12 अक्तूबर 2013

गुब्बारों के फूटने में सुनाई दी बच्चे की हँसी




इसका कुछ भी नाम हो सकता है, कोई भी जाति हो सकती है, कोई भी धर्म हो सकता है. इस जैसे और भी बच्चे हो सकते हैं....हो सकते हैं क्या, ऐसी बहुत से बच्चे हैं जो अपना बचपन भूलकर पेट की आग शांत करने का जुगाड़ करने में लगे हैं. गुब्बारे बेचने का एक मन को छूने वाला आग्रह साथ ही घर जाने की आतुरता. किसी भी बच्चे का पेट के लिए काम करते दिखना अपने आपमें दुखद होता है किन्तु यदि काम हल्का-फुल्का सा होता है तो ये सुकून मिलता है कि कम से कम ये भीख तो नहीं माँग रहा, किसी की जेब तो नहीं काट रहा, कहीं चोरी-चकारी तो नहीं कर रहा है.
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तस्वीर लेते समय रात का आठ बजने को आया था और इस बच्चे को अभी लगभग पाँच-छह किमी दूर अपने गाँव जाना था. उरई शहर के पास के एक गाँव का निवासी वहीं के विद्यालय में कक्षा छह का विद्यार्थी ये बच्चा फोटो लिए जाने की बात से पुलक उठा. एक पल को भूल गया कि उसने गुब्बारे लेने का आग्रह किया था...पर पेट की आग कहाँ कुछ भूलने देती है, उसकी एक पल की ख़ुशी के पीछे प्रश्नवाचक शब्द निकले ‘और गुब्बारे’....उसको आश्वस्त किया तो उसके चेहरे पर फिरसे मुस्कान तैर गई.
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दो फोटो लेने के दरमियान उसने अपने बारे में बताया. विद्यालय जाना और फिर लौटकर गुब्बारे लेकर उरई आ जाना. दिनभर में कोई ३५-४० गुब्बारे बेचने के बाद रात को गाँव वापस पहुँच कर कुछ लिख-पढ़ लेना. कक्षा छह के विद्यार्थी को अनुशासित रूप में विद्यालय-परिवार, अध्ययन-व्यवसाय, घर-बाज़ार के साथ तालमेल बनाये देखना अपने आपमें अचरज में डाल गया. एकबारगी मन में आया कि इसकी मदद कुछ पैसे देकर की जाये..फिर लगा कि जो बच्चा खुद को कहीं न कहीं भीख माँगने से अलग रखे हुए है, उसे धन की मदद भिक्षावृत्ति को प्रेरित तो नहीं कर देगी? साथ ही लगा कि जो बच्चा पूरे अनुशासित रूप में अपना संतुलन बनाकर आगे बढ़ रहा है, कहीं उसकी खुद्दारी, उसकी राह में व्यवधान उत्पन्न तो नहीं करेगा.
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इस दो-चार मिनट की उलझन के बाद जितना संभव हो सकता था, गुब्बारे लिए. गाड़ी-सामान के साथ हाथों की सीमित संख्या ने भी गुब्बारे खरीद पर अंकुश लगाया. बच्चा अपनी अतुलित प्रसन्नता के साथ गुब्बारे तोड़-तोड़ देता जा रहा था और हम उनको संभालने में लगे हुए थे. बाज़ार से घर तक की यात्रा में कुछ गुब्बारे देवी माता की झांकियां देख लौट रहे बच्चों में बंट गए तो कुछ गुब्बारे भीड़ की, हवा की चपेट में आकर फूट गए. फट-फट की आवाज़ लोगों में क्या सन्देश दे रही होगी ये तो पता नहीं पर हमें कहीं न कहीं उस ध्वनि में बच्चे की हँसी सुनाई दे रही थी. घर के बच्चे भी चहक-चहक कर बचे हुए कुछ गुब्बारों को फोड़ने-उड़ाने में लग गए.

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 13/10/2013 को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः 024 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें। सादर ....ललित चाहार

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