24 फ़रवरी 2016

सरकार नहीं देश कमजोर होगा ऐसे तो



केन्द्र में भाजपा सरकार के गठन और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लगातार कोई न कोई विवाद सामने आता रहा है. विडंबना विवादों के सामने आने की नहीं वरन इसके पीछे से विपक्षी दलों की मानसिकता के सामने आने की है. गुजरात के हार्दिक पटेल का मामला हो, हैदराबाद के छात्र की आत्महत्या का मसला हो, उत्तर प्रदेश के अख़लाक़ की हत्या हो, पश्चिम बंगाल का उपद्रव हो, जेएनयू का राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन और छात्रों की गिरफ़्तारी हो, हरियाणा का आरक्षण उत्पात हो या फिर महिलाओं का मंदिरों में प्रवेश, देव-पूजन करने को लेकर किया गया हंगामा हो सभी में विपक्ष की भूमिका खुलकर सामने आई है. केंद्र में भाजपा सरकार के आते ही जिस तरह से देश में उथल-पुथल का माहौल बना या फिर बना दिया गया वो महज माहौल मात्र नहीं है बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी साजिश काम कर रही है. सरकार गठन के तुरंत बाद से ही नरेन्द्र मोदी की कट्टर हिंदुत्व-विचार वाली तस्वीर धूमिल होना शुरू हो गई. महात्मा गाँधी के जन्मदिन से ही स्वच्छता अभियान का आरम्भ करके जहाँ उन्होंने सरकार के गाँधी-विरोधी होने की छवि को तोड़ा वहीं अम्बेडकर के नाम रहने तक आरक्षण लागू रहने की बात कहकर उन्होंने दलितों, अल्पसंख्यकों के मन में भी विश्वास जमाया. इसी के साथ-साथ अनेकानेक योजनाओं के द्वारा उस युवा शक्ति के दिल में भी अपनी जगह बनाई, जिसे नरेन्द्र मोदी के विरोध में अनर्गल प्रचार कर भरमाया गया था. 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली से; अल्पसंख्यकों, दलितों आदि के लिए सकारात्मक नीतियाँ बनाये जाने से; सरदार पटेल के साथ-साथ गाँधी, अम्बेडकर के समर्थन में बात करने से; लगातार युवा शक्ति के आदर्शरूप में उभरते जाने से; वैदेशिक यात्राओं के चलते सशक्त होते जा रहे विदेशी संबंधों के कारण से विपक्षी दलों में खलबली मची हुई है. जाति, धर्म, आरक्षण, विकास, युवाओं आदि के नाम पर चलती-सजती अपनी राजनैतिक जमीन इन दलों को दरकती नजर आने लगी. कहीं  न कहीं इनके द्वारा अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस किया जाने लगा. सरकार-विरोधी ताकतों ने एक-एक करके उन सभी बिन्दुओं पर चोट करने का प्रयास किया जो कदम-दर-कदम नरेन्द्र मोदी की ताकत बनते जा रहे थे या कहें कि उनकी विध्वंसका छवि को तोड़ने का कार्य कर रहे थे. अख़लाक़ की घटना से मुस्लिम समुदाय को, रोहित बेमुल्ला की आत्महत्या से दलित वर्ग को, जेएनयू प्रकरण से युवा शक्ति को, हरियाणा आरक्षण की आग से आरक्षण समर्थकों को केंद्र सरकार के विरोध में, नरेन्द्र मोदी के विरोध में करने की मानसिकता से कार्य किया गया. सोचने का बिंदु ये है कि आतंकी अफ़ज़ल की फाँसी का विरोध उसी समय जेएनयू के छात्रों ने क्यों नहीं किया था? उसको शहीद घोषित करने जैसा, देश-विरोधी प्रदर्शन करने का वक्त पिछली सरकार में क्यों नहीं किया गया था?

अब जबकि ताजातरीन हरियाणा के आरक्षण उपद्रव में कांग्रेस के हाथ होने का स्पष्ट संकेत मिल चुका है, तब देश के विभिन्न भागों में उपद्रव के, उत्पात के खेल में किसी न किसी रूप में विपक्ष की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है. वर्तमान में समस्त विपक्षी दलों का एकमात्र एजेंडा सरकार को कार्य न करने देना है; प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बनती सशक्त अंतर्राष्ट्रीय छवि को धूमिल करना है. यहाँ तमाम विपक्षी दलों को इसका भान होना चाहिए कि उनकी हरकतों से, ऐसी मानसिकता से, मोदी-विरोध के चलते किसी भी हद तक चले जाने की प्रवृत्ति से, अनर्गल बयानबाज़ी करके, देश-विरोधी प्रदर्शनों का समर्थन करके वे केंद्र सरकार को नहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नहीं वरन देश की संप्रभुता, अखंडता, एकता, सुरक्षा को अस्थिर करने में, कमजोर करने में लगे हैं. विपक्षी दलों द्वारा कट्टरपंथी ताकतों को, देश-विरोधी ताकतों को, फिरकापरस्त ताकतों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन आज दिया जा रहा है वो कल को न केवल उनके लिए वरन इस देश के लिए भी नासूर बन जायेगा. समझना होगा कहीं सरकार विरोध के नाम पर ये विपक्षी दल देश में कट्टर आतंकवाद की, समाज विखंडित करने वालों की जड़ों को तो मजबूत नहीं कर रहे हैं?
 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बजट सत्र में सबकी पोल खुलेगी कि कौन कितना देश के बारे में सोचता है!

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सचिन 200 नॉट आउट और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं