ़े-लिखे लोगों का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है. कुछ दिनों पहले EVM के हैक किये जाने की अफवाह उड़ी. उसके भी पहले नोटबंदी के समय नए नोट को लेकर अनेक तरह की अफवाह फैलाई गईं. फोटोशॉप करके भी फोटो के द्वारा अफवाह फ़ैलाने का काम पढ़े-लिखे लोगों का ही होता है. अभी देखिये, एक पढ़े-लिखे विद्वान माने जाने वाले वकील साहब तीन तलाक जैसी नितांत अव्यवहारिक व्यवस्था की तुलना आस्था से करने बैठ गए. कुछ सालों पहले यही वकील साहब अदालत में हलफनामा देकर बता रहे थे कि जिस श्रीराम के प्रति हिन्दू आस्था व्यक्त करता है वे काल्पनिक हैं. 


इस अव्यावहारिक तुलनात्मक उदाहरण के साथ ही एक और घटनाक्रम दो-तीन दिन से बहुत तेजी से सबके बीच चलने में लगा है. इसमें लोगों को बताया-समझाया जा रहा है कि एक नौ अंकों के मोबाइल नंबर से फोन आएगा और उसे रिसीव करते ही मोबाइल फट जायेगा. हालाँकि अभी तक कहाँ-कहाँ मोबाइल फटा इसकी कोई जानकारी नहीं, इसके बाद भी इस मैसेज को लगातार-बराबर शेयर किया जा रहा है. ऐसे मैसेज समय-समय पर सोशल मीडिया की शान में चार चाँद तो लगाते ही हैं देशवासियों के सामान्य से ज्ञान पर भी रौशनी डालते हैं. कभी नमक की कमी होने लगती है, कभी कॉस्मिक किरणें रात को बारह बजे पृथ्वी के पास से निकलने लगेंगी, कभी कोई उल्का पिंड धरती पर गिरने की तैयारी करने लगता है. ऐसे में याद आता है सन 1980 के आसपास का समय जबकि स्काई लैब के गिरने की अफवाह बहुत तेजी से फैली थी. उस समय लोगों में मरने के डर से, सब खो जाने के भय से अफरातफरी मच गई थी. समझा जा सकता है कि उस समय तकनीक का, संचार साधनों का अभाव था किन्तु अब तो प्रत्येक व्यक्ति तकनीकी संपन्न है, संचार साधनों के सहारे समूचे विश्व से जुड़ा है. ऐसे में किसी भी तरह की अफवाह पर समाज के बहुत बड़े वर्ग का चिंताग्रस्त हो जाना अंग्रेजों और देशी-अंग्रेजों द्वारा यहाँ के बहुतायत नागरिकों के लिए कहे गए वचनों को सिद्ध करता है.


उस समय जबकि लोगों के पास शिक्षा के साधन कम थे, लोगों का परिचय तकनीक से दूर-दूर तक नहीं था तब उनका दिग्भ्रमित हो जाना स्वाभाविक था. तब उनके पास संचार के साधन भी नहीं थे, जो थे भी वे इतने उन्नत नहीं थे कि पल में सुदूर क्षेत्र की खबर का आदान-प्रदान कर सकें. ऐसी विषम स्थितियों में नागरिकों का अफवाहों के चंगुल में फँस जाना समझ आता है. आज जबकि तकनीकी दुनिया बहुत समर्थ है; आज जबकि लगभग हर हाथ में संचार साधन की उन्नत तकनीक है; आज जबकि एक पल में देश की ही नहीं वरन विदेश की किसी भी खबर को सामने खड़ा देख सकते हैं तब भी समाज का बहुत बड़ा वर्ग अफवाहों का शिकार बन जाता है, जालसाजी का शिकार बन जाता है. ऐसे समय में ये समझ से परे है कि आखिर ऐसा क्यों हो जाता है? आखिर ऐसा होने में दोषी कौन होता है? जो अफवाह फैलाकर, जालसाजी करके अपना उल्लू सीधा करता है या फिर वो जो इसका शिकार बन जाता है? आज जिस तेजी से तकनीक का विकास हुआ है, उसी तेजी से इसका दुरुपयोग करने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. तकनीक की आड़ लेकर कभी अफवाह के द्वारा लोगों को ठगने का काम किया जाता है तो कभी इसी तकनीक के सहारे अफवाह फैलाकर किसी लोभ-लालच का शिकार बनाया जाता है. आवश्यकता सजग रहने की है, सचेत रहने की है. तकनीकी रूप से सक्षम होने का अर्थ सोशल मीडिया में हस्तक्षेप बढ़ जाना नहीं है; तकनीकी ज्ञान का अर्थ किसी भी रूप में मोबाइल पर समूची दुनिया को कैद समझ लेना नहीं है वरन तकनीकी रूप से साक्षर होने का अर्थ है कि अपने आसपास होने वाले किसी भी घटनाक्रम के बारे में सही-सही जानकारी रखना. किसी भी अफवाह, घटनाक्रम के सामने आने टार उसकी सत्यता, उसकी प्रामाणिकता को पता करना. यदि ऐसा हम नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम सभी पढ़े-लिखे निरक्षर हैं. यदि ऐसा हम नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम आये दिन खुद को ठगी का शिकार बनवा रहे हैं. यदि हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम खुद को, अपने वर्तमान को, भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं. खुद को, परिवार को, समाज को, देश को खतरों से बचाने के लिए अफवाहों से बचने, उनके प्रचार-प्रसार से बचने, उनकी सत्यता प्रमाणित करने की आवश्यकता है. 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राजा राममोहन राय जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. ज्यादातर अफवाहें ही पहुँच रही हैं मीडिया से ।

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