08 मई 2016

शाब्दिक विलोपन का संकट

हमारी दादी एक शब्द ‘हुडुकचुल्लू’ का प्रयोग अक्सर करती थीं. किसी व्यक्ति द्वारा कुछ गलत कहने पर, गलत करने पर, काम या बात को न समझ पाने पर वे इस शब्द का प्रयोग करती थीं. इस शब्द का अर्थ हमारी समझ में न तब आया और न अब तक आया. इतना ही समझ आया कि इस शब्द का उपयोग दादी द्वारा बेवकूफी करने वालों के सन्दर्भ में किया जाता था. शाब्दिक दुनिया में ऐसे बहुत से शब्द हैं जिनका कोई विशेष अर्थ नहीं हैं मगर आज भी वे बहुतायत में बोले जाते हैं. आपसी वार्तालाप में प्रयोग किये जाते हैं. ऐसे शब्दों के अर्थ व्यक्तियों की बातचीत के सन्दर्भ में स्वतः निर्धारित हो जाते हैं अथवा निर्धारित कर लिए जाते हैं. हाल-फ़िलहाल में राजनीति के क्षेत्र में नवोन्मेषी महाशय ने भी एक अजब से शब्द ठलुआ के द्वारा भाषाई चर्चा को केंद्र में ला दिया. शब्दों के ऐसे प्रयोग के साथ-साथ हिन्दी भाषा में शब्द-संकुचन, शब्द-विस्तार जैसी अवधारणा सहजता से देखने को मिलती है. हमारे आसपास बहुत से शब्द ऐसे होते हैं जो अपने मूल अर्थ से अधिक विस्तार पा जाते हैं. ऐसे कई-कई शब्द अपना मूल अर्थ खोते हुए व्यापकता प्राप्त कर लेते हैं. इनको उससे सम्बंधित वस्तु, घटनाक्रम में प्रयुक्त किया जाने लगता है. डालडा, टुल्लू, ऑटो, तेल आदि ऐसे ही शब्द हैं जिनका अपना विशेष सन्दर्भ है किन्तु आज ये व्यापकता के साथ प्रयुक्त किये जा रहे हैं. वनस्पति घी के एक ब्रांड के रूप में सामने आये डालडा को आज ब्रांड नहीं वरन उत्पाद के रूप में देखा जाने लगा है. इसी तरह तेल शब्द का अभिप्राय उस उत्पाद से है जो तिल से निकलता है. आज इसका विस्तार होकर अनेक तरह के पदार्थों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा. ऐसा ही अन्य दूसरे शब्दों के साथ हो रहा है. शब्दों की इसी व्यापकता के सन्दर्भ में आज एक शब्द निर्भया भी चर्चा में है. दिल्ली में दिल दहलाने वाली घटना के बाद निर्भया शब्द चलन में आया और आज इसे अन्य दूसरी घटनाओं के साथ भी जुड़ा हुआ पाते हैं. बिना उसका मर्म जाने, बिना शब्दों का मूल भाव जाने उसे व्यापक सन्दर्भों में प्रयुक्त किया जाना भाषाई विसंगति ही है. 



शब्द-विस्तार की तरह शब्द-संकुचन की स्थिति भी देखने में आती है किन्तु ये कुछ कम है. इसके उदाहरण के रूप में कमल को लिया जा सकता है. कमल के विविध पर्यायों के अलग-अलग सन्दर्भ, अलग-अलग अर्थ हैं वो चाहे सरोज हो, पंकज हो, नीरज आदि हो. देखा जाये तो इन सभी शब्दों के अलग-अलग अर्थ हैं, स्थितिगत अर्थ हैं. इसके बाद भी किसी भी स्थान विशेष पर खिले हुए कमल-पुष्प को सिर्फ कमल से ही पुकारा जाता है. दरअसल शब्द-संकुचन अथवा शब्द-विस्तार की स्थिति व्यक्ति की उस मानसिकता के कारण उपजती है जहाँ वो किसी भी शब्द अथवा स्थिति के मूल में जाना पसंद नहीं करता. किसी शब्द के मूल अर्थ की जानकारी लेने का प्रयास नहीं करता है, वहां भी ऐसी स्थिति देखने को मिलती है. इनके अलावा भाषाई स्तर पर शब्दों के विलुप्त होने की स्थिति भी अब आम हो चली है. इसके पीछे व्यक्ति की मानसिकता प्रभावी रूप से अपनी भूमिका का निर्वहन करती है.

शब्दों का विलुप्त होना उनके चलन में न रहने के कारण, शब्द विशेष के कार्यों, वस्तुओं आदि के चलन में न रहने के कारण, उनसे गँवईपन का बोध होने के चलते उनको किनारे किये जाने के कारण से होता है. किसी ज़माने में ग्रामीण अंचलों में धड़ल्ले से बोले जाने वाला फटफटिया शब्द मोटरसाईकिल से होता हुआ बाइक पर आकर रुक गया. इसी तरह से रोजमर्रा के प्रयोग में आने वाली तश्तरी अब प्लेट में बदल चुकी है, प्याले भी बहुतायत में कप में बदल गए हैं. अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में भी यही हालत बनी हुई है. अनेकानेक शब्द अंग्रेजी के इस्तेमाल के चलते विलुप्त होने की स्थिति में आ गए हैं. भिश्ती, मसक, ठठेरा, सिल-बट्टा, मूसल आदि शब्दों का चलन से बाहर होने में इन शब्दों से सम्बंधित कार्यों, व्यक्तियों, वस्तुओं का चलन से बाहर होना रहा है.

भाषाई स्तर पर ये स्थिति चिंताजनक है, होनी भी चाहिए किन्तु कई बार लगता है कि जब इन्सान ने अपने रिश्तों, संबंधों, परिवार तक को विलुप्त होने की स्थिति में पहुँचा दिया है तो फिर शब्दों की बिसात ही क्या है. तकनीकी के बढ़ते जा रहे प्रभाव के चलते एक अबोल स्थिति इंसानों के मध्य पनपती जा रही है. पत्र से टेलीफोन पर आने और फिर मोबाइल क्रांति के चलते उनका अतीत में बदल जाने को सबने देखा. इधर सूचना तकनीकी क्रांति ने तो उस मोबाइल से होती बातचीत को भी लगभग समाप्त कर दिया है. संदेशों का आदान-प्रदान करके अब कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाने लगी है. सामने वाले ने तो विभिन्न मंचों का प्रयोग करके आप तक सन्देश भेज दिया. अब यदि आपको फुर्सत है तो उसको पढ़ लें अन्यथा की स्थिति में एक अबोल स्थिति तो बनी ही है. ऐसी अबोल स्थिति में जबकि संवाद विलुप्त हैं, बातचीत में ही शब्द विलुप्त हैं तो फिर भाषाई विलुप्तता से घबराहट किसलिए. हमारे, आपके, सबके बीच से लगातार विलुप्त होती जाती कई-कई चीजों के बीच यदि हम सभी लोग इंसानियत को, मानवता को, भाईचारे को जिन्दा बनाये रखें तो यही बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.

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