संसद का मानसून सत्र
आरम्भ और पहले दिन ही आरम्भ हुआ हंगामा. मंहगाई, पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें
संभवतः इस सत्र में हंगामे के मुद्दे हो सकते हैं पर खाद्य सुरक्षा बिल और राज्यों
का बँटवारा ऐसे मुद्दे हैं जिन पर हंगामा होना तय ही है. इन मुद्दों के अलावा कुछ
मुद्दे ऐसे हैं जिन पर बिना किसी हंगामे के आपसी समवेत सहमति से सब कुछ सुलटा लिया
जायेगा. इनमें माननीय न्यायालय द्वारा अपराध सिद्ध होने वाले जनप्रतिनिधियों की
वापसी, अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक के साथ-साथ सूचना आयोग द्वारा राजनैतिक
दलों को सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में शामिल करना शामिल है. संभवतः सांसदों
के अपने वेतन-वृद्धि के अलावा यही मुद्दे ऐसे होंगे जिन पर सभी दल आपसी मतभेद
भुलाकर एकजुटता दिखा रहे होंगे.
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ये बहुत ही
हास्यास्पद है कि जिस कांग्रेस ने हर बार सूचना अधिकार अधिनियम को लेकर अपनी पीठ
ठोंकने का काम किया है वही आज खुद को इसमें शामिल होता देखकर तिलमिला रही है. जो
अधिनियम सरकारी मशीनरी के लिए पारदर्शिता लाने का उपकरण माना गया वो किसी राजनैतिक
दल के लिए अवरोधक कैसे हो गया, ये बात कांग्रेस या कोई अन्य दल समझा नहीं पा रहे
हैं. कांग्रेस की राह पर बाकी दलों का चलना समझ में आता था किन्तु खुद कि हमेशा से
सबसे अलग बताने वाली भाजपा और खुद को सिद्धांतों वाला दल बताने वाले माकपा से इनके
विरोध की उम्मीद नहीं थी. ये बात और है कि भ्रष्टाचार के कुछ मामलों के सामने आने
पर भाजपा द्वारा अपने मंत्रियों, पदाधिकारियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया
गया है और उन्हीं क़दमों के आधार पर माना जा रहा था कि भाजपा न्यायालय और सूचना
आयोग के फैसलों का सम्मान करते हुए खुद को सबसे अलग साबित भी करेगी.
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बहरहाल कुछ भी हो,
इक्का-दुक्का सांसदों को छोड़कर बाकी सभी दल न्यायालय और सूचना आयोग के फैसलों के
विरोध में हैं और कोई न कोई संशोधन करके अपने बचाव का रास्ता निकालने का मन बना
चुके हैं. इससे एक बात तो स्पष्ट है कि कोई भी दल खुद को मिलने वाली धनराशि और
उसके खर्चों को लेकर पारदर्शिता बरतने के मूड में नहीं हैं. इसके साथ ही ये भी
स्पष्ट है कि कोई भी दल अपराधियों के राजनीतिकरण पर या कहें कि राजनीति के
अपराधीकरण पर अंकुश/रोक लगाने का पक्षधर नहीं है. राजनीति में शुचिता, पारदर्शिता,
ईमानदारी की बातें करने वाले दल भी उन्हीं की जमात में खड़े हो गए हैं जो
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति में अपराधीकरण को, भ्रष्टाचार को,
भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते रहे हैं. यदि सदन में अपराधीकरण को रोकने के विरोध
में, खुद को सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में बाहर रखने के सम्बन्ध में इन
राजनैतिक दलों द्वारा किसी भी तरह का संशोधन किया जाता है तो वह लोकतंत्र के लिए
ही दुखद क्षण होगा. ऐसे किसी भी कदम के बाद किसी एक दल को गरियाना, किसी दूसरे दल
की प्रशंसा करना सही नहीं होगा क्योंकि इनके आचरण देखकर कहा जा सकता है कि एक
सांपनाथ, दूसरा नागनाथ...डसना-काटना दोनों को है.
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