17 दिसंबर 2014

एकजुटता से विरोध जताओ



पेशावर में हुई जघन्य वारदात किसी भी रूप में विस्मृत करने योग्य नहीं है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान नामक आतंकी संगठन ने बच्चों की हत्याओं की जिम्मेवारी लेते हुए सेना से लिया गया बदला बताया है. इस दिल दहलाने वाले कृत्य से पाकिस्तानी हुक्मरानों को जागने-चेतने की जरूरत है जो कश्मीर के नाम पर वर्षों से भारत के विरूद्ध आतंकी हमलों को करने में लगे हैं. कश्मीर विवाद के नाम पर जहाँ एक तरफ वे संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना रोना रोते हैं वहीं दूसरी ओर उनके आतंकी अपनी करतूतों से भारतीय परिवारों को रुलाते हैं. बहुसंख्यक आतंकी घटनाओं में पाकिस्तान के शामिल होने के सबूत मिले हैं. मुंबई हमले के जिंदा पकड़े गए एकमात्र आतंकवादी के बयानों ने भी पाकिस्तान की असलियत को उजागर किया था. इसके बाद भी यदि कोई ठोस कार्यवाही पाकिस्तान के विरुद्ध नहीं की जा सकी या फिर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के विरुद्ध नहीं की जा सकी तो उसका बहुत बड़ा कारण भारतीय राजनीतिज्ञों का मुसलमान समर्थक होना रहा है.
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यहीं आकर पाकिस्तान के हुक्मरानों से ज्यादा भारतीय राजनीतिज्ञों को, भारतीय मुसलमानों को, इस्लामिक आतंकवाद को छद्म बताने वालों को, तुष्टिकरण के नाम पर मुस्लिम आतंकियों की पैरवी करने वालों को जागने की जरूरत है. जब-जब भी भारतीय सन्दर्भों में आतंकवाद की चर्चा की गई तो समूची आतंकी घटनाओं को बाबरी मस्जिद के ध्वंस से, अयोध्या मसले से जोड़कर उसकी प्रतिक्रिया बताया जाता रहा. देश में आतंक वारदातों के मुकाबले भगवा आतंक जैसी शब्दावली रच ली गई. विद्रूपता तो तब हुई जबकि मुंबई हमले के पकड़े गए आतंकवादी को निर्दोष साबित करने की पैरवी होने लगी; उसकी फाँसी की सजा तक को राजनीति का मुद्दा बनाकर हिन्दू-मुस्लिम के तराजू से तौला जाने लगा.
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मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर वर्षों से चले आ रही स्थिति को और मजबूत करने की कोशिश की जाती रही. राजनैतिक तुष्टिकरण के चलते ही कोई नेता मुस्लिम आतंकियों से मुक़दमे वापस लेने की कवायद करता दिखा तो कोई नेता खुले मंच से देश के समूचे हिन्दुओं को महज पंद्रह मिनट में मिटा देने की ललकार देता दिखा. ये बात हर बार समझ से परे रही कि बीस-बाईस वर्ष पूर्व घटित एक घटना की प्रतिक्रिया कितने वर्षों तक की जाएगी? कितनी-कितनी जगह आतंकी वारदातें करके की जाएगी? कितने-कितने मासूमों की, निर्दोषों की जान लेने के बाद ये प्रतिक्रिया रुकेगी? एक पल को मान लिया जाए कि देश में आतंकी घटनाओं का होना अयोध्या मामले की, बाबरी विध्वंस की प्रतिक्रिया रही है, तो इस बात को कौन समझाएगा कि अमरीका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुआ हमला किस मामले की, किस ध्वंस की प्रतिक्रिया था? कोई समझाएगा कि पेशावर की इस घटना के ठीक पहले आस्ट्रेलिया में हुई कैफे की घटना किस घटना की प्रतिक्रिया रही? इस बात को कौन समझाएगा कि पाकिस्तान में मासूम बच्चों की हत्या किसी मस्जिद के ढाँचे को गिराए जाने की नहीं, किसी गैर-मुस्लिम विरोध के परिणामस्वरूप उत्पन्न घटना नहीं है?
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अब जबकि इस्लामिक आतंकवाद ने अपने ही आकाओं को निगलना शुरू कर दिया है तब देश के मुस्लिम संगठनों को, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते राजनीतिज्ञों को, मुस्लिम नेताओं को एकसुर में इस जघन्य हत्याकांड का पुरजोर विरोध करने की आवश्यकता है. आतंकवाद ने, इस्लामिक आतंकवाद ने पाकिस्तान अथवा अन्य मुस्लिम देशों से बाहर आकर अपने पैर पसारने आरम्भ कर दिए हैं. पेशावर की इस घटना का जिस तरह से गैर-मुस्लिम नागरिकों की तरफ से विरोध किया जा रहा है उसी तरह से देश के समस्त मुस्लिम नागरिकों को भी संगठित होकर इसका विरोध करना ही होगा. ऐसे नाजुक पल में जबकि मुस्लिम आतंकी संगठन ने मुस्लिम बच्चों को ही अपना निशाना बनाया हो; जिस देश ने भारत के विरुद्ध सदैव आतंकी तैयार करने का काम किया हो उसी को वहीं के आतंकी संगठन द्वारा निशाना बनाया गया हो तब इस देश के समस्त मुस्लिमों को जागने की जरूरत है. यदि इस घटना के बाद भी इस्लामिक आतंकवाद का विरोध मुस्लिम नेताओं, मुस्लिम मजहबी संगठनों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा नहीं किया गया तो न केवल आतंकी मजबूत होंगे वरन भारतीय धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने वाले भी मजबूत होंगे.

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