04 अक्टूबर 2016

बहिष्कार अमल में हो, सिर्फ बातों में नहीं

पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार द्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चलाये गए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद नागरिकों में उत्साह का माहौल बना हुआ है. इस उत्साही माहौल के कारण देशभक्ति का ज़ज्बा भी दिखाई देने लगा है. पाकिस्तान के खिलाफ नीतियों की, पाक-समर्थित आतंक के विरुद्ध ढीला रवैया अपनाने को लेकर, आतंकी कार्यवाही का मुंहतोड़ जवाब न देने के चलते केंद्र सरकार की आलोचना होने लगी थी. ऐसे में कठोर सन्देश देकर केंद्र सरकार ने न केवल पाकिस्तान को वैश्विक पटल पर अकेला कर दिया है वरन देशवासियों के मन में उत्साह का संचार कर दिया है. इसी बीच आतंकी अजहर मसूद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किये जाने के मामले में चीन की तरफ से लगाया गया अड़ंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोके जाने को लेकर भी देश में विरोध का वातावरण निर्मित होने लगा है. इस विरोधी माहौल में कतिपय नागरिकों द्वारा चीनी सामानों, उत्पादों का विरोध किये जाने की सम्बन्धी विचार भी सामने आने लगे.


आज जबकि वैश्विक स्तर पर खुली बाज़ार व्यवस्था समूचे संसार में काम कर रही है, लगभग सभी देशों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियम-कानून मानने को बाध्य होना पड़ रहा है, विश्वबैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की नीतियों के चलते, उनसे लिए गए ऋण, अनुदान के चलते वैश्विक स्तर पर किसी ठोस तर्क के उत्पादों का आयात-निर्यात रोकना सहज नहीं है. ऐसे में केंद्र सरकार चाहकर भी भारतीय नागरिकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में असमर्थ दिखती है. चीनी उत्पादों के आने से जहाँ एक तरफ भारतीय लघु उद्योगों, कुटीर उद्योगों, घरेलू धंधों पर मार सी पड़ी है वहीं अत्यधिक कम कीमत के चलते भी भारतीय बाजार व्यवस्था लगभग ध्वस्त सी दिखने लगी है. बड़े और मंहगे उत्पादों से इतर रोजमर्रा के सामानों, उत्पादों, घरेलू उपभोग की वस्तुओं से भारतीय बाजार जिस सजावट और भव्यता से भरे दिखते हैं उनमें सर्वाधिक योगदान चीनी उत्पादों का ही है. ऐसी स्थिति में जबकि सरकार किसी तरह के ठोस निर्णय लेने में असमर्थ दिख रही है, स्वयं नागरिकों को देशहित में कुछ ठोस एवं कठोर निर्णय लेने ही होंगे.

किसी भी स्तर पर कारोबारी किसी के घर जाकर चीनी उत्पाद लेने का आग्रह नहीं करता है. बाजारीकरण की व्यवस्था में सबका मकसद अधिक से अधिक लाभ लेने का रहता है. ऐसे में जहाँ व्यापारी कम से कम कीमत लगाने के बाद अधिक से अधिक लाभ की लालसा पालता है तो उपभोक्ता भी कम से कम दाम में अधिक से अधिक सामानों की चाह रखता है. देखा जाये तो ये मूलतः अर्थशास्त्र के माँग और आपूर्ति के सिद्धांत पर आधारित है. ऐसे माँ जबतक उपभोक्ताओं की तरफ से माँग आती रहेगी, व्यापारी वर्ग द्वारा उसकी पूर्ति की जाती रहेगी. इसके साथ-साथ आज के दिखावटी समाज में सबकुछ सौन्दर्यबोधक होना अनिवार्य सा हो गया है. निर्जीव उत्पाद से लेकर सजीव इंसान तक सौन्दर्यबोध से ग्रसित हो गया है. एक तरफ वह खुद को करीने से दिखाना चाहता है वहीं दैनिक उपभोग की वस्तु को भी अत्यंत सजा-सजाया देखना चाहता है. यही कारण है कि अब भारतीय संस्कृति में रचे-बसे त्यौहारों, पर्वों में भी मिट्टी के दीपकों के स्थान पर चीनी दीपकों के दर्शन होने लगे हैं. लघु, कुटीर धंधों के कारण चलन में आई साधारण सी मोमबत्तियों के स्थान पर खूबसूरत सी चीनी मोमबत्तियाँ जलने लगी हैं. आम उपभोक्ता चाहकर भी इन उत्पादों का बहिष्कार नहीं कर पा रहा है. सस्ती, सुन्दर और टिकाऊ की अवधारणा में उपभोक्ता को इन उत्पादों में टिकाऊपन भले ही न मिल रहा हो पर सस्ता, सुन्दर तो हरहाल में मिल रहे हैं. इसी के चलते बहिष्कार की लाख बातों के बाद भी चीनी उत्पाद पूरी हनक के साथ हमारे घरों में प्रविष्ट हो जाता है.


जिस तरह उपभोक्ता की अपनी विवशताएँ हैं, उसी तरह सरकार की भी अपनी विवशताएँ हैं. इन्हीं विवशताओं के चलते जहाँ उपभोक्ता लाख देशभक्ति की बातों, नारों के बाद भी चीनी उत्पादों के प्रति लोभ संवरण नहीं कर पाता है, ठीक वैसे ही सरकार भी चाहकर चीनी उत्पादों का आयात प्रतिबंधित नहीं कर पाती है. यहाँ नागरिकों को अपनी ताकत दिखानी होगी और सरकार को भी सजगता दर्शानी होगी. नागरिकों को ये विचार करना होगा कि भले ही मानवनिर्मित उत्पाद में सुन्दरता, भव्यता न हो पर उसके ऊपर खर्च किया गया एक रुपया भी भारतीय नागरिक को जीविकोपार्जन का सूत्र बना. उसे स्मरण करना होगा कि देश की आर्थिक स्थिति में उसके एक रुपये का भले ही बहुत मोल न हो किन्तु देश से समाप्त होते जा रहे लघु, कुटीर उद्योगों के पुनर्जीवन में बहुत बड़ा योगदान होगा. इसी तरह सरकार को भी विश्वसनीयता, उनका मानकीकरण, सुरक्षा, प्रदूषण, नागरिकों के हितों की सुरक्षा आदि बिन्दुओं के आधार पर चीनी उत्पादों पर आयात सम्बन्धी रोक लगाई जा सकती है. इसके अलावा चीनी उत्पादों को भारतीय उत्पादनकर्ताओं के हितार्थ भी प्रतिबंधित किया जा सकता है. इसके लिए आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी जैसा कदम भी उठाया जा सकता है. फ़िलहाल तो सरकार की तरफ से जबतक किसी तरह की ठोस कार्यवाही नहीं होती तबतक नागरिकों को, उपभोक्ताओं को, व्यापारियों को ही ऐसे क़दमों को उठाना होगा. 

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