पहले
उनका आना, चादर चढ़ाना, भोजन करना, हमारे देश का नमक खाना और फिर घनघोर नमकहरामी
करना. इस बारे में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए था क्योंकि उस पिद्दी के शोरबे की
यही फितरत है. सोचा जा सकता है जिस देश की बुनियाद नफरत पर, खून-खराबे पर, धोखे पर
टिकी हो वो किस तरह से प्रेम का, शांति का सबक सीखेगा? इस टुच्चे से चरित्र के साथ
एक और टुच्चई ये दिखाई गई कि उस पिद्दी के शोरबे ने अपनी नेशनल असेम्बली में एक
प्रस्ताव पास करके अफज़ल की फांसी की निंदा कर डाली. आश्चर्य इस बात पर नहीं कि
उसने ऐसा किया, आश्चर्य तो इस बात पर है कि इतनी देर से क्यों किया. कहीं उनके
प्रधानमंत्री चादर चढाने के बहाने अपनी चादर और हमारी चादर तो नापने नहीं आये थे?
.
उनकी
तो जो है सो भली चलाई है, हमारे देश की कौन सी बहुत गर्व करने लायक स्थिति है. हम
कब तक इस बात पर गर्व करते फिरेंगे कि हमने उनको कितने युद्धों में हराया? हम कब
तक इस बात का जश्न मनाते रहेंगे कि हमने उनके नब्बे हजार से अधिक जवानों को
आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था? हम कब तक सीना ठोकेंगे कि हमारी एक
प्रधानमंत्री की पहल पर उस देश के दो हिस्से हो गए? आखिर हमें तय करना होगा कि
हमारे लिए अब दोस्ती-दुश्मनी के मायने क्या हैं? हम एक तरफ चिल्लाते घूमते हैं कि
कश्मीर हमारे देश का अटूट हिस्सा है वहीँ दूसरी तरफ पाकिस्तान वहां के आतंकवादी को
स्वतंत्रता सेनानी का दर्ज़ा देते हुए भारत के न्यायालय को, संसद को मानने से इंकार
करता है. भारत की क्या कहा जाये जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री तक ने घाटी का माहौल
ख़राब होने की आशंका (धमकी जैसे स्वर में) व्यक्त की थी.
.
अब
जबकि पकिस्तान की नेशनल असेम्बली में प्रस्ताव पारित हो चुका है सरकार यहाँ चुकी
सी बैठी है. अब देखना ये है कि संसद में उसका अगला, सार्थक कदम क्या होता है? सबसे
बड़ी बात है कि जिस देश के राजनैतिक दलों में राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर भी
एकता नहीं दिखती वहां पडोसी टुच्चे से देश भी आँखें दिखने लगते हैं. पूरे देश में
आतंकवाद से सम्बंधित माहौल का, पाकिस्तान की तरफ से होने वाले आतंकी हमले का जब भी
आकलन किया जाता है केंद्र सरकार की तरफ से दोस्ताना हाथ बढ़ाने की बात की जाती है.
समझ से परे है कि बार-बार जूते खाने के बाद भी दोस्ती का हाथ उठ कैसे जाता है? अब
इस मुद्दे पर विपक्षी दल कुछ भी करें-कहें, खुद केंद्र सरकार को सबसे आगे निकल कर
पाकिस्तान के इस निंदा प्रस्ताव के खिलाफ एक प्रस्ताव अविलम्ब पारित करना चाहिए.
.
माना
कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता किन्तु कभी-कभी बिगडैल बालक को
सुधारने के लिए उसको एक-दो चपत लगाना जरूरी होता है, ठीक वही हाल यहाँ करने की
जरूरत है. अभी तक जितनी चपतें उसे पड़ी हैं उनकी कल्लाहट वो भूल चुका है. भविष्य
में वो पिद्दी का शोरबा अपनी हरकतों को न दोहराए इसके लिए फिर से वही कल्लाहट की
जरूरत है, जो पहले उसे मिल चुकी है.
.
जय
हिन्द
.
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें