स्वागत हो रहा था नए साल का. स्वागत हो रहा था इस
अवसर पर आयोजित पार्टियों में शामिल होने वालों का. कोई भीड़ में नए साल का उत्सव
मना रहा था तो कोई अकेले में इसका आनंद उठा रहा था. किसी ने अपने उल्लास को जल्द
निपटा लिया तो किसी के लिए ये आयोजन देर रात तक चलता रहा. इस उमंग, मस्ती, हुल्लड़
के आयोजन के बाद एकाएक समाज का पुरुष समुदाय अपने आपको शर्मिंदा महसूस करने लगा.
अचानक से ऐसा कुछ हुआ कि सम्पूर्ण देश को लगने लगा कि मानवता कलंकित हो गई. इस
शर्मिंदा होने के पीछे, कलंकित होने जैसी भावना के पीछे बैंगलूरू में घटित छेड़खानी
की घटनाएँ रहीं. शाम से शुरू पार्टी का सुरूर अचानक से उस समय उतरता महसूस होने
लगा जबकि भीड़ में उपस्थित कुछ असामाजिक तत्त्वों ने वहाँ उपस्थित लड़कियों के साथ
शारीरिक छेड़खानी करनी शुरू कर दी. इस शर्मिंदगी पूर्ण घटना में उस समय और वृद्धि
हुई जबकि देर रात लगभग तीन बजे एक सुनसान सी गली में एक अकेली लड़की के साथ भी
छेड़खानी की गई. दोनों घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गए और उनके आते
ही सम्पूर्ण समाज में शर्मिंदगी की, पुरुष होने पर ग्लानि होने की लहर सी दौड़ गई. महिलाओं
के साथ छेड़छाड़ की ये कोई पहली घटनाएँ नहीं थीं. इससे पहले भी महिलाओं के साथ
छेड़खानी की, उनके साथ शारीरिक दुराचार की खबरें लगातार सामने आती रही हैं. फिर इस
बार ऐसा क्या हुआ कि अचानक से बहुतेरे पुरुषों को अपने पुरुष होने पर ग्लानि होने
लगी? इन दो घटनाओं में ऐसी क्या विशेष बात रही कि समाज खुद को कलंकित महसूस करने
लगा?
जिस तेजी से आपराधिक प्रवृत्ति के युवाओं ने इन
घटनाओं को अंजाम दिया उसी तेजी से सम्पूर्ण देश में इन दोनों घटनाओं पर बहस आरम्भ
हो गई. सामान्यजन से लेकर ख़ास, नेता से लेकर कलाकार तक, स्त्री से लेकर पुरुष तक
सब बहस में भाग लेते दिखे. स्पष्ट था कि कोई भी उन युवकों के प्रति किसी तरह की
सहानुभूति नहीं रख रहा था जो छेड़छाड़ की घटना में संलिप्त पाए गए. ऐसी किसी घटना पर
अपराधियों का पक्ष लिया भी नहीं जाना चाहिए मगर क्या देशव्यापी बहस के साथ ही ऐसी
किसी समस्या का निदान हो जायेगा? कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली के निर्भया कांड से चर्चित
गैंगरेप मामले के बाद किसी तरह की सख्ती अपराधी मानसिकता वालों पर लगाई जा सकी है?
क्या किसी भी स्तर पर महिलाओं की, लड़कियों की, कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के
सम्बन्ध में कोई कठोर कदम उठाया गया है? क्या कहीं भी किसी महिला को सुरक्षित
वातावरण होने का एहसास हुआ है? आज शायद ही कोई जगह बची हो जहाँ महिलाओं के साथ
असुरक्षा का वातावरण न बना हो. ऐसे में क्या किया जाये? क्या महिलाओं को ऐसी
कुंठित मानसिकता वाले लोगों के हवाले छोड़ रखा जाये? क्या इसी तरह से किसी भी घटना
के सामने आने के बाद बहस कर ली जाया करे? क्या किसी भी घटना के बाद पुरुष-महिलाओं
के एकदूसरे को गरियाने का काम करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेनी चाहिए? क्या
पहनावे, मानसिकता को लेकर आपसी तर्क-कुतर्क के द्वारा ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया
जा सकता है?
यदि हम सब वाकई महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ की
घटनाओं को रोकना चाहते हैं, उन पर अंकुश लगाना चाहते हैं तो हम सभी को मिलकर इसके
मूल में जाना होगा. पहचानना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? जानना होगा कि ऐसे
कौन से कारक हैं जो पुरुषों को महिलाओं के विरुद्ध छेड़खानी को उकसाते हैं? ऐसी
घटनाओं के बाद हरबार पुरुषों की तरफ से आवाज़ उठती है कि महिलाओं का पहनावा ऐसी
घटनाओं के लिए जिम्मेवार है. इसके उलट महिलाओं की तरफ से आरोप लगाया जाता है कि पुरुष
मानसिकता बलात्कारी है, उसे बस मौका चाहिए होता है. ज़ाहिर सी बात है कि आपसी विवाद
से किसी समस्या का हल नहीं निकलना है. यहाँ एक बात ध्यान रखनी होगी कि वर्तमान में
न केवल जागरूक होने की जरूरत है वरन सशक्त, सचेत होने की जरूरत है. इससे शायद ही
किसी को इंकार हो कि आज का माहौल असुरक्षित हो गया है. न केवल महिलाएँ ही वरन
पुरुष भी असुरक्षा महसूस करने लगे हैं. कहीं भी लूट लिया जाना. कहीं भी मारपीट का
शिकार बन जाना. आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा उनकी हत्या करना. इसी तरह से
बच्चे भी आज कहाँ सुरक्षित हैं? स्कूल में, बाजार में, पार्कों में, मोहल्ले में
भी वे असुरक्षा महसूस करते हैं. आये दिन बच्चों के अपहरण की घटनाएँ हमारे सामने
आती रहती हैं.
ऐसे में जबकि सम्पूर्ण वातावरण असुरक्षित दिख रहा हो
तब महज पहनावे को लेकर, युवकों की मानसिकता को लेकर किये जाने अनर्गल विमर्श से
कुछ हल नहीं निकलने वाला. यदि माहौल असुरक्षित है तो पहले हमें सुरक्षित रहने की
जरूरत है. अपने परिजनों की सुरक्षा के प्रति हमें सचेत होने की आवश्यकता है. अपने
घर के बाहर कार, बाइक आदि खड़ी करने पर हम उसमें ताला लगाते हैं, अपने घर को
तालेबंदी में रखते हैं, अपनी छोटी से छोटी वस्तु को सुरक्षित रखने का प्रयास करते
हैं फिर अपने परिजनों को आपराधिक तत्त्वों के हाथों में सहजता से क्यों सौंप देते
हैं? यहाँ बात किसी भी व्यक्ति को ताले में रखने की नहीं वरन उनकी सुरक्षा
व्यवस्था की है. अपने घर की लड़कियों को सुरक्षा के सम्पूर्ण उपायों के बारे में
बताया जाये. एकांत, सुनसान वातावरण आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए उत्प्रेरक
का कार्य करता है. ऐसे में अपने बेटे-बेटियों को समझाएं कि अकेले में, सुनसान में
किसी विपत्ति के आने पर उससे कैसे निपटना है. असल में आधुनिकता के वशीभूत आज ऐसे
किसी भी उपाय को बताना, अपनाना लड़कियों पर अंकुश लगाने जैसी भावना के रूप में प्रचारित
किया जाने लगता है. ऐसे माता-पिता को पिछड़ा सिद्ध किया जाने लगता है जो अपने
बच्चों की सुरक्षा के प्रति ज्यादा ही सचेत दिखते हैं. ऐसे घर-परिवार को संकुचित
मानसिकता का बताया जाने लगता है जो देर रात अपने बच्चों को घर से बाहर नहीं रहने
देते हैं. यहाँ समझना होगा कि यदि वातावरण असुरक्षित है तो फिर सुरक्षा हमें ही
करनी होगी. यदि ऐसा करने में हम असफल रहते हैं अथवा जानबूझकर ऐसा नहीं करते हैं तो
इसका सीधा सा अर्थ है कि हम अपने लोगों को खुलेआम आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के
हाथों में सौंप रहे हैं.
बहुत ही बढ़िया article है। .... Thanks for sharing this!! :) :)
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