मोदी को लोकसभा
चुनाव प्रचार की कमान सौंपने के बाद से भाजपा के, मोदी के तमाम विरोधियों ने एक
अलग तरह का मोर्चा खोल लिया है. यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि अभी मोदी को चुनाव की
कमान सौंपी गई है, केंद्र की सत्ता की नहीं. विगत कुछ दशकों से देश की राजनीति को
जिस तरह से धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के नाम पर संचालित किया जा रहा है उस
मुद्दे को हर बार की तरह इस बार भी भाजपा के विरुद्ध इस्तेमाल किया जायेगा. देश की
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें साम्प्रदायिकता के नाम पर सिर्फ और सिर्फ भाजपा को
रोकने के नाम पर एकजुट हो जाती हैं. इसके चलते राजनैतिक सौदेबाज़ी, पदों के मनमाने
बंटवारे की कहानी चलने लगती है. मोदी के आने पर राजनैतिक दलों, मीडिया द्वारा
समवेत स्वर में साम्प्रदायिकता-धर्मनिरपेक्षता का राग अलापा जाने लगा. ये कोई पहला
अवसर नहीं है, इससे पूर्व भी भाजपा (या कहें एनडीए) के सत्ता में आने पर अथवा
कांग्रेस (या कहें यूपीए) के सत्ता से हटने के मौके पर तमाम फिरकापरस्त राजनैतिक
दल अपने-अपने राजनैतिक हित साधने के लिए सौदेबाज़ी करते हुए सांप्रदायिक ताकतों के
विरुद्ध होने का ड्रामा खेलते हुए राजग के लिए संजीवनी का काम करते रहे हैं. ऐसा
वर्तमान में हो भी रहा है, सपा-बसपा द्वारा केंद्र सरकार को दिया गया समर्थन सब
कुछ स्पष्ट करता है.
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अब जबकि कांग्रेस के
घोटालों, भ्रष्टाचार के कारण पूरे देश में उसके विरोध की लहर चल रही है और मोदी को
गुजरात में लगातार मिलती विजय के बाद से उनके नाम की, भाजपा के पक्ष की हवा चल रही
है तब भाजपा विरोधियों के पैरों तले की जमीन खिसकना लाज़मी है. इस कोढ़ में खाज का
काम मोदी को चुनाव की कमान मिलने ने किया है. मोदी के, भाजपा के समर्थक इस कदम से
उत्साहित हैं किन्तु आडवाणी को किनारे किये जाने की खबरों से उत्साह अपनी पूर्णतः
को प्राप्त नहीं कर पायेगा. एक बात भाजपा समर्थकों को, मोदी समर्थकों को, एनडीए समर्थकों
को भलीभांति जान-समझ लेनी चाहिए कि उन सभी को कट्टरता के साथ भाजपा, मोदी, एनडीए
का साथ देना होगा.
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ऐसे में मीडिया,
विरोधी राजनैतिक दलों की रणनीति किसी भी रूप में मोदी को, भाजपा को, एनडीए को
केंद्र में आने से रोकने की रहेगी और इसके लिए वे सब किसी भी हद तक नीचे गिर सकते
हैं. यहाँ ध्यान रखने वाली बात ये होनी चाहिए कि आडवाणी वह व्यक्तित्व है जिसने
भाजपा को फर्श से अर्श पर पहुँचाया है. देश के उच्च पद की लालसा में यदि वे किंचित
मोहपाश में बंध गए हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि उन्हें दरकिनार कर दिया जाए. भाजपा
को केंद्र की सत्ता तक पहुँचाने में एक तरफ यदि मोदी जैसे युवा-ऊर्जावान नेता की
आवश्यकता है तो आडवाणी जैसे अनुभवी की अनिवार्यता भी है. युवा उत्साह और अनुभव का
संगम यदि संयम से आगामी लोकसभा चुनाव तक बनाये रखा गया तो एनडीए को केंद्र की
सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता है. भाजपा के नाम पर साम्प्रदायिकता-धर्मनिरपेक्षता
का छद्म खेल खेलने वाले फिरकापरस्त राजनैतिक दलों, राजनीतिज्ञों को मुंहतोड़ जवाब
देने का वक्त आ गया है. बस मोदी, भाजपा, एनडीए समर्थकों को उत्साह-अनुभव का संयमित
संगम बनाये रखना होगा.
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