जिस तरह से विपक्षी दल, विशेष रूप
से कांग्रेस कार्य कर रही है, उससे स्पष्ट है कि उसके पास सिवाय हताशा-निराशा के
कुछ शेष नहीं रहा है. अपनी लोकसभा पराजय को वे लोग अभी तक भुला नहीं सके हैं. देश
की सबसे पुरानी पार्टी का अहंकार उनमें इस कदर भरा हुआ है कि घोटालों में नाम आने
के बाद भी पूरी हनक के साथ किसी से न डरने की बात कही जाती है. ये शर्मसार करने
वाली नहीं वरन लोकतान्त्रिक व्यवस्था को हिला देने वाली स्थिति है, जहाँ कि आधा
सैकड़ा से कम सदस्य पूरे सदन को बंधक बना लेते हैं. जहाँ किसी भी कांग्रेसी के
घोटालों में लिप्त होने की खबर मात्र से सदन से सड़क तक हंगामा मचा दिया जाता है. पिछले
घोटालों के खुलासे पर अकसर इसकी आशंका व्यक्त कर ली जाती है कि सत्ता-पक्ष द्वारा
शायद अपनी ताकत का दुरुपयोग किया जा रहा हो. शायद उसके द्वारा विरोधियों को फँसाने
की साजिश रची जा रही हो. ये सारी आशंकाएँ, सारी साजिशों की बातें उस समय बेमानी
साबित हो जाती हैं जबकि किसी घोटाले का खुलासा किसी विदेशी अदालत द्वारा किया जाता
है. अगस्ता मामले में हुआ खुलासा इस देश में नहीं हुआ, इस सरकार के कहने से नहीं
हुआ वरन एक विदेशी अदालत द्वारा ऐसा किया गया है. ऐसे में क्या समझा जाये कि
सत्ता-पक्ष ने, भाजपा ने या फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेशी अदालत तक को
इसके लिए प्रभावित कर लिया अथवा दबाव में ले लिए कि वो भी कांग्रेसियों के खिलाफ
अपने निर्णय में प्रश्न-चिन्ह लगा बैठे?
देखा जाये तो विरोधियों, विशेष रूप
से कांग्रेस की तमाम हरकतें अब हास्यास्पद स्थिति में पहुँच चुकी हैं. अपने आपको
विभिन्न आरोपों में, घोटालों में घिरा देखकर वे उससे निकलने के स्थान पर अपने आपको
सर्वोत्कृष्ट समझकर सत्ताधीशों की तरह से व्यवहार करने में लगे हैं. आरोपों,
घोटालों के बीच नरेन्द्र मोदी के लगातार सामने आते कार्यों, उनके दृष्टिकोण,
लगातार मिलती प्रसिद्धि से भी कांग्रेसी बौखलाए हुए हैं. जिस तरह से कई-कई मुद्दों
पर सकारात्मक रूप से सत्ता-पक्ष कार्य करने में लगा हुआ है, उससे भी कांग्रेसियों
में निराशा बढ़ती जा रही है. इसी निराशा का परिणाम है कि कांग्रेस के एक युवा सांसद
आरोप लगाते हैं कि पठानकोट हमलों की जाँच करने आई पाकिस्तानी टीम में एक सदस्य
आईएसआई का भी था. इस तरह के बयान से पहले क्या उसकी तथ्यात्मकता की जाँच सम्बंधित
सांसद ने कर ली थी? उनके पास ऐसे कौन से सबूत हैं जिनके आधार पर उनको ज्ञात हुआ कि
उस टीम में इस तरह का एक सदस्य है? यदि एक पल को इसे सत्य भी मान लिया जाये तो एक
सांसद होने के नाते, एक भारतीय नागरिक होने के नाते उन्होंने इसकी जानकारी भारतीय
सुरक्षा एजेंसियों को क्यों नहीं दी और यदि दी भी तो कब? जाहिर सी बात है कि इन
लोगों का एकमात्र उद्देश्य इस समय मोदी सरकार को बदनाम करने का है.
कांग्रेस यदि अपने आपको देश की
सबसे पुरानी पार्टी, सबसे बलिदानी पार्टी कहने से नहीं चूकती तो उसे अपने विपक्षी
होने का धर्म निर्वहन करना चाहिए. उसे इसे स्वीकारना चाहिए कि वे वर्तमान में
विपक्ष में हैं और नितांत निम्न स्तर पर हैं. उन्हें ये भी मानना होगा कि उनके
शासनकाल के अंतिम दस वर्षों में जिस तरह से घोटाले हुए, भ्रष्टाचार के मामले सामने
आये उन्होंने ने केवल उनकी प्रतिष्ठा को गिराया है बल्कि देश के सम्मान को भी कम
किया है. अब जबकि सत्ताधारी दल, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने प्रयासों
से देश की छवि को पुनः सुदृढ़ बनाने का प्रयास करने में लगे हैं तब कांग्रेसियों का
भी दायित्व बनता है कि वे न सही भाजपा के समर्थन में वरन देशहित में ही कार्य करने
का प्रयास करें. उनके घोटालों, भ्रष्टाचारों का यही पश्चाताप होगा कि वे ऐसे
मामलों के आरोपियों को सामने लाकर इनकी जाँच में मदद करें. देखने वाली बात ये है
कि उत्तराखंड में जिस स्टिंग को गलत बताने में यही कांग्रेसी लगे हुए थे, उसी को
स्वयं उसी राजनीतिज्ञ ने सच कह दिया. विरोध करना विपक्ष का कार्य है, होना भी
चाहिए किन्तु वह इस तरह का हो कि उससे सत्ता-पक्ष को निरंकुश होने का मौका न मिले.
विरोध के नाम पर अब यदि विरोधी दलों द्वारा अंकपत्रों, डिग्रियों की जाँच की माँग
की जाने लगेगी तो सोचा जा सकता है कि इनके विरोध का स्तर क्या है.
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