अपनी इस सात सौवीं पोस्ट के रूप में अपनी लिखी एक ग़ज़ल आपके सामने>>>>
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जाते जाते भी दिल में ये आस छोड़ जाओगे,
हम पुकारेंगे तुम्हें और तुम कर लौट आओगे.
देख ही लेता एक बार तो तुम्हें जी भर कर,
सोचा न था तुम इतनी जल्द छोड़ कर जाओगे.
आसान नहीं होता अपना बनाकर छोड़ देना,
तुम इतनी सी बात को कब समझ पाओगे.
बेचैन करेगी तन्हाई में जब हमारी चाहत तुम्हें,
उस घड़ी अपने बेचैन दिल को कैसे समझाओगे.
मेरे दिल की चुभन से थोड़ी तड़प तुम्हें भी होगी,
अपने आंसुओं का सबब लोगों को क्या बताओगे.
चाह होने पर खुदा की ढूँड़ लेते हैं पत्थरों में,
मैं गया वक्त नहीं हूँ कि मुझे ढूँड़ नहीं पाओगे.
कभी एहसास जगे गर दिल में हमसे मिलने का,
आँखें बंद करोगे तो अपने आसपास ही पाओगे.
दुआ फिर भी तुझे देंगे हमें छोड़ कर जाने वाले,
हम जैसा कोई और इस जहाँ में ढूँड़ नहीं पाओगे.
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आशा है कि आपको पसंद आएगी. आप सभी का स्नेह सदैव की भांति आगे भी अपेक्षित है.
सात सौवीं पोस्ट के लिये बधाई!
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सात सौ पोस्ट, वाह, एक अहम पड़ाव...
बधाई !
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