लोकतान्त्रिक व्यवस्था होने के बाद
भी देश में राजशाही के लक्षण नियमित रूप से देखने को मिलते हैं. इसका ताजातरीन
उदाहरण सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश मिलने
के बाद दिखाई दिया. नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर नयायालय के आदेश के बाद संसद से
लेकर सड़क तक जिस तरह से कांग्रेसियों ने अपना प्रदर्शन किया है वो चाटुकारिता का
जीता-जागता उदाहरण है. यदि एक पल को नेशनल हेराल्ड मामले पर नजर डाली जाये तो वित्तीय
अनियमितता का समझ आता भी है. एक कंपनी का अधिग्रहण, कंपनी के शेयरों का हस्तांतरण,
कांग्रेस द्वारा कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की एक नई कंपनी को ऋण उपलब्ध करवाया जाना
आदि ऐसा कुछ है जो संदेह उत्पन्न करता है. ऐसे में यदि शीर्ष नेतृत्व पर संदेह के
बादल दिख रहे हों और न्यायालय द्वारा उनकी उपस्थिति के पश्चात् मामले को स्पष्ट
करने का अवसर दिया जा रहा है, तो किसी को क्या आपत्ति होनी चाहिए? सोनिया गाँधी को
संभवतः स्मरण नहीं होगा अब कि वे जिन इंदिरा गाँधी की बहू होने का दंभ भरा बयान
देकर ‘किसी से न डरने वाली’ धौंस जैसी शब्दावली का प्रयोग कर रही हैं, वे इंदिरा
गाँधी भी न्यायालय में उपस्थित होती रही थी.
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सोनिया, राहुल के उपस्थिति के आदेश
के बाद से जिस तरह से संसद से लेकर सड़क तक प्रदर्शन किये गए वे शर्मनाक कहे जा
सकते हैं. पिछले संसद सत्र में जिस तरह का रवैया कांग्रेसी सांसदों का, उनके
उपाध्यक्ष का रहा वो वर्तमान सत्र में भी यथावत कायम है. विपक्ष का काम करना
कांग्रेस का राजधर्म हो सकता है मगर यहाँ जिस तरह से कार्य किया जा रहा है वो
राजधर्म कम और परिवारधर्म ज्यादा लग रहा है. ये समझने की बात है कि किसी मामले में
सत्य-असत्य की जाँच के लिए यदि न्यायालय ने सम्मन भेज दिया है तो इस पर इतना बवाल
मचने की आवश्यकता क्या है? अभी सोनिया, राहुल पर न तो आरोपों का निर्धारण हुआ है
और न ही सजा हुई है. इसके अलावा न्यायालय में उपस्थिति मात्र को लेकर जो हंगामा
किया जा रहा है, उसके लिए प्रदर्शन करते लोग बताएँ कि ये दोनों लोग किस संवैधानिक
पद पर आसीन हैं कि इन्हें न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश से किसी तरह से संविधान
की मर्यादा का हनन हुआ है? सोनिया और राहुल महज सांसद हैं और किसी भी सांसद के
न्यायालय में उपस्थित होने से किसी राष्ट्रीय शर्म की स्थिति नहीं बनती है. इसके
उलट राष्ट्रीय शर्म इस बात पर है कि देश के दो सांसदों को न्यायालय में उपस्थिति
मात्र के आदेश से समूची संसद को बंधक सा बना लिया गया है.
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दरअसल कांग्रेस वर्तमान लोकसभा में
अपनी सर्वाधिक दुर्गति वाली स्थिति में है और उसके पास कोई ऐसा मुद्दा भी नहीं है,
जिसके आधार पर केन्द्र सरकार को बदनाम किया जा सके. ऐसे में देश भर में फैले समूचे
कांग्रेसी समर्थकों द्वारा अपने प्रदर्शन से, बयानबाजियों से ऐसा दिखाने का प्रयास
किया जा रहा है कि ये सब राजनैतिक षड्यंत्र रचकर किया जा रहा है. स्पष्ट है कि
कांग्रेसी शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ उनके समूचे तंत्र में राजशाही के कीटाणु
पर्याप्त रूप से पनप चुके हैं. वे अभी भी इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि आधी
सदी से अधिक समय तक देश की सत्ता सँभालने वाली पार्टी, एक परिवार के सदस्य अब महज
सांसद के रूप में विराजमान हैं. इसी दंभ के चलते इन लोगों के लिए न्यायालय के
प्रति कोई सम्मान नहीं है. एक परिवार के प्रति अपनी चाटुकारिता दर्शाने वालों से
कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वे देश के लोकतंत्र को सुरक्षित रखने को प्रतिबद्ध
रहेंगे? जिनके मन-मष्तिष्क में सिर्फ राजशाही जैसी स्थिति हो, जिनके मन में
न्यायालय के प्रति सम्मान न हो, संवैधानिक मर्यादा न हो, संसद के प्रति आदरभाव न
हो, देश की मान-मर्यादा का ख्याल न हो, जनता के धन के दुरुपयोग किये जाने का भय न
हो, उनसे किसी तरह की सकारात्मकता की उम्मीद रखना बेमानी है.
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nice blog..
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