03 अगस्त 2013

बुन्देलखण्ड के प्रति भी सकारात्मक रुख दिखाए सरकार




होते-होते आखिरकार तेलंगाना के बनने की घोषणा हो ही गई. इस घोषणा के बाद तमाम राज्यों के गठन की माँग सर उठाने लगी. एक अलग राज्य के रूप में ‘बुन्देलखण्ड’ बनाये जाने की माँग भी विगत कई वर्षों से चल रही है और साथ में छोटे-छोटे आन्दोलन भी चल रहे हैं किन्तु केंद्र सरकार की तरफ से कभी भी सकारात्मक रुख नहीं दिखाई दिया. तेलंगाना निर्माण की घोषणा के बाद से उन सभी बुन्देलखण्डप्रेमियों में उत्साह की लहर दौड़ गई है जो केंद्र सरकार के उपेक्षित रवैये से क्षुब्ध थे और बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की माँग के प्रति, आन्दोलनों के प्रति कुछ सुस्त से पड़ गए थे. बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लिए कमर कसे लोग पुनः अपनी पूरी ऊर्जा, उत्साह से आन्दोलन की रणनीति बनाने में लग गए हैं, ये बात और है कि राजनैतिक रूप से किसी भी दल या किसी बभी व्यक्ति ने ऐसी किसी माँग के प्रति रुचि अभी भी नहीं दिखाई है.
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अपेक्षा से बड़े उत्तर प्रदेश राज्य में बुन्देलखण्ड क्षेत्र अपने आपमें संस्कृति, पहनावा, बोली, रहन-सहन, प्राकृतिक संसाधन आदि को लेकर सबसे अलग तो है ही, अनूठा भी है. इसके गठन के लिए केंद्र सरकार को विचार करना चाहिए क्योंकि अपनी अलग विशेषताओं के बाद भी, प्राकृतिक संसाधनों के बाद भी, भरपूर खनिज संपदा के बाद भी बुन्देलखण्ड क्षेत्र को राज्य सरकार का मुंह ताकना पड़ता है. केंद्र का सुस्त रवैया और राज्य सरकारों का सौतेला व्यवहार बुन्देलखण्ड को लगातार पिछड़ेपन की तरफ ले जाता रहा. यहाँ से संसाधनों का, खनिजों का, बिजली का, वन-संपदा का राज्य सरकारों के चहेतों ने उपभोग किया, उसे लूटा और इस क्षेत्र के विकास की तरफ कतई ध्यान नहीं दिया.
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बुन्देलखण्ड निर्माण के प्रति राजनैतिक जागरूकता की जबरदस्त कमी भी राज्य निर्माण में देरी का कारण बनी हुई है. बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की माँग यहाँ के कुछ जागरूक नागरिकों द्वारा ही की जा रही है, जबकि राजनैतिक सक्रियता शून्य ही है. कुछ इक्का-दुक्का राजनीतिज्ञों ने कभी-कभी माँग को उठाया भी तो वे भी किसी न किसी पैकेज के चक्कर में आकर शांत हो गए. किसी समय में बुन्देलखण्ड की माँग उठाने वाले एक नेताजी पिछली सरकार में मंत्री पद पाते ही घनघोर चुप्पी साध गए. इसके बाद पिछली प्रदेश सरकार ने चुनावी शिगूफा छोड़कर बुन्देलखण्डवासियों को वोट-बैंक में बदलने की कोशिश की किन्तु केंद्र सरकार ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया. ये हाल किसी एक दल या किसी एक राजनैतिक व्यक्ति का नहीं अपितु समस्त राजनैतिक दलों, व्यक्तियों का है. सरकारों की इस कदर उपेक्षित करने वाली चुप्पी से लगता है कि सरकारें शायद उपद्रव की, हिंसा की भाषा ही समझती है. अभी तक बुन्देलखण्ड निर्माण के लिए जो भी आन्दोलन किये गए हैं वे शांतिपूर्वक किये गए. इस ख़ामोशी का दुष्परिणाम ये है कि न केंद्र सरकार और न राज्य सरकार इस तरफ ध्यान दे रही हैं.
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तेलंगाना बनने की घोषणा के बाद से बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के प्रति जागरूक नागरिक पुनः सक्रिय हो चुके हैं. इस क्षेत्र की समस्याओं को समझना-सुलझाना सरकारों का काम है और इस क्षेत्र की विशेषताओं को समझकर अलग राज्य के गताहन के प्रति भी कोई ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है. सरकारों को ये समझना चाहिए कि शौर्य, वीरता, तेज़, ओज, बलिदान से भरपूर ये बुन्देली मांटी शांति से अपना अधिकार माँग रही है. इससे पहले कि इस क्षेत्र के प्रति होती आई उपेक्षा आक्रोश में बदले, हिंसा, उपद्रव के दाग लगाये सरकारों को बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के प्रति सकारात्मक कदम उठा लेने चाहिए.   
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