वास्तव में इस देश का उपभोक्ता बहुतई चीमड़ किस्म का है. किसी भी स्थिति में
प्रसन्न रहना, संतुष्ट रहना सीखा ही नहीं है उसने. उसके पक्ष की बात हो अथवा उसके
विपक्ष की, सभी में कोई न कोई मीनमेख निकालना जरूरी है. कई बार तो ऐसा लगता है कि
यदि उसकी तरफ से इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं की जाएगी तो उसे कोई जागरूक नहीं
मानेगा. ऐसा भी लगता है कि कहीं न कहीं उसे ये डर भी लगता है कि ऐसा न करने से लोग
उसे किसी दूसरे देश का या दूसरे ग्रह का प्राणी ही न समझने लगें. समाज में अपनी
उपस्थित को दर्शाने के लिए, अपने वजूद की स्वीकार्यता के लिए, लोगों में अपनी हनक
स्थापित करने के लिए, अपनी जागरूकता प्रदर्शित करने के लिए, इसी देश की नागरिकता
सिद्ध करने के लिए ये चीमड़ उपभोक्ता हर एक कदम की आलोचना करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार
समझता है. और तो और इस जन्मसिद्ध अधिकार या कहें कि उपभोक्तासिद्ध अधिकार के कारण
आलोचना का शिकार हर बार सरकार ही होती है. वैसे भी सरकार सबसे निरीह प्राणियों में
शुमार है, जिसकी जो चाहे आलोचना कर मारे.
बहरहाल, चर्चा करने बैठे थे चीमड़ उपभोक्ताओं की या कि उपभोक्ताओं के चीमड़पने
की. अब देखिये, आज आधी रात से सरकार ने पेट्रोल के दामों में दो रुपये की भारी-भरकम
कमी की तो इस उपभोक्ता जाति का पेट खौलने लगा. लगा आलोचना करने कि इसमें सरकार ने
कौन सा तीर मार लिया, अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल कीमतों में कमी आई है तो
सरकार को कीमतों में कमी करनी ही थी. इसके अलावा कुछ ने कहना शुरू कर दिया कि अब
सरकार को चुनाव सामने दिख रहे हैं इस कारण ये कदम उठाया. कुछ ने इसे आतंकी हमले और
पाकिस्तान के निंदा प्रस्ताव से ध्यान हटाने के लिए उठाया गया कदम बताया. हद
है...इतना चीमड़पना कहीं और देखने को नहीं मिला होगा आपको, हमें तो आजतक नहीं मिला.
इनकी समस्या कीमतों में कमी को लेकर ही अकेले नहीं है. जब-जब सरकार ने पेट्रोल
के, डीजल के दाम बढ़ाये इस उपभोक्ता जाति ने नाक में दम कर दिया चिल्ला-चिल्ला के.
सोचने की बात है सरकार एक बार में कितने रुपये बढ़ाती है...दो, चार, पांच.......अरे
कभी इससे ज्यादा तो बढ़ाये नहीं. अब जरा ये चीमड़ इस पर विचार करें कि एक बार में
कितना पेट्रोल भरवाओगे बाइक में या कार में. अरे बाइक में बहुत भरवाओगे तो दस
लीटर....और मान लो तीन रुपये ही एक लीटर पर बढ़ाये तो कितने रुपये फूंक दिए....तीस
न. अब देखो, पूरे महीने में कितने लीटर भरवाओगे...सौ लीटर...कितने रुपये फूंके दिए
तीन सौ न. अरे..! इन तीन सौ में कौन सी जागीर खरीद ले रहे थे. पर नहीं, लगे सरकार
को गरियाने. यही हाल कार उपभोक्ताओं के चीमड़पने का है. भले ही महीने में एक-दो बार
कार चलाते हों....कुल जमा चूस-चूस के बीस-पच्चीस लीटर ही पेट्रोल भरवाते हों पर
नखरे देखो...ऐसा लगता है जैसे सरकार ने पेट्रोल के दाम बढ़ाके इन चीमडों की जायदाद
अपने नाम लिखवा ली हो.
अब यही देख लो, आज दो रुपये कम किये तो पेट्रोल पे पेट्रोल भरवाए जा रहे हैं
और साथ में सरकार को गरियाते जा रहे हैं. हमारे एक मित्र रात भर से लगे हैं
पेट्रोल भरवाने में. घर के हर बर्तन, फ्रिज, सेफ, वार्डरोब, वाशिंग मशीन, चम्मच,
कटोरियाँ, थालियाँ, मग्गे, गिलास, बोतलें आदि-आदि में पेट्रोल भरवाने में लगे हैं.
हमने पूछा तो बोले पता नहीं नासपीटी सरकार फिर कब कीमत बढ़ा दे...सो अभी से भरवा के
रख लो. बात करने तक की फुर्सत नहीं थी महाशय के पास पर सरकार को गरियाने का अपना
उपभोक्ता धर्म बराबर निभाए जा रहे थे. देख रहे आप ऐसे लग रहा है जैसे दो रुपये एक
लीटर में बचाकर करोड़पति बनने जा रहे हों, दो-चार फ़्लैट दिल्ली, मुंबई में बुक करा
लेंगे, सैकड़ों एकड़ जमीन ले लेंगे (आखिर जमीन-फ़्लैट खरीदने का अधिकार कोई दामादों
के पास सुरक्षित थोड़े है) पाँच-छः बड़ी-बड़ी लक्जरी गाड़ियाँ खरीद लेंगे. हमें तो
उनके पेट्रोल भरवाने की अतिशयता देखकर ऐसा लग रहा है कि यदि वे कुछ ज्यादा बचा गए
तो कहीं दो-चार हेलिकॉप्टर न ले मारें (आजकल इसमें भी कमीशन बहुत मिल रहा है)
चीमड़ उपभोक्ताओं की संस्कृति से इस देश को मुक्ति तो मिलने से रही पर हम अपने
मित्र के पेट्रोल संरक्षण पर बहुत गर्व कर रहे हैं. कोई तो है जो भविष्य के लिए
पेट्रोल को कटोरी-चम्मच तक में सुरक्षित रख रहा है. इसके साथ ही दया का भाव आता है
सरकार के लिए जो कुछ भी करे तो भी इन उपभोक्ताओं के चीमड़पने का शिकार बनती है.
सबको समझना चाहिए कि सरकार कुछ भी कर सकती है, सब कुछ कर सकती है बस देश के
उपभोक्ताओं को अपने चंगुल से मुक्त नहीं कर सकती. ऐसे में ये चीमड़ अपने
उपभोक्तासिद्ध अधिकारों का भरपूर प्रयोग करते रहेंगे.
जय हो उपभोक्ता..! जय हो चीमड़ उपभोक्ता...!! जय हो उपभोक्तासिद्ध अधिकार....!!!
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चित्र गूगल छवियों से साभार
चित्र गूगल छवियों से साभार
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