व्यक्ति दिन-प्रतिदिन तरक्की करता
हुआ आगे बढ़ता जा रहा है. इसके पीछे उसकी जिज्ञासा, कुछ नया करने की ललक, जीवन को
सहज बना देने की मानसिकता रही है. यही कारण रहा कि उसने गुफाओं, वनों के आदिमनावीय
जीवन में भी अपने मष्तिष्क को सक्रिय बनाये रखा तथा अनेकानेक खोजों, आविष्कारों के
द्वारा खुद को आधुनिक मानव के रूप में विकसित कर पाया. इस वायुमंडल की जो-जो
वस्तुएं, जो-जो स्थितियाँ उसके लिए कभी आश्चर्य का, भय का विषय हुआ करती थीं, उन
सभी को मानव ने अपने जिज्ञासु दिमाग के चलते सहज-सरल रूप में प्रस्तुत कर दिया. आदिकाल
से लेकर वर्तमान तक की खोजों, आविष्कारों में विज्ञान का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा
है, इससे किसी को इंकार नहीं होना चाहिए. विज्ञान के चरणबद्ध स्वरूप के सामने आते
रहने के कारण ही इंसान ने ज्वार, भाटा, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, हवा, आग, पानी,
अंतरिक्ष, चंद्रमा, तारों, पृथ्वी सहित अनेकानेक अद्भुत रहस्यों को सुलझाने में
सफलता प्राप्त की. इसी विज्ञान की ताकत के सहारे इंसान ने जहाँ सागर की गहराइयों
को नापने में सफलता प्राप्त की वहीं उसने सुदूर आकाश को भी अपने क़दमों तले कर
लिया. विज्ञान के प्रति इंसानी रुझान का सुखद परिणाम यही रहा कि वर्तमान दौर में
इंसान के लगभग प्रत्येक कार्य विज्ञान के सहारे संपन्न हो रहे हैं. प्रतिदिन आँख
खुलने से लेकर सोने तक की स्थितियों में विज्ञान बराबर इंसान के साथ कदमताल करने
में लगा हुआ है. विज्ञान की इस सहजता के बाद भी विज्ञान आम आदमी की समझ से बाहर
दिखाई देता है. दरअसल हम सभी विज्ञान की सहायता से अपने जीवन को तो सरल, सहज बनाते
चले जा रहे हैं किन्तु उसी विज्ञान को समझने की कोशिश नाममात्र के लिए भी नहीं कर
रहे हैं.
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कदम-दर-कदम विज्ञान का साथ होने के
बाद भी, वैज्ञानिक तकनीक के सहारे, वैज्ञानिक आविष्कारों, खोजों के परिणामस्वरूप मिलते
संसाधनों के बाद भी, विज्ञान-जनित उपकरणों पर पूरी तरह निर्भर होने के बाद भी इंसान
में विज्ञान के प्रति अरुचि का भाव देखा जाता है. देखा जाये तो ऐसा भाव न केवल आम
नागरिक में वरन उन लोगों में भी पनप रहा है जो विज्ञान की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं
अथवा विज्ञान विषय का अध्ययन करके किसी अन्य क्षेत्र में कार्यरत हैं. माध्यमिक
शिक्षा से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा तक विज्ञान विषय से अध्ययन करने के बाद भी
बहुतायत छात्रों में विज्ञान के प्रति अरुचि का भाव देखा जाता है. रोजमर्रा में
प्रयुक्त होने वाले उपकरणों में विज्ञान किस तरह से कार्य कर रहा है, किस
वैज्ञानिक तकनीक के सहारे ये उपकरण हमारे जीवन को सहजता प्रदान कर रहे हैं, इसको
जानने-समझने की ललक, लालसा भी विज्ञान विषय के विद्यार्थियों में नहीं दिखती है. वर्तमान
में समाज में एक और प्रवृत्ति देखने को मिल रही है कि विज्ञान विषय की तरफ उन
अभिभावकों की ही रुचि दिख रही है जो अपने बच्चों को इंजीनियरिंग अथवा चिकित्सकीय
शिक्षा प्रदान करवाने की मंशा रखते हैं अन्यथा की स्थिति में अभिभावक अपने बच्चों
को विज्ञान विषयों से इतर अन्य विषयों में शिक्षा ग्रहण करवाने पर ज्यादा जोर देने
लगा है. उसके लिए कला, वाणिज्य अथवा अन्य दूसरे विषय अब प्राथमिकता में होते जा
रहे हैं.
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विज्ञान पर पूर्ण निर्भरता होने के
बाद भी विज्ञान के प्रति अरुचि का भाव, सामान्य विज्ञान के प्रति अरुचि का भाव
पैदा होते जाना सुखद संकेत तो नहीं ही कहा जा सकता है. विज्ञान के क्षेत्र में
कार्य कर रहे लोगों को, बुद्धिजीवियों को, साहित्यकारों को इस तरफ विचार करने की
आवश्यकता है. देखा जाये तो विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत लोगों, चाहे वे शिक्षक
रहे हों, चाहे वे वैज्ञानिक हों, चाहे वे वैज्ञानिक लेखक हों, सभी ने विज्ञान को
अत्यंत क्लिष्टता का, सर्वोच्चता का मुलम्मा ओढ़ाकर आम नागरिकों से दूर रखने का ही
प्रयास किया है. इस क्लिष्टता में विज्ञान के लिए प्रयुक्त होने वाली भाषा ने भी
अपनी भूमिका निभाई है. विज्ञान की साधारण से साधारण जानकारी हो अथवा किसी विशिष्ट
विषय पर प्रस्तुत सामग्री, उसे क्लिष्ट अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत करके विशिष्टजनों
तक ही सीमित कर दिया जाता है. वैज्ञानिक आविष्कारों को, आम जीवन में प्रयुक्त होने
वाले उपकरणों की वैज्ञानिकता को, उनकी तकनीक को भी सहज, सरल रूप में समझाने का
प्रयास नहीं किया गया है.
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इससे इंकार नहीं किया जा सकता है
कि वर्तमान दौर विज्ञान का दौर है, इसके बाद भी ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि यदि
विज्ञान को सामान्य विज्ञान बनाकर आम आदमी के लिए प्रस्तुत नहीं किया जायेगा तो एक
इंसान दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों के गुण-दोषों से परिचित हुए बिना
उनका उपभोग ही करता रहेगा. यही कारण है कि आज समूचा विश्व पर्यावरण-संरक्षण की,
पृथ्वी को बचाने की, ओजोन क्षरण रोकने की, जल-संरक्षण आदि की चर्चा करने में लगा
हुआ है. आवश्यक रूप से इनके लिए कदम उठाये जाने के साथ-साथ विज्ञान को सरलतम रूप
में आम आदमी के बीच प्रस्तुत करने के उपाय भी किये जाने चाहिए. हिन्दी भाषा के
साथ-साथ अनेकानेक क्षेत्रीय भाषाओं में भी सहज-सरल भाषा-शैली में वैज्ञानिक लेखों,
सामग्री का प्रकाशन किया जाना चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षा से ही
विज्ञान को अत्यंत सरल, रोचक रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिससे
विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति भय, अरुचि का भाव पैदा न होने पाए. समाचार-पत्रों,
पत्रिकाओं आदि के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से, सोशल मीडिया के द्वारा भी रोजमर्रा
में प्रयुक्त होने वाले वैज्ञानिक उपकरणों के बारे में जानकारी सहज, सरल, रोचक
भाषा-शैली में प्रस्तुत करके आम इंसान को विज्ञान से, वैज्ञानिक उपकरणों से जोड़ने
की कोशिश की जानी चाहिए. वायुमंडल, पर्यावरण, जल, पृथ्वी, आकाश आदि की सुरक्षा के
लिए तत्पर वैज्ञानिकों, समाजसेवियों, सरकारों आदि को तब तक पूर्ण रूप से सफलता
नहीं मिल सकती जब तक कि वे आम इंसान को जागरूक करने में असफल रहेंगे. स्पष्ट है,
आम आदमी उस स्थिति में ज्यादा जागरूक हो सकेगा जबकि वो विज्ञान के महत्त्व को
समझे, प्रयुक्त किये जा रहे वैज्ञानिक उपकरणों के गुण-दोषों को, हानि-लाभ को समझे.
और ऐसा विज्ञान को सुलभ बनाये बिना संभव नहीं है.
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