12 मार्च 2013

मीडिया को, पत्रकारिता को अब विश्वसनीय नहीं माना जाता









 
वर्तमान परिदृश्य में मीडिया को, पत्रकारिता को उतना विश्वसनीय नहीं माना जाता है जितना किसी समय में स्वीकारा जाता था। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास को जितना समझा है उसके अनुसार पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में, स्वतन्त्रता आन्दोलन में सहभागी बनाकर सामने रखा गया था। स्वतन्त्रता पश्चात भी पत्रकारिता को व्यावसायिकता से जोड़कर नहीं देखा गया था किन्तु वैश्वीकरण, औद्योगीकरण के इस विकट दौर में पत्रकारिता को भी व्यवसाय बनाकर प्रस्तुत किया गया। इस कारण से देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों में करोड़ों-अरबों की धनराशि लगाकर इसमें अपना सशक्त हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। पत्रकारिता के, मीडिया के व्यावसायीकरण ने इसके उद्देश्यों को, इसकी प्रकृति को बदलकर रख दिया। इस बदलाव को हाल के वर्षों में भली-भांति देखा-महसूस भी किया गया। सामाजिक सरोकारों से विहीन, मानवीय मूल्यों से रहित, टीआरपी की अंधी लालसा लिए मीडिया ने समाचारों के स्थान पर मसाले को प्रस्तुत करना शुरू किया। जनता से जुड़ने के स्थान पर आर्थिक मूल्यों से, आर्थिक हितों से नाता बनाये रखने में विश्वास किया। इसको मात्र एक-दो उदाहरणों के रूप में देखा जा सकता है।
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          मीडिया समूह से जुड़े लोगों में, पत्रकारिता क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वालों में एक प्रकार की अजब सी अकड़, अजब सी अहंकारी प्रवृत्ति देखने को मिलती है। लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ से रूप में ख्याति प्राप्त इस समूह ने अपनी समस्त अकड़, अपनी समस्त गरिमा, अपना समस्त अहं उस समय सड़कों पर बिछा दिया था जिस समय बिग बी अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक का विवाह-समारोह चल रहा था। बारम्बार आमंत्रित करने पर भी सौ-सौ नखरे दिखाने वाले सम्पादक, पत्रकार बिना बुलाये दिन-रात बिग बी के घर के बाहर सड़क पर डेरा डाले बैठे रहे। खुद को सामाजिक जागरूकता से जोड़ने वाले, मानवीय संवेदनाओं की रक्षा करने वाला बताने वाले मीडिया ने अपनी समस्त हदों को, अपनी समस्त मानवीयता को उस समय ताक पर रख दिया जिस समय हमारे जांबाज अपनी-अपनी जान को जोखिम में डालकर मुम्बई हमले के आतंकवादियों से सामना कर रहे थे। स्वयं को सबसे आगे दिखाने की अंधी दौड़ में भारतीय मीडिया इस बात को भूल गई कि उसके लाइव कवरेज से दुश्मन हमारे सैनिकों की हरकतों, उसकी पोजीशन को देख-समझ सकता है। बहरहाल..उक्त दो घटनायें ही मीडिया की, पत्रकारिता की दशा का सही-सही आकलन करने में सक्षम है।
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          इस विसंगति भरे दौर के बाद भी ऐसा नहीं है कि सभी पत्रकारों, सम्पादकों, मीडिया समूहों के साथ भी यही है। पत्रकारिता से आज भी कतिपय ऐसे लोग और ऐसे समूह जुड़े हैं जो पत्रकारिता के मूल्यों को, मीडिया के उद्देश्यों को जिन्दा रखे हैं; उनका संरक्षण, संवर्द्धन करने में लगे हैं। ऐसे लोगों के होने से ही अभी भी भारतीय जनमानस में पत्रकारिता के प्रति विश्वास कायम है। जिस तरह से व्यावसायिकता, वैश्वीकरण के बीच समाज में विसंगतियों के हालात दिख रहे हैं, वैसे हालात पत्रकारिता में भी परिलक्षित होने लगे हैं। इसको समय से रोकने के लिए पर्याप्त उपाय करने की आवश्यकता प्रतीत होती है। 

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