आज सभी प्राणपण से
बाल दिवस मनाने में लगे हैं, समझ से बाहर है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पं०
जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन मनाया जाता है या बच्चों से सम्बंधित समारोहों का
आयोजन किया जाता है. अपने विद्यालयीन समय से लेकर अद्यतन सिर्फ और सिर्फ यही देखने
को मिला है कि बाल दिवस पर बच्चों को प्रोत्साहित करने की योजनायें बनाई जाएँगी,
चंद खेलकूद के आयोजन होंगे, कुछ मिष्ठान वितरण होगा और फिर सब जय हरिहर. यदि इस
दिवस को महज जन्मदिन के रूप में मनाया जाना है, मनाया जाता है तो सब ठीक है अन्यथा
की स्थिति में इसके पीछे बाल-विकास की वास्तविकता कहीं उलट है. ये सभी को ज्ञात है
कि नेहरू जी को बच्चों का चाचा कहे जाने, बच्चों से लगाव होने के कारण उनके
जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाये जाने की परम्परा देश में है किन्तु बच्चों
के प्रति वास्तविक क्रियाशीलता, धरातलीय जिम्मेवारी का निर्वहन करने से अभी तक
सरकारें भी बचती रही हैं, प्रशासन भी बचता रहा है, सामाजिक संस्थाएं-व्यक्ति भी
बचते रहे हैं. यदि हकीकत यही है तो बाल दिवस का आयोजन किसलिए और किसके लिए?
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संभवतः कोई एक शहर
भी ऐसा नहीं होगा जहाँ आज भी हम बच्चों को कूड़ा बीनते, भीख मांगते, होटलों-ढाबों
में काम करते, मिस्त्री के रूप में काम करते नहीं देखते हों. कमोबेश पूरे देश में
यही स्थिति बनी हुई है. पढ़ने-खेलने की उम्र में ये नौनिहाल अपना और अपने परिवार का
भरण-पोषण करने की जुगाड़ में लगे रहते हैं. सरकारें, प्रशासन इस बात को जानते हुए
भी अनभिज्ञ बना रहता है. शिक्षा देने के लिए तमाम जद्दोजहद की जाती है मगर उसका जमीनी
स्वरूप तैयार नहीं किया जाता है. शिक्षा साधारण-सामान्य विद्यालयों से निकल कर
कॉन्वेंट की शरण में पहुँच चुकी है. ज्ञान कम कीमत वाली किताबों के स्थान पर
बड़े-बड़े प्रकाशकों की मँहगी रंगीन किताबों-सीडी में छिपा दिया गया है. एकरूपता की
बात में अब सहज गणवेश न होकर मंहगे-मंहगे डिजायनर वस्त्रों को स्थान मिल रहा है. ऐसे
में शैक्षिक संस्थाओं द्वारा भी वास्तविक रूप से बच्चों के हितार्थ कार्य नहीं
किया जा रहा है. ले-देकर बचे हुए सरकारी संस्थान ही खानापूर्ति सी करते दिख रहे
हैं. अध्यापकों की भीड़ और खालीपन के मध्य चंद लोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर
रहे हैं किन्तु वे भी मिड-डे-मील सहित अन्य कागजी कार्यों के भंवरजाल में फँस कर
रह गए हैं.
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ये ध्यान रखना होगा
कि १४ नवम्बर को भले ही बाल दिवस के रूप में बच्चों को समर्पित हो या फिर विशुद्ध
नेहरू जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता रहा हो, मनाया जा रहा हो किन्तु बच्चों
के प्रति सामाजिक जिम्मेवारी कदापि कम नहीं हो सकती. सरकारी प्रयास महज खानापूरी
के लिए न हों, हम लोगों के काम भी भेदभाव से युक्त न हों, बच्चों के हाथों में चंद
सिक्के रखकर हम उनका भला नहीं कर रहे हैं, बच्चों को वास्तविक मदद के द्वारा उनको
आगे बढ़ने के रास्ते खोलें. जिस दिन हम बच्चों के परत सकारात्मक सोच के साथ आगे
बढ़ेंगे उसी दिन से सभी दिन बाल दिवस के रूप में स्वतः ही मनाये जाने लगेंगे.
.चित्र लेखक द्वारा लिए गए हैं
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