बच्चों के लिए ‘बस
दो मिनट’ में तैयार होने वाली मैगी संकट की स्थिति में दिख रही है. मनमाफिक घरेलू
पकवानों, नाश्ते की स्वादिष्ट परम्परा को समाप्त करके मैगी विगत कई वर्षों से
माताओं के लिए वरदान साबित हो रही थी. किसी भी समय नाश्ते में, भोजन में.
छुट्टियों में, सुबह में, शाम में, दिन में, रात में ‘कुछ भी’ बनाकर खिलाने की
बचपन की जिद का समाधान मैगी ने माताओं के हाथ में थमा दिया था. मैगी और अन्य जंक
फ़ूड पारंपरिक नाश्ते पर, खाद्य पदार्थ पर भारी सिद्ध हो रहे थे. भागदौड़ भरी जिंदगी
में, आपाधापी के माहौल में, शारीरिक मेहनत से बचने की कवायद में कब इन खाद्य
पदार्थों ने रसोई पर कब्ज़ा कर लिया, कब हमारी मानसिकता पर कब्ज़ा कर लिया हमें पता
ही नहीं चल सका. समय के साथ इन खाद्य पदार्थों का चलन बढ़ता ही जा रहा है. घर हो,
रेस्टोरेंट हो, होटल हो, बच्चों की पार्टी हो, वैवाहिक कार्यक्रम हो अथवा किसी भी
तरह का कोई भी आयोजन सभी में ऐसे खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सहजता से मिलती है. ये
जानते-समझते हुए भी कि ये खाद्य पदार्थ कहीं न कहीं हमारी जीवनशैली को, हमारे शरीर
को, हमारी सोच को, हमारे बच्चों के भविष्य को प्रभावित कर रहे हैं, इनका प्रयोग कम
नहीं हुआ. रसोई को थकाऊ, उबाऊ प्रक्रिया मानने, अभिभावकों के नौकरीपेशा होने ने,
जीवनशैली के अनियमित होने ने भी इन खाद्य पदार्थों को स्वीकार्यता प्रदान करवा दी.
माता-पिता की मजबूरी का फायदा उठाते हुए मैगी जैसे अन्य खाद्य पदार्थों ने बच्चों
के साथ-साथ बड़ों को भी अपना दीवाना बना दिया. इस दीवानगी का खामियाजा कहीं न कहीं
अपने शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के चलते भुगतना पड़ रहा है.
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ऐसे खाद्य पदार्थों
के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति अकेले हम ही चिंतित नहीं दिख रहे हैं वरन वैश्विक
रूप से अनेक देश इसके प्रति चिंतित नज़र आ रहे हैं. कुछ वर्ष पहले अमेरिका, चीन
सहित अनेक यूरोपीय देशों ने इन जंक फ़ूड को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी, बच्चों
के शारीरिक परिवर्तनों का अध्ययन करते हुए उनके प्रतिकूल व्यवहार को सामने रखा था.
अब जबकि हमारे देश में मैगी में खतरनाक तत्त्व मिलने की पुष्टि हुई है, कई-कई
राज्यों में मैगी अपने परीक्षण में असफल हुई है, इससे भी इसके हानिकारक होने की
पुष्टि हुई है. ऐसा नहीं है कि अकेले मैगी ही हानिकारक है और अन्य दूसरे खाद्य
पदार्थ, पेय पदार्थ आदि सुरक्षित हैं. ये समझने वाली बात है कि जब किसी खाद्य
पदार्थ को उसकी प्राकृतिक अवस्था से इतर कई-कई माह के लिए सुरक्षित रखा जाना हो तो
उसको किसी न किसी रासायनिक पदार्थ के द्वारा संरक्षित करना पड़ेगा. जाहिर सी बात है
कि ये रासायनिक पदार्थ भले ही खाद्य पदार्थों को, पेय पदार्थों को देखने में,
स्वाद में भले ही ताजा बनाये रखते हों किन्तु इनके प्राकृतिक तत्त्वों को नष्ट
करके कहीं का कहीं मानव शरीर के लिए हानिकारक बना देते हैं. स्पष्ट है कि भले ही
ऐसे पदार्थ अपना दुष्प्रभाव तात्कालिक रूप में न दिखाते हों किन्तु इनके
दुष्प्रभाव दीर्घकालिक अवश्य ही रहता है.
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अब जबकि किसी भी तरह
से मैगी पर कार्यवाही के चलते ऐसे खाद्य पदार्थों पर अंकुश लगाये जाने की
प्रक्रिया शुरू हुई है तो बजाय इसका स्वागत किये जाने के दबे-छिपे स्वर में इसका
विरोध किया जा रहा है. इसको भी राजनैतिक रंग दिए जाने की कोशिश की जाने लगी है. मैगी
का भले ही खुलेआम समर्थन न किया जा रहा हो किन्तु अनेक अभिभावकों द्वारा अन्य
दूसरे पदार्थों पर अंकुश लगाये जाने की वकालत किया जाना अप्रत्यक्ष रूप से मैगी का
समर्थन ही कहा जायेगा. ऐसे मौके पर होना ये चाहिए कि समवेत रूप से ऐसे सभी
पदार्थों का विरोध किया जाना चाहिए जो बचपन के साथ खिलवाड़ करने में लगे हैं, बच्चों
के भविष्य को खोखला बनाने में लगे हैं. समझना होगा कि ऐसे पदार्थों के सेवन से ही
बच्चों में आक्रमकता जन्म ले रही है, समय से पूर्व उनके हारमोंस विकसित होने की
खबर भी आई है, मोटापा, अनिद्रा, अवसाद जैसी अनेक स्थितियों ने भी जन्म लिया है. हम
सभी को अपने लिए नहीं वरन अपने बच्चों के लिए मैगी के विरुद्ध चलने वाली प्रक्रिया
में सहयोग करें. मैगी पर ही ऐसी आफत क्यों आई, मैगी अकेले पर प्रतिबन्ध क्यों,
अन्य नशे वाले पदार्थों पर रोक क्यों नहीं आदि-आदि कहकर मैगी का अप्रत्यक्ष सहयोग
न करें. ये हम सभी कहीं न कहीं स्वीकारते ही हैं कि ये पदार्थ शरीर पर दुष्प्रभाव
डालते हैं तो महज दो मिनट की सुविधा के लिए अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ न हम
करें न किसी और को करने दें. एक मैगी के सहारे अन्य दूसरे दूषित, हानिकारक
पदार्थों का भी विरोध करें. आइये इसके लिए बिना राजनीति किये एकजुट हो जाएँ.
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